Sunday, 31 March 2019

नक्षत्र विचार

पुराणों तथा संहिता में नक्षत्र विचार
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नक्षत्र ग्रह विप्राणां  वीरुधां चाप्यशेषतः |
सोमं राज्ये दधह्रह्याम यज्ञानां तमसामापि ||

(श्री विष्णु पुराण)

श्री विष्णु पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं ही नक्षत्र रूपा हैं जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ है | इन्हीं 27  नक्षत्रों का भोग चन्द्र द्वारा किये जाने पर चैत्र आदि एक चन्द्र  मास पूर्ण होता है |सभी पुराणों में नक्षत्रों के महत्व तथा शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है | ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का उपयोग बालक/बालिका के जन्म के समय शुभाशुभ विचार , नामकरण, मुहूर्त विचार,ग्रह चार,मेलापक तथा जातक के अन्य सभी शुभ अशुभ फल विचारने के लिए किया जाता है | अग्नि पुराण,नारद पुराण ,गरुड़ पुराण मत्स्य पुराण तथा अन्य पुराणों तथा बृहत्संहिता,भद्रबाहु संहिता ,नारद संहिता ,वशिष्ठ संहिता आदि  में नक्षत्रों का वर्णन निम्न प्रकार से वर्णित है।

नक्षत्रों के देवता और नाम के प्रथम अक्षर
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प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण का एक अक्षर निश्चित है | बालक /बालिका का जन्म नक्षत्र के जिस चरण में होता है उस से सम्बंधित अक्षर पर उसका नामकरण किया जाता है|

नक्षत्र का नाम।    नक्षत्र का देवता।  नक्षत्र के चरण अश्वनी।               अश्वनी कुमार।       चू  चे  चो  ला
भरणीं।                यमली                  लू ले लो
कृतिका।              अग्नि।                 अ इ उ ए
रोहिणी।              ब्रह्मा।                   ओ वा वी वू
मृगशिरा।             चन्द्र।                    वे वो का की
आर्द्रा।                 शिव।                   कु घ ड० छ
पुनर्वसु।               अदिति।                के को हा ही
पुष्य।                  बृहस्पति।               हु हे हो डा
आश्लेषा।             सर्प।                    डी डु डे डो
मघा।                  पितर।                  मा मी मू मे
पूर्वाफाल्गुनी।       भग।                   मो हा टी टू
उत्तराफाल्गुनी।     अर्यमा।                हे हो पा पी
हस्त।                  सूर्य।                    पु ष ण ठ
चित्रा।                 त्वष्टा।                   पे पो रा री
स्वाति।                पवन।                   रू रे रो ता
विशाखा।             इन्द्राग्नि।               ती तू ते तो
अनुराधा।             मित्र।                   ना नी नु ने
ज्येष्ठा।                इंद्र।                     नो या यी यु
मूल।                  राक्षस।                  ये यो भा भी
पूर्वाषाढ़।            जल।                    भू ध फ ढ
उत्तराषाढ।          विश्वेदेव।               भे भो जा जी
श्रवण।               विष्णु।                  खी खू खे खो
धनिष्ठा।              वसु।                     गा गी गु गे
शतभिषा।           वरुण।                  गो सा सी सू
पूर्वा भाद्रपद।       रूद्र।                    से सो दा दी
उत्तरा भाद्रपद।     अहिर्बुध्न्य`            दु थ झ ञ
रेवती।                 पूषा।                   दे दो चा ची

अग्नि पुराण के अनुसार प्रति मास अपने जन्म नक्षत्र के दिन नक्षत्र देवता का विधिवत पूजन अर्चन करने से उस महीने का फल शुभ रहता है और कष्ट की निवृति होती है |जन्म नक्षत्र ज्ञात न हो तो प्रचलित नाम के पहले अक्षर से नाम नक्षत्र ज्ञात करें और उस नक्षत्र के देवता की पूजा करें।

उर्ध्वमुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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रोहिणी ,आर्द्रा, पुष्य ,उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ ,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा ,उत्तरा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र उर्ध्वमुख अर्थात ऊपर मुख वाले हैं | इन में विवाह आदि मंगल कार्य,राज्याभिषेक ,ध्वजारोहण,मंदिर निर्माण,बाग़-बगीचे लगवाना ,चार दीवारी बनवाना ,गृह निर्माण आदि कार्य करवाना शुभ रहता है |

अधोमुखी नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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कृतिका, भरणीं ,आश्लेषा, विशाखा, मघा ,मूल, पूर्वाषाढ़ ,पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र अधोमुख अर्थात नीचे मुख वाले हैं | इन में तालाब कुएं खुदवाना ,नलकूप लगवाना ,चिकित्सा कर्म, विद्याध्ययन ,खनन,लेखन कार्य,शिल्प कार्य, भूमि में गड़े पदार्थों को निकालने का कार्य करना शुभ रहता है |

तिर्यङ्मुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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अनुराधा, मृगशिरा ,चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, पुनर्वसु ,अश्वनी, स्वाति, रेवती ये नौ नक्षत्र सामने मुख वाले हैं  जिन में यात्रा करना ,खेत में हल जोतना ,पत्राचार करना ,सवारी करना ,वाहन निर्माण आरम्भ करना शुभ है |

