Tuesday, 30 July 2019

उपग्रहों का वर्णन

भारतीय वैदिक ज्योतिष के ग्रंथो में मुख्य रूप से नव ९ उपग्रहों का वर्णन मिलता है। ग्रहो का ग्रह ही उपग्रह कहलाता है। जिस प्रकार ग्रह जिस भाव में होता है अपने सामर्थ्यानुसार उस भाव से सम्बंधित फल देता है उसी प्रकार उपग्रह भी जन्मकुंडली के जिस भाव में होगा उसके अनुसार शुभ और अशुभ फल प्रदान करता है। गुलिक अथवा मांदी शनिदेव का उपग्रह माना गया है। इन्हे शनिदेव का पुत्र भी कहा जाता है। जिस प्रकार शनि देव की गणना अशुभ ग्रह के रूप में होती है उसी प्रकार गुलिक वा मांदी को भी पापी, क्रूर तथा कष्ट देने वाला ग्रह माना गया है।

ज्योतिष में 9 उपग्रह कौन कौन है

गुलिक | मांदी

यमकंटक

अर्धप्रहर

काल

धूम

व्यतिपात

परिवेश | परिधि

इन्द्रचाप

उपकेतु

1. गुलिक अथवा मांदी :- गुलिक उपग्रह का प्रभाव शनि की तरह होता है। इसे शनि का उपग्रह भी माना गया है। गुलिक का फल शुभ नहीं कहा गया है प्राय जिस भाव में बैठता है उस भाव के फल को खराब ही करता है। गुलिक केवल छठे तथा ग्यारहवे भाव में शुभ फल प्रदान करता है।

2 . यम कंटक :– यमकंटक गुरु ग्रह कि तरह ही शुभ फल प्रदान करता है। इस उपग्रह के अंदर शुभता होती है। यम कंटक जिस भाव, ग्रह इत्यादि से सम्बन्ध बनाता है उस भाव /ग्रह आदि के शुभ फलो कि वृद्धि करता है।

3 . अर्धप्रहर :– अर्धप्रहर उपग्रह का स्वभाव बुध ग्रह कि तरह होता है। अर्धप्रहर जिस भाव में हो यदि उस भाव कोअष्टक वर्ग में अधिक बिंदु प्राप्त है तब उस भाव के शुभ फलो कि वृद्धि होती है।

4 . काल :--इसका स्वभाव राहू कि ही तरह होता है या यू कहे की काल राहु का उपग्रह है।

5 . धूम :– धूम उपग्रह का गुण मंगल ग्रह की तरह होता है। इसका प्रभाव अग्नि, विस्फोट,देह में जलन ,गर्मी ,मन में घबराहट बेचैनी आदि बताता है। लग्न /लग्नेश पर यदि धूम का प्रभाव है तो उपर्युक्त फल की सम्भावना बढ़ जाती है।

6 . व्यतीपात :– जिस प्रकार किसी धारदार हथियार से कष्ट होता है उसी तरह व्यतिपात उपग्रह का प्रभाव होता है। व्यतिपात हमें वाहन दुर्घटना ,जानवरों से कष्ट इत्यादि की ओर संकेत करता है। यदि लग्न अथवा लग्नेश या दोनों पर व्यतिपात का प्रभाव है तो ऐसे फल कि सम्भावना बढ़ जाती है

7 . परिवेष/परिधि :– यदि परिधि का सम्बन्ध लग्न /लग्नेश से होता है तो जातक को लीवर ,किडनी कि समस्या ,जलोदर रोग, जल से दुर्घटना ,पेट में पानी भर जाना, धातु कि बीमारी ,जल में डूबने का भय ,जेल जाने इत्यादि की ओर संकेत करता है। अतः जातक को उपर्युक्त कष्ट से बचने का उपाय करना चाहिए।

8 . इंद्रचाप :– इसका प्रभाव लग्न /लग्नेश से होने पर,किसी भारी वस्तु के शरीर के ऊपर गिर जाने से या किसी वाहन से गिर कर चोट लगने कि सम्भावना होती है। ऐसे जातक को आंधी तूफान के समय किसी अधबने /कच्चे मकान के या किसी पेड़ के नीचे आश्रय नहीं लेनी चाहिए।

9 . उप केतु :- यदि उपग्रह किसी भी तरह लग्न अथवा लग्नेश से होता है तो वह जातक धोखा, षड्यंत्र , बिजली के गिरने से कष्ट इत्यादि का शिकार होता है।

Monday, 29 July 2019

पवमानसूक्त

पवमानसूक्त
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ कही गयी हैं, जिनमें शौनकीय तथा पैप्पलाद शाखा मुख्य हैं । शौनकीय शाखा की संहिता तो उपलब्ध है, किंतु पैप्पलादसंहिता प्रायः उपलब्ध नहीं होती । इसी पप्पलादसंहिता में २१ मन्त्रात्मक एक सूक्त पठित है, जो ‘पवमानसूक्त’ कहलाता है । वेद में पवमान शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद को पावमानी ऋचाएँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, जो प्रायः अभिषेक आदिके समय पठित होती हैं। ऋग्वेद में इस शब्द को प्रयोग सोम के लिये हुआ है, जो स्वतः छलनी के मध्य से छनकर शुद्ध होता है । अन्यत्र कहीं इसका वायु अर्थ में तो कहीं अग्नि अर्थ में प्रयोग हुआ है । पवमान का शाब्दिक अर्थ है शुद्ध होनेवाला या शुद्ध करनेवाला । अतः पवमानपरक मन्त्र पवित्र करनेवाले हैं । पैप्पलादीय इस पवमानसूक्त में पवमान सोम से पवित्र करने की प्रार्थना की गयी है –
सहस्राक्षं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १ ॥ 
जो सहस्रों नेत्रवाला, सैकड़ों धाराओं में बहनेवाला तथा ऋषियोंसे पवित्र किया गया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १ ॥


