Monday, 16 December 2019

EFFECTS OF GULIKA

Here the cusp of the sign rising at the beginning of the Gulika segment is considered as Gulika.

EFFECTS OF GULIKA IN VARIOUS HOUSES (PHALA—DEEPIKA)

First House - Native posses cruel attitude, suffer from eye problems. Hate classical and traditional literature and rituals. Always cursing himself.

Second House - Speaks ill of others. Involve himself in domestic troubles. Face financial hardship.

Third House - Proudy, selfish and remain aloof from society. Fond of drinking and always fighting with siblings.

Fourth House - Lives in dirty atmosphere. Shortage of funds and no pleasure of any conveyance.

Fifth House - Worries on account of children. Dogmatic views and lack higher education.

Sixth House- Involve himself in many vices and suffers from its ill effects. Always troubled by enemies.

Seventh House - Character doubtful and spoils reputation in family circle – Suspicious about spouse.

Eighth House - Life full of unending troubles. Suffer from chronic diseases – speak ill of others. Always threat to longevity.

Ninth House - Suffering due to early death of father. No religious aptitude.

Tenth House - No proper and gainful sources of income. Changing profession and unsuccessful in business.

Eleventh House - Gains from progeny. Plenty of wealth. Luxurious life style.

Twelth House - Poor living. Unable to meet fimily expenses. Depend on others for financial help.

Gulika gives favourable results in upachaya houses like 3 – 6 – 10 and 11. The unavourable results of Gulika are lost when the rashi and Navamsa Lords of Gulika dispositor are debilitated or combust.

 

GULIKA AND NATURAL KARAKA PLANETS

The natural karaka planets when associated with Gulika destroy or diminish good results of that planet.

Gulika and Sun - Harmful to the longevity of Father.

Gulika and Moon - Loss of comforts from mother.

Gulika and Mars  - Adverse family relations with co-borns and suffer from their early death.

Gulika and Mercury - Native remain mentally disturbed.

Gulika and Jupiter - Person misuse the religious feelings of others. Pose himself as religious fanatics.

Gulika and Venus - Suffers due to bad company of doubtful character women and ruins his marital life.

Gulika and Saturn  - Suffer from skin and allergy diseases.

Gulika and Rahu  - Prone to infection and virus diseases.
Gulika and Ketu - Fear from bad characters and criminals.

 

GULIKA AND RAJA YOGAS

Even with many unfavourable traits mentioned above, Gulika posses powers of conferring Raja Yoga like honouring the native with highest position in profession/career, dignity and honour throughout life, political powers leading to holding ministerial post. Name and fame and comforts of luxurious life.

            Phala Deepika Chapter 25 sloka – 18 describe as follows:

गुलिकभवननाथे केन्द्रगे वा त्रिकोणे बलिनि निजगृहस्थे स्वोच्चमित्रस्थिते वा।
रथगजतुरगाणां नायको मारतुल्यो महितपृथुयशास्स्यान्मेदिनीमण्डलेन्द्रः।।

These Raja Yogas will fructify in case the dispositor of Gulika; its Navamsa lords are placed in Kendra or trikona houses or in its own sign or in its exaltation. These avasthas of Gulika dispositor nullify the adverse effects of Gulika and give Raj Yoga results. But its propensity as maraca remain intact.


Monday, 28 October 2019

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और विघ्नों को दूर करने वाला है। मां दुर्गा  के इस पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र- 

शिव उवाच
 
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
 
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
 
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
 
अथ मंत्र :-
 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
 
।।इति मंत्र:।।
 
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
 
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
 
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
 
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
 
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
 
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
 
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
 
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
 
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
 
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
 
।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्। 

Tuesday, 30 July 2019

उपग्रहों का वर्णन

भारतीय वैदिक ज्योतिष के ग्रंथो में मुख्य रूप से नव ९ उपग्रहों का वर्णन मिलता है। ग्रहो का ग्रह ही उपग्रह कहलाता है। जिस प्रकार ग्रह जिस भाव में होता है अपने सामर्थ्यानुसार उस भाव से सम्बंधित फल देता है उसी प्रकार उपग्रह भी जन्मकुंडली के जिस भाव में होगा उसके अनुसार शुभ और अशुभ फल प्रदान करता है। गुलिक अथवा मांदी शनिदेव का उपग्रह माना गया है। इन्हे शनिदेव का पुत्र भी कहा जाता है। जिस प्रकार शनि देव की गणना अशुभ ग्रह के रूप में होती है उसी प्रकार गुलिक वा मांदी को भी पापी, क्रूर तथा कष्ट देने वाला ग्रह माना गया है।

ज्योतिष में 9 उपग्रह कौन कौन है

गुलिक | मांदी

यमकंटक

अर्धप्रहर

काल

धूम

व्यतिपात

परिवेश | परिधि

इन्द्रचाप

उपकेतु

1. गुलिक अथवा मांदी :- गुलिक उपग्रह का प्रभाव शनि की तरह होता है। इसे शनि का उपग्रह भी माना गया है। गुलिक का फल शुभ नहीं कहा गया है प्राय जिस भाव में बैठता है उस भाव के फल को खराब ही करता है। गुलिक केवल छठे तथा ग्यारहवे भाव में शुभ फल प्रदान करता है।