ध्रुव संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी ,उत्तराषाढ ,उत्तरा भाद्रपद ये चार नक्षत्र ध्रुव नक्षत्र हैं जिनमें क्रय-विक्रय करना ,हल जोतना ,बीज बोना आदि कार्य करना शुभ हैं |

क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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हस्त,अश्वनी,पुष्य ये तीन नक्षत्र क्षिप्र संज्ञक हैं  जिनमें यात्रा करना ,दुकान लगाना,शिल्प कार्य,रति कार्य,ज्ञान अर्जन करना शुभ है |

साधारण संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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विशाखा तथा कृतिका साधारण नक्षत्र हैं जिनमे सभी कार्य किये जा सकते हैं |

चर संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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धनिष्ठा ,पुनर्वसु,शतभिषा ,स्वाति तथा श्रवण नक्षत्र चार संज्ञक हैं जिन में यात्रा करना ,बाग- बगीचे लगाना ,तथा परिवर्तन शील कार्य करना शुभ है |

मृदुसंज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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मृगशिरा ,अनुराधा,चित्रा,रेवती मृदु नक्षत्र हैं जिनमें आभूषण निर्माण,खेल कूद,नवीन वस्त्र धारण करना ,गीत-संगीत से सम्बंधित कार्य करना शुभ रहेगा |

नक्षत्रों की अन्धाक्षादि संज्ञाएँ
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रोहिणी नक्षत्र से आरम्भ करके क्रमशः चार चार नक्षत्र अंध,मंद,मध्य,तथा सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं | अंध नक्षत्र में खोई  वस्तु बिना विशेष प्रयत्न के पुनः प्राप्त हो जाती है | मंद नक्षत्र में खोई वस्तु प्रयत्न करने पर बड़ी कठिनता से मिलती है | मध्य  नक्षत्र में खोई वस्तु का पता तो चल जाता है पर प्राप्ति नहीं होती | सुलोचन नक्षत्र में खोई  वस्तु का न तो पता चलता है और न ही प्राप्ति होती है |

कुलाकुल संज्ञक नक्षत्र तथा उनके फल
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अश्वनी,कृतिका ,मृगशिरा ,पुष्य,चित्रा,मूल ,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढ,उत्तराभाद्रपद,श्रवण,धनिष्ठा ,मघा,पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा कुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिन में अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति हार जाता है तथा युद्ध के लिए प्रयाण करने वाले की पराजय होती है |

रोहिणी, ज्येष्ठा,रेवती,पुनर्वसु,
स्वाति,हस्त,अनुराधा ,भरणीं,पूर्वा भाद्रपद ,आश्लेषा अकुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिनमें आक्रमणकारी शत्रु पर विजय  प्राप्त करता है और अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति जीत जाता है|

आर्द्रा ,शतभिषा,पूर्वाषाढ़ कुलाकुल नक्षत्र है जिनमें मुकद्दमा दायर करने अथवा युद्ध आरम्भ करने पर दोनों पक्षों में संधि की संभावना रहती है |

नक्षत्रों की भूकंप आदि संज्ञाएँ
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विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से पांचवें को विद्युत्, सातवें नक्षत्र को भूकंप, आठवें को शूल, दसवें को अशनि, चौदहवें की निर्घातपात  ,पन्द्रहवें को दण्ड,अठारहवें को केतु,उन्नीसवें को उल्का, इक्कीसवें की मोह,बाइसवें की निर्घात,तेइसवें की कंप,चौबीसवें की कुलिश तथा पच्चीसवें की परिवेश संज्ञा होती है इन नक्षत्रों में कार्य आरम्भ करने पर प्रायः सफलता नहीं मिलती |

नक्षत्र एवम् वार के योग से उत्पन्न शुभाशुभ मुहूर्त
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अश्वनी आदि 27 नक्षत्रों तथा रवि आदि 7 वारों के संयोग से उत्पन्न शुभाशुभ प्रभाव देने वाले योगों का विभिन्न पुराणों और संहिताओं में वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है।

औत्पातिक योग 
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निम्नलिखित  वार तथा नक्षत्र के योग से औत्पातिक योग होता है जिनमें यात्रा तथा अन्य शुभ कार्य आरम्भ करने से उत्पात,रोग,हानि होने की संभावना रहती है |

वारनक्षत्ररविवारविशाखा अनुराधा ज्येष्ठासोमवारपूर्वाषाढ़ उत्तराषाढ श्रवणमंगलवारधनिष्ठा शतभिषा पूर्वा भाद्रपदबुधवारअश्वनी भरणीं रेवतीगुरूवाररोहिणी मृगशिरा आर्द्राशुक्रवारपुष्य आश्लेषा मघाशनिवारउत्तराफाल्गुनी हस्त चित्रा

अमृत योग
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रविवार को मूल,सोमवार को श्रवण ,मंगलवार को उत्तरा भाद्रपद,बुधवार को कृतिका,गुरूवार को पुनर्वसु, शुक्रवार को पूर्वा फाल्गुनी तथा शनिवार को स्वाति नक्षत्र हो तो अमृत योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि प्रदायक होता है |

