Saturday, 29 May 2021

मयूरेश स्तोत्रं

|| अथ श्री मयूरेश स्तोत्रं || 
ब्रह्मोवाच 
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा | 
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं ह्रदि स्थितम् | 
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया | 
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् | 
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् || 

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् | 
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् | 
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् | 
भक्तानंदकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् | 
समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् || 

सर्वज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् | 
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् | 
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् || 

मयूरेश उवाच 
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम् | 
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् || 
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् | 
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् || 

|| श्री मयूरेश स्तोत्रं सम्पूर्णं ||

Saturday, 23 January 2021

।श्री नीलकंठ स्तोत्रम।।

।श्री नीलकंठ स्तोत्रम।।


विनियोग -

ॐ अस्य श्री भगवान नीलकंठ सदा-शिव-स्तोत्र मंत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्ठुप छन्दः, श्री नीलकंठ सदाशिवो देवता, ब्रह्म बीजं, पार्वती शक्तिः, मम समस्त पाप क्षयार्थंक्षे म-स्थै-आर्यु-आरोग्य-अभिवृद्धयर्थं मोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनार्थं च श्री नीलकंठ-सदाशिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास -

श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसेनमः मुखे। श्री नीलकंठ सदाशिव देवतायै नमः हृदि। ब्रह्म बीजाय नमः लिंगे। पार्वती शक्त्यैनमः नाभौ। मम समस्त पाप क्षयार्थंक्षेम-स्थै-आर्यु-आरोग्य-अभिवृद्धयर्थं मोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनार्थंच श्री नीलकंठ-सदाशिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे जविनियोगाय नमः सर्वांगे।

स्तोत्रम्

ॐ नमो नीलकंठाय, श्वेत-शरीराय, सर्पा लंकार भूषिताय, भुजंग परिकराय, नागयज्ञो पवीताय, अनेक मृत्यु विनाशाय नमः। युग युगांत काल प्रलय-प्रचंडाय, प्र ज्वाल-मुखाय नमः। दंष्ट्राकराल घोर रूपाय हूं हूं फट् स्वाहा। ज्वालामुखाय, मंत्र करालाय, प्रचंडार्क सहस्त्रांशु चंडाय नमः। कर्पूर मोद परिमलांगाय नमः।

ॐ इंद्र नील महानील वज्र वैलक्ष्य मणि माणिक्य मुकुट भूषणाय हन हन हन दहन दहनाय ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोर घोर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बंध बंध घातय घातय हूं फट् जरा मरण भय हूं हूं फट्‍ स्वाहा। आत्म मंत्र संरक्षणाय नम:।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं स्फुर अघोर रूपाय रथ रथ तंत्र तंत्र चट् चट् कह कह मद मद दहन दाहनाय ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोर घोर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बंध बंध घातय घातय हूं फट् जरा मरण भय हूं हूं फट् स्वाहा।

अनंताघोर ज्वर मरण भय क्षय कुष्ठ व्याधि विनाशाय, शाकिनी डाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बंधनाय, अपस्मार भूत बैताल डाकिनी शाकिनी सर्व ग्रह विनाशाय, मंत्र कोटि प्रकटाय पर विद्योच्छेदनाय, हूं हूं फट् स्वाहा। आत्म मंत्र सरंक्षणाय नमः।

ॐ ह्रां ह्रीं हौं नमो भूत डामरी ज्वालवश भूतानां द्वादश भू तानांत्रयो दश षोडश प्रेतानां पंच दश डाकिनी शाकिनीनां हन हन। दहन दारनाथ! एकाहिक द्वयाहिक त्र्याहिक चातुर्थिक पंचाहिक व्याघ्य पादांत वातादि वात सरिक कफ पित्तक काश श्वास श्लेष्मादिकं दह दह छिन्धि छिन्धि श्रीमहादेव निर्मित स्तंभन मोहन वश्याकर्षणोच्चाटन कीलना द्वेषण इति षट् कर्माणि वृत्य हूं हूं फट् स्वाहा।

वात-ज्वर मरण-भय छिन्न छिन्न नेह नेह भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर तापज्वर बालज्वर कुमारज्वर अमितज्वर दहनज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर रूद्रज्वर मारीज्वर प्रवेशज्वर कामादि विषमज्वर मारी ज्वर प्रचण्ड घराय प्रमथेश्वर! शीघ्रं हूं हूं फट् स्वाहा।


।।ॐ नमो नीलकंठाय, दक्षज्वर ध्वंसनाय श्री नीलकंठाय नमः।।


।।इतिश्री नीलकंठ स्तोत्रम संपूर्ण:।।

Tuesday, 19 January 2021

गणाधिपस्तोत्रं

गणाधिपस्तोत्रम् 
 सरागिलोकदुर्लभं विरागिलोकपूजितम् । 
सुरासुरैर्नमस्कृतं जरादिमृत्युनाशकम् । 
गिरागुरुं श्रिया हरिं जयन्ति यत्पदार्चकाः । 
नमामि तं गणाधिपं कृपापयःपयोनिधिम् ॥ १ ॥ 
गिरीन्द्रजामुखाम्बुजप्रमोददानभास्करम् । 
करीन्द्रवक्त्रमानताघसंघवारणोद्यतम् । 
सरीसृपेशबद्धकुक्षिमाश्रयामि सन्ततम् । 
शरीरकान्तिनिर्जिताब्जबन्धुबालसन्ततिम् ॥ २ ॥ 
शुकादिमौनिवन्दितमं गकारवाच्यमक्षरम् । 
प्रकाशमिष्टदायिनं सकामनभ्रपङकये । 
चकासनं चतुर्भुजैर्विकासिपद्मपूजितम् । 
प्रकाशितात्मतत्त्वकं नमाम्यहं गणाधिपम् ॥ ३ ॥ 
नटाधिपत्वदायकं स्वरादिलोकदायकम् । 
जरादिरोगवारकं निराकृतासुरव्रजम् । 
कराम्बुजैरनसृणीन्विकारशून्यमानसैः । 
हृदा सदा विभावितं मुदा नमामि विघ्नपम् ॥ ४ ॥ 
श्रमापनोदनक्षमं समादितान्तरात्मना । 
 समादिभिः सदार्चितं क्षमाविधिं गणाधिपम् । 
रमाधवादिपूजितं यमान्तकात्मसम्भवम् । 
शमादिषड्गुणप्रदं नमामि तं विभुतये ॥ ५ ॥ 
गणाधिपस्य पंचकं नृणामभीष्टदायकम् । 
प्रणामपूर्वकं जनाः पठन्ति ये मुदायताः । 
भवन्ति ते विदाम्पुरः प्रगतिवैभवाः जना । 
चिरायुषोऽधिकाः श्रियाः सुसूनवो न संशयः ॥ ६ ॥ 
॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं गणाधिपस्तोत्रं संपूर्णम् ॥