2 . यम कंटक :– यमकंटक गुरु ग्रह कि तरह ही शुभ फल प्रदान करता है। इस उपग्रह के अंदर शुभता होती है। यम कंटक जिस भाव, ग्रह इत्यादि से सम्बन्ध बनाता है उस भाव /ग्रह आदि के शुभ फलो कि वृद्धि करता है।

3 . अर्धप्रहर :– अर्धप्रहर उपग्रह का स्वभाव बुध ग्रह कि तरह होता है। अर्धप्रहर जिस भाव में हो यदि उस भाव कोअष्टक वर्ग में अधिक बिंदु प्राप्त है तब उस भाव के शुभ फलो कि वृद्धि होती है।

4 . काल :--इसका स्वभाव राहू कि ही तरह होता है या यू कहे की काल राहु का उपग्रह है।

5 . धूम :– धूम उपग्रह का गुण मंगल ग्रह की तरह होता है। इसका प्रभाव अग्नि, विस्फोट,देह में जलन ,गर्मी ,मन में घबराहट बेचैनी आदि बताता है। लग्न /लग्नेश पर यदि धूम का प्रभाव है तो उपर्युक्त फल की सम्भावना बढ़ जाती है।

6 . व्यतीपात :– जिस प्रकार किसी धारदार हथियार से कष्ट होता है उसी तरह व्यतिपात उपग्रह का प्रभाव होता है। व्यतिपात हमें वाहन दुर्घटना ,जानवरों से कष्ट इत्यादि की ओर संकेत करता है। यदि लग्न अथवा लग्नेश या दोनों पर व्यतिपात का प्रभाव है तो ऐसे फल कि सम्भावना बढ़ जाती है

7 . परिवेष/परिधि :– यदि परिधि का सम्बन्ध लग्न /लग्नेश से होता है तो जातक को लीवर ,किडनी कि समस्या ,जलोदर रोग, जल से दुर्घटना ,पेट में पानी भर जाना, धातु कि बीमारी ,जल में डूबने का भय ,जेल जाने इत्यादि की ओर संकेत करता है। अतः जातक को उपर्युक्त कष्ट से बचने का उपाय करना चाहिए।

8 . इंद्रचाप :– इसका प्रभाव लग्न /लग्नेश से होने पर,किसी भारी वस्तु के शरीर के ऊपर गिर जाने से या किसी वाहन से गिर कर चोट लगने कि सम्भावना होती है। ऐसे जातक को आंधी तूफान के समय किसी अधबने /कच्चे मकान के या किसी पेड़ के नीचे आश्रय नहीं लेनी चाहिए।

9 . उप केतु :- यदि उपग्रह किसी भी तरह लग्न अथवा लग्नेश से होता है तो वह जातक धोखा, षड्यंत्र , बिजली के गिरने से कष्ट इत्यादि का शिकार होता है।

Monday, 29 July 2019

पवमानसूक्त

पवमानसूक्त
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ कही गयी हैं, जिनमें शौनकीय तथा पैप्पलाद शाखा मुख्य हैं । शौनकीय शाखा की संहिता तो उपलब्ध है, किंतु पैप्पलादसंहिता प्रायः उपलब्ध नहीं होती । इसी पप्पलादसंहिता में २१ मन्त्रात्मक एक सूक्त पठित है, जो ‘पवमानसूक्त’ कहलाता है । वेद में पवमान शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद को पावमानी ऋचाएँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, जो प्रायः अभिषेक आदिके समय पठित होती हैं। ऋग्वेद में इस शब्द को प्रयोग सोम के लिये हुआ है, जो स्वतः छलनी के मध्य से छनकर शुद्ध होता है । अन्यत्र कहीं इसका वायु अर्थ में तो कहीं अग्नि अर्थ में प्रयोग हुआ है । पवमान का शाब्दिक अर्थ है शुद्ध होनेवाला या शुद्ध करनेवाला । अतः पवमानपरक मन्त्र पवित्र करनेवाले हैं । पैप्पलादीय इस पवमानसूक्त में पवमान सोम से पवित्र करने की प्रार्थना की गयी है –
सहस्राक्षं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १ ॥ 
जो सहस्रों नेत्रवाला, सैकड़ों धाराओं में बहनेवाला तथा ऋषियोंसे पवित्र किया गया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १ ॥


येन पूतमन्तरिक्षं यस्मिन्वायुरधिश्रितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २ ॥ 
जिससे अन्तरिक्ष पवित्र हुआ है, वायु जिसमें अधिष्ठित है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २ ॥


येन पूते द्यावापृथिवी आपः पूता अथो स्वः ।
तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ३ ॥ 
जिससे द्युलोक और पृथिवी, जल और स्वर्ग पवित्र किये गये हैं, उन सहस्त्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ३ ॥