सिद्धि योग
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रविवार को हस्त ,सोमवार को मृगशिरा  ,मंगलवार को अश्वनी ,बुधवार को अनुराधा ,गुरूवार को पुष्य , शुक्रवार को रेवती तथा शनिवार को रोहिणी  नक्षत्र हो तो सिद्धि योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि देने वाला  होता है |

विष योग
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रविवार को भरणी  ,सोमवार को चित्रा   ,मंगलवार को उत्तराषाढ ,बुधवार को धनिष्ठा  ,गुरूवार को शतभिषा , शुक्रवार को रोहिणी तथा शनिवार को रेवती नक्षत्र हो तो विष योग होता है जो अपने नाम के अनुसार  सभी कार्यों में अशुभ फलदायक होता है |

आनन्दादि योग
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क्रम रविवार सोमवार मंगलवार बुधवार गुरूवार शुक्रवार शनिवार आनन्दादि योग शुभाशुभ
फल1.अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा आनंदसिद्धि
2.भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद कालदंडमृत्यु
3.कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद धूम्रअसुख
4.रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती धातासौभाग्य
5.मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी सौम्यसुख
6.आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं ध्वांक्षधनक्षय
7.पुनर्वसुपूर्वा फाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका ध्वजसौभाग्य
8.पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी श्रीवत्ससंपदा
9.आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा वज्रक्षय
10.मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मुद्गरधनक्षय
11.पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु छत्रराजसम्मान
12.उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य मित्रपुष्टि
13.हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा मानससौभाग्य
14.चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा पद्मधनागम
15.स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी लुम्बधनहानि
16.विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तरा
फाल्गुनी उत्पातसंकट
17.अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त मृत्युमृत्यु
18.ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा काणक्लेश
19. मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वा
फाल्गुनी स्वाति सिद्धिकार्यसिद्धि
20.पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा शुभकल्याण
21.उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा अमृत राज सम्मान
22.अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा मूसल धन हानि
23.श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल गदविद्यालाभ
24.धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ मातंग कुलवृद्धि
25.शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ रक्ष महावृद्धि
26.पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित चर कार्यसिद्धि
27.उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण स्थिरगृहारम्भ
28.रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा प्रवर्द्धमानविवाह।

त्रिपुष्कर योग
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रवि, शनि तथा मंगलवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी )और तीन पाद एक ही  राशि में होने वाले नक्षत्र कृतिका,पुनर्वसु,उत्तराफाल्गुनी,विशाखा ,उत्तराषाढ तथा पूर्वा भाद्रपद हो तो त्रिपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि त्रिगुणित कही गयी है |

द्विपुष्कर योग 
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रवि ,शनि  या मंगलवार को भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी,द्वादशी )और दो पाद एक ही  राशि में होने वाले नक्षत्र मृगशिरा ,चित्रा या धनिष्ठा हो तो द्विपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि दुगनी होती है |

सिद्ध योग
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शुक्रवार को नंदा तिथि ( प्रतिपदा ,षष्टि ,एकादशी ) , बुधवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी ) , मंगलवार को जया तिथि ( तृतीया ,अष्टमी,त्रयोदशी ), शनिवार को रिक्ता तिथि ( चतुर्थी ,नवमी,चतुर्दशी ) तथा गुरूवार को पूर्णा तिथि ( पंचमी,दशमी,पूर्णिमा ) हो तो सिद्ध योग होता है जिसमें सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है |

दग्ध योग
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सोमवार को एकादशी,मंगलवार को पंचमी ,बुधवार को तृतीया ,गुरूवार को षष्टि ,शुक्रवार को अष्टमी तथा शनिवार को नवमी हो तो दग्ध योग होता है जिसमें आरम्भ किये कार्य सफल नहीं होते |

संवर्त योग
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रविवार को सप्तमी ,बुधवार को प्रतिपदा हो तो संवर्त योग होता है जो शुभ कार्यों में बाधक होता है |

चंडीशचंडायुध योग
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विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से तत्कालीन आश्लेषा,मघा,चित्रा अनुराधा रेवती या श्रवण नक्षत्र  तक की गणना करने पर जो संख्या आये वाही संख्या यदि अश्वनी नक्षत्र से तत्कालीन चन्द्र नक्षत्र की हो तो चंडीशचंडायुध योग होता है जिसमें शुभ कार्यों का आरम्भ वर्जित है |

पंचक नक्षत्र 
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धनिष्ठा के अंतिम दो चरण ,शतभिषा,पूर्वा भाद्रपद ,उत्तरा भाद्रपद और रेवती इन पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहा जाता है | ये पांचो  नक्षत्र  कुम्भ तथा मीन राशि के अंतर्गत हैं | पंचक लगने पर  लकड़ी और घास का संग्रह,दक्षिण दिशा की यात्रा ,मृतक का दाह संस्कार ,खाट बनवाना त्याज्य होता है | पंचकों में उपरोक्त कार्य करने पर अग्नि भय ,रोग,दण्ड ,हानि,और शोक होता है |
गण्डमूल नक्षत्र