येन पूतमन्तरिक्षं यस्मिन्वायुरधिश्रितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २ ॥ 
जिससे अन्तरिक्ष पवित्र हुआ है, वायु जिसमें अधिष्ठित है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २ ॥


येन पूते द्यावापृथिवी आपः पूता अथो स्वः ।
तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ३ ॥ 
जिससे द्युलोक और पृथिवी, जल और स्वर्ग पवित्र किये गये हैं, उन सहस्त्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ३ ॥


येन पूते अहोरात्रे दिशः पूता उत येन प्रदिशः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ४ ॥
जिससे रात और दिन, दिशा-प्रदिशाएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ४ ॥


येन पूतौ सूर्याचन्द्रमसौ नक्षत्राणि भूतकृतः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ५ ॥
जिससे सूर्य और चन्द्रमा, नक्षत्र और भौतिक सृष्टि रचनेवाले पदार्थ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ५ ॥


येन पूता वेदिरग्नयः परिधयः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ६ ॥
जिससे वेदी, अग्नियाँ और परिधि पवित्र की गयी हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ६ ॥


येन पूतं बर्हिराज्यमथो हविर्येन पूतो यज्ञो वषट्कारो हुताहुतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ७ ॥ 
जिससे कुशा, आज्य, हवि, यज्ञ और वषट्कार तथा हवन की हुई आहुति पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ७ ॥


येन पूतौ व्रीहियवौ याभ्यां यज्ञो अधिनिर्मितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ८ ॥
जिसके द्वारा व्रीहि और जौ (अर्थात् प्राणापान) पवित्र हुए हैं, जिससे यज्ञका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ८ ॥


येन पूता अश्वा गावो अथो पूता अजावयः ।
तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ९ ॥ 
जिससे अश्व, गौ, अजा, अवि [और पुरुषसंज्ञक] प्राण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ९ ॥


येन पूता ऋचः सामानि यजुर्जाह्मणं सह येन पूतम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥ १० ॥ 
जिसके द्वारा ऋचाएँ, साम, यजु और ब्राह्मण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधारके द्वारा पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १० ॥

येन पूता अथर्वाङ्गिरसो देवताः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ११ ॥
जिससे अथर्वाङ्गिरस और देवता पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ११ ॥


येन पूता ऋतवो येनार्तवा येभ्यः संवत्सरो अधिनिर्मितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १२ ॥ 
जिससे ऋतु तथा ऋतुओं में उत्पन्न होनेवाले रस पवित्र हुए हैं, एवं जिससे संवत्सरका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १२ ॥


येन पूता वनस्पतयो वानस्पत्या ओषधयो वीरुधः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १३ ॥
जिससे वनस्पतियाँ, पुष्पसे फल देनेवाले वृक्ष, ओषधियाँ और लताएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १३ ॥


येन पूता गन्धर्वाप्सरसः सर्पपुण्यजनाः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १४ ॥ 
जिससे गन्धर्व और अप्सराएँ, सर्प और यक्ष पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १४ ॥


येन पूताः पर्वता हिमवन्तो वैश्वानराः परिभुवः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १५ ॥ 
जिससे हिममण्डित पर्वत, वैश्वानर अग्नियाँ और परिधि पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १५ ॥


येन पूता नद्यः सिन्धवः समुद्राः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १६ ॥ 
जिससे नदियाँ, सिंधु आदि महानद और सागर पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १६ ॥


येन पूता विश्वेदेवाः परमेष्ठी प्रजापतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १७ ॥ 
जिससे विश्वेदेव और परमेष्ठी प्रजापति पवित्र हुए हैं, उसे सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १७ ॥


येन पूतः प्रजापतिर्लोकं विश्वं भूतं स्वराजभार ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १८ ॥
जिससे पवित्र होकर प्रजापतिने समस्त लोकको, भूतोंको और स्वर्गको धारण किया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १८ ॥


येन पूतः स्तनयित्नुरपामुत्सः प्रजापतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १९ ॥ 
जिससे विद्युत् और जलोंके आश्रय प्रजापालक मेघ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सौमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १९ ॥


येन पूतमृतं सत्यं तपो दीक्षां पूतयते ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २० ॥ 
जिससे ऋत और सत्य पवित्र हुए हैं, जो तप और दीक्षाको पवित्र करता है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २० ॥


येन पूतमिदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २१ ॥
जिससे जो कुछ भूत और भविष्य है, सभी पवित्र हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २१ ॥


Wednesday, 17 July 2019

कुबेरकृत शिवस्तुति


धनद उवाच
स्वामी त्वमेवास्य चराचरस्य, विश्वस्य शंभो न परोऽस्ति कश्चित्।
त्वामप्यवज्ञाय यदीह मोहात्प्रगल्भते कोऽपि स शोच्य एव।।

त्वमष्टमूर्त्या सकलं बिभर्षि, त्वदाज्ञया वर्तत एव सर्वम्।
तथाऽपि वेदेति बुधे भवन्तं, न जात्वविद्धान्महिमा पुरातनम्।।

मलप्रसूतं यदवोचदम्बा हास्यात्सुतोऽयं तव देव शूरः।
त्वत्प्रेक्षिताद्य स च विघ्नराजो, जज्ञे त्वहो चेष्टितमीशदृष्टेः।।

अश्रुप्लुताङ्गी गिरिजा समीक्ष्य, वियुक्तदांपत्यमितीशमूचे।
मनोभवोऽभून्मदनो रतिश्च, सौभाग्यपूर्वत्वमवाप सोमात्।।