पुराणों में गण्डमूल नक्षत्र
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पुराणों में अनेक स्थानों पर गंडांत नक्षत्रों का उल्लेख किय गया है |   रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ ,अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही गई हैं | मघा ,आश्लेषा ,ज्येष्ठा एवम मूल नक्षत्र भी गंडांत हैं | विशेषतः ज्येष्ठा तथा मूल के मध्य का एक प्रहर अत्यंत अशुभ फल देने वाला है | इस अवधि में उत्पन्न बालक /बालिका व उसके माता -पिता को जीवन का भय होता है | गंडांत नक्षत्रों  को सभी शुभ कार्यों में त्याग देना चाहिए | २८ वें दिन उसी नक्षत्र में गण्डमूल दोष की शांति कराने पर दोष की निवृति हो जाती है |

स्कन्द पुराण  के काशी खंड में सुलक्षणा नाम की कन्या का वर्णन है जिसका जन्म मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ था  तथा उस बाला के माता -पिता  दोनों का देहांत उस के जन्म  के कुछ समय के बाद ही हो गया था | नारद पुराण  के अनुसार मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण को छोड़ कर शेष चरणों में तथा ज्येष्ठा नक्षत्र के अंतिम चरण में  उत्पन्न संतान विवाहोपरांत अपने ससुर के लिए घातक होती है | ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न कन्या अपने जेठ के लिए  तथा विशाखा में उत्पन्न कन्या अपने देवर के लिए  अशुभ फल का संकेत कारक होती है |दिन में गंडांत नक्षत्र में उत्पन्न संतान पिता को रात्रि में माता को व संध्या काल में स्वयम को कष्ट कारक होता है |

ज्योतिष शास्त्र  में गण्डमूल नक्षत्र
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फलित ज्योतिष के  जातक पारिजात ,बृहत् पराशर होरा शास्त्र ,जातकाभरणं इत्यादि सभी   प्राचीन ग्रंथों में गंडांत नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है |अश्वनी ,आश्लेषा ,मघा ,ज्येष्ठा ,मूल तथा रेवती  नक्षत्र  गण्डमूल नक्षत्र हैं |

अश्वनी👉  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |

आश्लेषा👉 नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो शुभ ,दूसरे में धन हानि ,तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है |यह फल पहले दो  वर्षों में ही मिल जाता है

मघा👉 नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो माता के पक्ष को हानि ,दूसरे में पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |  

ज्येष्ठा👉  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो बड़े भाई को कष्ट ,दूसरे में छोटे भाई को कष्ट, तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है| यह फल पहले वर्ष में ही मिल जाता है | ज्येष्ठा नक्षत्र एवम मंगलवार के योग में उत्पन्न कन्या अपने भाई के लिए घातक होती है |

मूल👉 नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो पिता को कष्ट दूसरे में माता को कष्ट तीसरे में धन हानि तथा चौथे में शुभ होता है | मूल नक्षत्र व रवि वार के योग में उत्पन्न कन्या अपने ससुर का नाश करती है |यह फल पहले चार वर्षों में ही मिल जाता है

जातकाभरणं के अनुसार जन्म के समय  मूल नक्षत्र हो तथा कृष्ण  पक्ष की 3' 10 या शुक्ल पक्ष की 14 तिथि हो एवम मंगल ,शनि या बुधवार हो तो सारे कुल के लिए अशुभ होता है |मूल नक्षत्र के साथ राक्षस ,यातुधान ,पिता ,यम व काल नामक मुहुर्तेशों  के काल में जन्म हो तो गण्डमूल दोष का प्रभाव अधिक विनाशकारी होता है |

रेवती👉  नक्षत्र के चौथे चरण  में जन्म हो तो माता -पिता के लिए अशुभ तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |

अभुक्त मूल  ज्येष्ठा नक्षत्र की अंतिम दो घटियाँ तथा मूल नक्षत्र की आरम्भ  की दो घटियाँ अभुक्त मूल हैं जिनमें उत्पन्न बालक , कन्या  , कुल के लिए अनिष्टकारी होते हैं | इनकी शान्ति अति आवश्यक है।
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नक्षत्र जन्म फल

*नक्षत्र जन्म फल* :-
*अश्विनी नक्षत्र* क्षत्र:धनी, हंसमुख, सुंदर, बुद्दिमान, अच्छी पोशाक, आभूषण पहनने का शौक़ीन, गठीला शरीर, जनप्रिय | हर काम में होशियार | परोपकारी, यशस्वी, वाहन एवं नौकर युक्त| भाग्योदय २० वर्ष बाद , यशस्वी, एश्वर्य संपन्न, नम्र स्पष्ट वक्ता अस्थिर चरित्रवान | स्वार्थपूर्ति के लिए विश्वासघात भी कर ले | क्रूर गृह की दशा में सूर्य, मंगल व् गुरु के अंतर में शत्रु कष्ट, चोरी का भय |

*भरणी नक्षत्र* :सत्यवादी, स्वाथ्य अच्छा, बीमार कम रहे | सुमार्ग पर चले, सुखी स्त्रियों में आशक्त, अस्थिर मनोवृत्ति, अस्थिर विचार, विदेश गमन की इच्छा, दीर्घायु, शत्रु विजयी, भाग्योदय २५ वर्ष बाद | कभी चोट लगकर अंग भंग होना संभव | कम बोलने वाला, क्रूर व् कृतघ्न, नीच कर्म रत, क्रूर गृह की महादशा तथा चन्द्र – राहू – शनि की अंतर दशा में शत्रु – कष्ट, चोरी भय |

*कृतिका नक्षत्र* :कामी चरित्र हीन, कंजूस, कृतघ्न, मित्र एवं सम्बन्धियों से बिगाड़ हो | जिस  काम में  हाथ डाले उसे पूरा करके छोड़े | अच्छे भोजन आदि का शौक़ीन | स्त्रियों से मित्रता बढाने में सिद्धहस्त | किसी विशेष विषय में दक्ष | स्वेच्छानुसार कार्य करने वाला | बुद्दिमान लोभी, प्रसिद्ध,तेजस्वी, आशावादी, बाह्य व्यक्तित्व शानदार,  विद्वान देखने में भव्य | मुकदमेबाजी में रूचि रखने वाला चालाक | भाग्योदय २९ वर्ष बाद , क्रूर गृह की दशा तथा मंगल, गुरु, बुध, की अन्तर्दशा में शत्रुकष्ट चोरी का भय |

*रोहिणी नक्षत्र* :सुंदर आकर्षक लुभावना व्यक्तित्व, सत्य एवं मधुर भाषी जनप्रिय कार्य पटु कलाकार सांसारिक कार्य बुद्धि से संपन्न करे दृढ प्रतिज्ञ | रात का जन्म होतो झूठ बोलने वाला | कठोर मन वासना अधिक वासना पूर्ती के लिए कुछ भी कर सकता है | भोगी धन व् स्मरण शक्ति तीव्र , नेत्र बड़े ललाट चौड़ा आलसी भाग्योदय ३० वर्ष के पश्चात | क्रूर गृह की दशा में राहू शनि व् केतु के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का भय |

*मृगशिरा नक्षत्र*  :शोख तबियत स्त्रियों से संपर्क रखे | कामी तीव्र गति से चले घमंडी छोटी छोटी बात पर बिगड़े  क्रोधी चालाक काम निकालने में निपुण | लड़ाई फसाद के कामों में रूचि रखे, प्रियजन के अनादर में खुश रहे, डरपोक विद्वान् विवेकशील यात्रा में रूचि, धन संतान व् मित्रों से युक्त, विद्वान होते हुए भी  चंचल वृत्ति, अभिमान की मात्रा विशेष रहे | भाग्योदय २८ वर्ष पश्चात क्रूर गृह की दशा गुरु – बुध, शुक्र के अंतर में शत्रु – कष्ट चोरी का भय |

*आद्रा नक्षत्र* :नम्र स्वभाव मजबूत दिल बुद्दिमान कोई कष्ट आये तो घबराये नहीं | जो कमाए खर्च हो जाए | अन्नादि का भी संग्रह न हो पाए | धन दौलत के सुख से वंचित रहे | अच्छे कामों में रूचि रखे | विचलित मन मस्तिष्क वाला, बलवान क्षुद्र व् ओछे विचार युक्त कम शिक्षित आडम्बरी धार्मिक कामों में व्यर्थ प्रदर्शन करने वाला | ये प्राय: फिटर ओवेरसिएर, फोरमैन, इंजनीयर इत्यादि होते हैं | भाग्योदय २५ वर्ष बाद में होता है | क्रूर गृह की दशा में शनि – केतु – सूर्य के अंतर में शत्रु – कष्ट चोरी का भय |

*पुनर्वसु नक्षत्र* :बुद्दिमानविद्वान् शीतल स्वभाव बहु मित्रों वाला संतान सुख युक्त, श्वेत वस्तुओं में रूचि, सफर बहुत करे | काव्य प्रेमी माता  पिता का भक्त | आनंदमय जीवन | अपने कार्यों में प्रसिद्धी प्राप्त करे | परोपकारी होते हुए भी स्वस्वार्थ में कमी नहीं आने देता, प्यास खूब लगती है | अहंकारी दुष्ट, दुर्बुद्दी – दुष्कर्मी , मुर्ख परिजन को दुःख व् कष्ट देने वाला गरीब | भाग्योदय २४ वर्ष के पश्चात, क्रूर गृह की दशा में बुध – शुक्र – चन्द्र के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का भय |

*पुष्य नक्षत्र* :बुद्दिमान, सुशील होशियार धर्म में आस्था रखे | कामी दुसरे का काम संवारने का प्रयत्न करे, जो मिले सो खा लेवे | दुसरे की बात शीघ्र समझने वाला | चतुर कार्य दक्ष सुन्दर मेधावी सत्यवादी कुटुंब प्रेमी विशाल ह्रदय माना प्रेमी ईश्वर भक्त राज्य पक्ष से सम्मानित वाक् पटु कार्य कुशल देव – गुरु – अतिथि प्रेमी | द्रढ़ देहि करुण मन | कवि लेखक पत्रकार वकील अध्यन – अध्यापन में रूचि लेने वाला | प्रशासनिक कार्यों में दक्ष वस्त्राभूषण नौकर वाहन युक्त होता है | भाग्योदय ३५ वर्ष पश्चात | समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त, क्रूर गृह की दशा में केतु, सूर्य व् मंगल के अंतर में शत्रु  कष्ट चोरी का भय |

*आश्लेषा नक्षत्र*: नेक कामों की नक़ल करे कुटुंब बड़ा हो साधू संतों की सेवा करे | अपनी अकड में रहे किसी को भी खातिर में नहीं लाये | सदैव अपना फायदा सोचे नेकी बुराई की परवाह नहीं करे, रिश्तेदारों से अनबन रहे शराब आदि में ज्यादा रूचि रखे, झूठा, कृतघ्न धूर्त लम्पट अत्यंत क्रोधी दुराचारी निर्लज्ज शत्रु विजयी औषधी व्यापार में लाभ, परस्त्रीगामी वासना की पूर्ती के लिए निम्नतम काम करने के लिए तैयार हो जाता है  | अविश्वास की  चरम सीमा को पार करने वाला होता है |भाग्योदय  ३० वर्ष पश्चात  होता है क्रूर गृह की महादशा में शुक्र चन्द्र राहु के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का भय होता है |                                                                                                           
*मघा नक्षत्र* :धनवान पत्नी से प्यार करने वाला खुशहाल माता पिता की सेवा करने वाला चतुर व्यवहार कुशल व्यापार में लाभ कमाने वाला, योजनाकार काम पिपासु अस्थिर चित्तवृत्ति किन्तु अत्यंत साहसी | स्वास्थ्य निर्बल रहना घमंडी किन्तु परिश्रमी अपने अहं पूर्ति के लिए कुछ भी करने वाला | धनाड्य किन्तु स्त्रियों में आशक्त रहने वाला व्यर्थ वाद विवाद में समय व्यतीत होना | किसी भी  बात की जड़ तक पहुँचने की क्षमता रखना | भाग्योदय २५ वर्ष के बाद होना | क्रूर गृह की दशा में सूर्य मंगल व् गुरु के अंतर दशा में शत्रु कष्ट एवं चोरी का भय |

*पूर्वा – फाल्गुनी* :इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला शत्रु विजयी, होशियार हर काम में निपुण मृदु भाषी दिलखुश बड़े लोगों से सम्बन्ध रखने वाला | स्त्रियों के लीये आकर्षक विधावान किसी सरकारी काम से सम्बन्ध रखने वाला एवं राजकीय सम्मान पाने  वाला | शफर का शौक़ीन व् दानी होता है |वस्त्राभूषण वाहन धनवान व् संतान युक्त व् नृत्य – संगीत प्रेमी होता है | हंसी  मजाक व् चापलूसी करने में  माहीर होता है | अधिक मित्रवान होता है तथा  सुंदर सुगठित शरीर वाला उग्र स्वभाव वाला नेतृत्व प्रधान जीवन  जीने वाला | भाग्योदय २८ – ३२ वर्ष के बीच में होगा, क्रूर गृह की महादशा में चन्द्र राहु शनि के  अंतर दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता है |

*उत्तर – फाल्गुनी* : धनी व् धन इकठ्ठा करने वाला विलासी व् पहलवानी का शौक करने वाला तथा कुशाग्र बुद्धि वाला एवं मृदुभाषी सत्य बोलने वाला, दूसरों का काम दिल से करने वाला अधिक संतान वाला अपनी मेहनत के बल पर धनी बनने वाला | पत्नी से मनमुटाव व् घर में कलेश रहना गृहस्थ जीवन में भाग्योदय ३० – ३२ वर्ष की उम्र में होना | क्रूर गृह  की महादशा में मंगल गुरु व् बुध के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का  भय  हो सकता है |

*हस्त नक्षत्र* :अपनी जाति बिरादरी में मुखिया बन सकता है | विरोधियों से लड़ना झगड़ना, झूठ  व् धोखेबाजी की आदत होना भाई बंधुओं से दूर रहना चरित्र हीन क्रोधी शराबी होना पत्नी रोगी होना व् संतान का गलत आदतों में पड़ना | अशांत मन रहना भाग्यशाली सम्मानित व् सुखी होना निर्दयी होना | आजीवन कलह वाला वातावरण बनाये रखना स्वभाव से क्रूर होना | बुरे कार्य करना डकैती डालना व् हिंसा करना आदि | भाग्योदय ३०- ३२ वर्ष में होना | क्रूर गृह की महादशा में राहु – शनि - केतु के अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय बना रहना |

*चित्रा नक्षत्र* : चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाला बुद्धिमान साहसी धनवान दानी सुशील शरीर सुन्दर स्त्री व् संतान का सुख पाने वाला होता है | धर्म में आस्था रखने वाला व् आयुर्वेद को जानने वाला, भवन निर्माण में रूचि रखने वाला होता है | सौंदर्य प्रसाधन प्रेमी चित्रकला व् अभिनय का जानकार बहुमूल्य वस्तुओं का व्यापार करने वाला तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला, गायन गणित व् औषधियों तथा लेखनकला से धनोपार्जन करने वाला होगा | भाग्योदय ३३ से ३८ वर्ष में होगा | क्रूर गृह की महादशा में गुरु, बुध, शुक्र, के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा|

*स्वाति नक्षत्र* : समझदार शीतल स्वभाव मित्रवत  होशियार व् व्यापार में  निपुण  होगा | कुशल व्यवसायी व् व्यापार तथा बौद्धिक कार्यों  द्वारा मनचाहा लाभ अर्जित करना व् यस प्राप्त करना | शिक्षा अधूरी छोड़नी पद सकती है, आर्थिक द्रष्टि से संपन्न व् ऐश्वर्यशाली होगा | अपने समाज में पूर्ण  सम्मान प्राप्त करेगा | इंजीनियर व् टेक्नीकल  कार्य करेगा परोपकारी व् साधू संतों की सेवा करने वाला बनेगा |भाग्योदय ३० से ३६ वर्ष में होगा | क्रूर गृह के महादशा में  शनि, केतु, सूर्य के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |

*विशाखा नक्षत्र* :इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला सुंदर धनवान मगर खोटे कामों में रूचि रखने वाला व् लड़ाई झगडा करने वाला, कृपन लोभी वाक्पटु सामान्य बुद्धि वाला क्रोधी अहंकारी दम्भी कामासक्त शराबी जुआरी स्त्री के वशीभूत होने वाला पाप पुण्य से दूर रहने वाला मतलबी अचानक धन प्राप्त करने वाला शत्रु विजयी |भाग्योदय २१-२८-३४ वर्ष में होगा | कलह पूर्ण जीवन यापन करना | क्रूर गृह के महादशा में बुध, शुक्र, चन्द्र, के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा|

*अनुराधा नक्षत्र* : शक्तिशाली व् स्थूल शरीर वाला धनवान मान,सम्मान, पाने वाला, विधा कला व् काम धंधे में निपुण ज्यादा शफर करने वाला होगा | अस्थिर मनोवृत्ति साहसी पराक्रमी मिलनसार  यशस्वी स्वालंबी रौबीला  सुन्दर व्यतित्व का धनी बहुत खाने वाला धार्मिक अध्ययनशील एकांत प्रिय दानी सहिष्णु होगा | सरकारी नौकरी पाने वाल स्वार्थ पूर्ती हेतु छल प्रपंच करने वाला मृदुभाषी स्त्रियों के दिलों में राज करने वाला होगा |  भाग्योदय ३९ वर्ष पश्चात होगा | क्रूर गृह की महादशा में केतु सूर्य मंगल के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय  रहेगा

*ज्येष्ठा नक्षत्र*:चतुर सभी कार्यों में होशियार बहुमित्र संतोषी शीतल स्वभाव कला की शौक़ीन क्रोधी धर्म के अनुरूप चलने वाली पराई स्त्री पर आशक्त होने वाला | सम्पूर्ण विधा का ज्ञान प्राप्त करना सुन्दर व्यतित्व वाला अपने कार्य में दक्ष अच्छी संतान प्राप्त करने वाला, गृहस्थ जीवन का अधूरा सुख प्राप्त करने वाला कवि लेखक पत्रकार साहित्यकार प्रशाशक निरीक्षक वकील चार्टर्ड एकाउंटेंट आदि हो सकते हैं | उम्र के २७,३१,४९ वर्ष स्वास्थ्य की द्रष्टि ठीक नहीं रहेंगे| क्रूर गृह की महादशा में शुक्र,चन्द्र,राहु, की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |

*मूल नक्षत्र* :विशाल ह्रदय दानी गंभीर धनी अपने समाज में सम्मान पाने वाला कमजोर स्वास्थ्य प्रायः बीमार रहने वाला वाकपटु चतुर  कृतघ्न दुष्ट धूर्त विश्वासघाती स्वार्थी वाचाल लोकप्रिय हिंसक क्रोध करने वाला होता है व् उसके जीवन में बार - बार दुर्घटनाएँ होती हैं | भाग्योदय २७ या ३१ वें वर्ष  में  होता  है | क्रूर गृह की  महादशा में सूर्य मंगल गुरु की अंतर दशाओं में शत्रु कष्ट व् चोरी का  भय रहेगा |

*पूर्वा-आषाढ़ नक्षत्र* :बुद्धिमान उपकारी सबका मित्र सभी कामों में होशियार संतान के प्रति सुखी, उदार स्वाभिमानी, शत्रुहंता, श्रेष्ठ मित्रों वाला अधिक धन नहीं होने पर भी कोई काम नहीं रुकना, भाग्यशाली, कार्य कुशल, यशस्वी, पत्नी का भी पूर्ण सुख रहता है | भाग्योदय २८ वें वर्ष में होता है | क्रूर गृह की महादशा में चन्द्र, राहू, शनि, की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय होता है |

*उत्तरा-आषाढ़ नक्षत्र* : परोपकारी,मान सम्मान पाने वाला,होशियार, चतुर, बहादुर,संगीत प्रेमी, विनम्र शांत स्वभाव वाला, धार्मिक सुखी, सर्व प्रिय, विद्वान, बुद्धिमान, मेहनती धनी, सट्टेबाजी आदि का शौक पालना, तश्करी एवं अन्य कुसंगति में पड़ना, कामुक व् वेश्यागामी होना, जीवन में अनायास ही धन की प्राप्ति होना | भाग्योदय ३१ वें वर्ष में होगा, क्रूर गृह की महादशा में मंगल,गुरु, बुध, के अंतरदशा में शत्रु-कष्ट व् चोरी का भय रहता है |

*श्रवण नक्षत्र* : धनी बहुत बोलने वाला, गंभीर बुद्धिमान साहसी प्रसिद्द नेकनाम व् पत्नी सुन्दर हो | राग विधा गणित ज्योतिष में लगाव रखे, असंकुचित विचार दुसरे के दिल से भेद पाए | १९ – २४ वा वर्ष खराब रह सकता है | विवेकी विद्वान उच्च विचार धार्मिक शोभायमान व्यक्तित्व, उच्च पदाधिकारी बन सकता है काव्य संगीत में रूचि रखने वाला सिनेमा प्रेमी होगा | क्रूर गृह की महादशा में राहु – शनि – केतु के अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता है |

*धनिष्ठा नक्षत्र* : राग विधा में अधिक रूचि रखने वाला होगा | भाई बंधुओं से बहुत प्यार रखे | धनी नेकनाम साहसी अच्छे काम करने वाला व् स्त्री का प्यारा होगा | सरकारी कार्य से सम्बन्ध रहेगा व् जवाहरात पहनने का शौक़ीन होगा तथा लोगों में इज्जत व् मान सम्मान प्राप्त करेगा | १५, १९, २३, वर्ष शुभ नहीं होंगे | धर्मं कर्म में लिप्त रहने वाला एश्वर्या संपन्न उदार व् समाज में सम्मान पाने वाला होगा | वासना ग्रस्त कामुक व् परस्त्रीरत हो सकता है | पत्नी व् पत्नी पक्ष से हमेशा दबा रहेगा लोभी तथा स्त्रियों से लुटने वाला होगा | क्रूर गृह की महादशा में गुरु, बुध, शुक्र, की अंतर दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता है |

*शतभिषा नक्षत्र* : धनी सत्यवादी दानी प्रसिद्द अच्छे काम करने वाला बुद्धिमान होशियार सफल शत्रु विजेता इज्जत प्राप्त करने वाला होता है | सरकार से सम्मान प्राप्त करने वाला दूसरी स्त्री से लगाव रखने वाला तथा २८ वाँ वर्ष विशेष महत्वपूर्ण हो सकता है | सत्य भाषी परन्तु जुआरी, व्यसनी सट्टेबाज साहसी परन्तु शांत स्वभाव में कठोरता निडर ज्योतिष प्रेमी साधारण धन एवं दुसरे के माल को हड़पने की इच्छा हमेशा बनी रहती है | क्रूर गृह के महादशा में शनि केतु सूर्य की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |

*पूर्वा-भाद्रपद नक्षत्र* : धनी सुंदर बहुत बोलने वाला, विधावान कला कुशल एवं अधिक सोने वाला कई पत्नियों वाला, संतान से सुख प्राप्त करने वाला छोटी छोटी बातों में गुस्सा होने वाला होता है| भाग्योदय १९ से २१ वर्ष में होता है | अपने कार्य में दक्ष व् चतुर तथा धूर्त व् डरपोक धनवान होते हुए भी निर्धन हो जाता है | कम सहन शक्ति वाला विचारों में कामुकता वाला, स्त्रियों से धोखे खाना वाला, पत्नी स्वभाव से चंचंल व् उग्र होती है, गृहस्थ जीवन सामान्य रहेगा | क्रूर गृह के महादशा में बुध, शुक्र, चन्द्र, के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |

*उत्तरा-भाद्रपद नक्षत्र* : सुन्दर पराक्रमी साहसी बुद्धिमान रंग गोरा वाचाल दानी शत्रु विजेता धर्मात्मा धनवान होता है | उदार परोपकारी, सुखी, धन-धान्य व् संतान युक्त जीवन | अध्ययनशील, शास्त्रों के ज्ञाता वाक्पटु जिम्मेदार, लेखक, पत्रकार, संगीतज्ञ, सफल गृहस्थ जीवन, म्रदु भाषी पत्नी वाला होता है | भाग्योदय २७ से ३१ वर्ष में संभव है | क्रूर गृह की महादशा में केतु, सूर्य, मंगल, की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट एवं चोरी का भय रहता है |

*रेवती नक्षत्र* : माता पिता की सेवा करने वाला, बुद्धिमान साधू स्वभाव तेज वाणी व् मित्रों से खुश रहने वाला होता है | शरीर पुष्ट निरोगी काया साहसी एवं सर्वप्रिय धनवान सुपुत्रवान कामातुर सुन्दर चतुर मेधावी, कुशाग्रबुद्धि, सलाह देने में होशियार,अच्छा व्यापारी, कवि लेखक, पत्रकार,निबंधकार, उपन्यासकार आदि होता है| स्वभाव शौम्य दृढ निश्चय वाला, प्रतिभाशाली सर्वगुण संम्पन्न सुन्दर पत्नी वाला चरित्रवान गृह कार्य में दक्ष मधुर भाषी होता है | १७ वें, २१ वें,२४ वें वर्ष ठीक नहीं होंगे | क्रूर गृह की महादशा में शुक्र- चन्द्र – राहु की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता |

*अभिजीत नक्षत्र* : अभिजीत नक्षत्र में जन्म लेने वाला सुन्दर होशियार अपराजित दृढ निश्चयी व् भाग्यवान धनवान सर्वगुण संपन्न मेहनत करने वाला शक्तिशाली व्यक्ति होता है।उपरोक्त नक्षत्र बहुत कम उपयोग में लाया जाता है, इसलिए ज्यादातर लोग इसका वर्णन कम ही करते हैं।