येन पूते अहोरात्रे दिशः पूता उत येन प्रदिशः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ४ ॥
जिससे रात और दिन, दिशा-प्रदिशाएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ४ ॥


येन पूतौ सूर्याचन्द्रमसौ नक्षत्राणि भूतकृतः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ५ ॥
जिससे सूर्य और चन्द्रमा, नक्षत्र और भौतिक सृष्टि रचनेवाले पदार्थ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ५ ॥


येन पूता वेदिरग्नयः परिधयः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ६ ॥
जिससे वेदी, अग्नियाँ और परिधि पवित्र की गयी हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ६ ॥


येन पूतं बर्हिराज्यमथो हविर्येन पूतो यज्ञो वषट्कारो हुताहुतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ७ ॥ 
जिससे कुशा, आज्य, हवि, यज्ञ और वषट्कार तथा हवन की हुई आहुति पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ७ ॥


येन पूतौ व्रीहियवौ याभ्यां यज्ञो अधिनिर्मितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ८ ॥
जिसके द्वारा व्रीहि और जौ (अर्थात् प्राणापान) पवित्र हुए हैं, जिससे यज्ञका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ८ ॥


येन पूता अश्वा गावो अथो पूता अजावयः ।
तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ९ ॥ 
जिससे अश्व, गौ, अजा, अवि [और पुरुषसंज्ञक] प्राण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ९ ॥


येन पूता ऋचः सामानि यजुर्जाह्मणं सह येन पूतम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥ १० ॥ 
जिसके द्वारा ऋचाएँ, साम, यजु और ब्राह्मण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधारके द्वारा पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १० ॥

येन पूता अथर्वाङ्गिरसो देवताः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ११ ॥
जिससे अथर्वाङ्गिरस और देवता पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ११ ॥


येन पूता ऋतवो येनार्तवा येभ्यः संवत्सरो अधिनिर्मितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १२ ॥ 
जिससे ऋतु तथा ऋतुओं में उत्पन्न होनेवाले रस पवित्र हुए हैं, एवं जिससे संवत्सरका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १२ ॥


येन पूता वनस्पतयो वानस्पत्या ओषधयो वीरुधः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १३ ॥
जिससे वनस्पतियाँ, पुष्पसे फल देनेवाले वृक्ष, ओषधियाँ और लताएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १३ ॥


येन पूता गन्धर्वाप्सरसः सर्पपुण्यजनाः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १४ ॥ 
जिससे गन्धर्व और अप्सराएँ, सर्प और यक्ष पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १४ ॥


येन पूताः पर्वता हिमवन्तो वैश्वानराः परिभुवः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १५ ॥ 
जिससे हिममण्डित पर्वत, वैश्वानर अग्नियाँ और परिधि पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १५ ॥


येन पूता नद्यः सिन्धवः समुद्राः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १६ ॥ 
जिससे नदियाँ, सिंधु आदि महानद और सागर पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १६ ॥


येन पूता विश्वेदेवाः परमेष्ठी प्रजापतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १७ ॥ 
जिससे विश्वेदेव और परमेष्ठी प्रजापति पवित्र हुए हैं, उसे सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १७ ॥


येन पूतः प्रजापतिर्लोकं विश्वं भूतं स्वराजभार ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १८ ॥
जिससे पवित्र होकर प्रजापतिने समस्त लोकको, भूतोंको और स्वर्गको धारण किया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १८ ॥


येन पूतः स्तनयित्नुरपामुत्सः प्रजापतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १९ ॥ 
जिससे विद्युत् और जलोंके आश्रय प्रजापालक मेघ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सौमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १९ ॥


येन पूतमृतं सत्यं तपो दीक्षां पूतयते ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २० ॥ 
जिससे ऋत और सत्य पवित्र हुए हैं, जो तप और दीक्षाको पवित्र करता है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २० ॥


येन पूतमिदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २१ ॥
जिससे जो कुछ भूत और भविष्य है, सभी पवित्र हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २१ ॥


Wednesday, 17 July 2019

कुबेरकृत शिवस्तुति


धनद उवाच
स्वामी त्वमेवास्य चराचरस्य, विश्वस्य शंभो न परोऽस्ति कश्चित्।
त्वामप्यवज्ञाय यदीह मोहात्प्रगल्भते कोऽपि स शोच्य एव।।

त्वमष्टमूर्त्या सकलं बिभर्षि, त्वदाज्ञया वर्तत एव सर्वम्।
तथाऽपि वेदेति बुधे भवन्तं, न जात्वविद्धान्महिमा पुरातनम्।।

मलप्रसूतं यदवोचदम्बा हास्यात्सुतोऽयं तव देव शूरः।
त्वत्प्रेक्षिताद्य स च विघ्नराजो, जज्ञे त्वहो चेष्टितमीशदृष्टेः।।

अश्रुप्लुताङ्गी गिरिजा समीक्ष्य, वियुक्तदांपत्यमितीशमूचे।
मनोभवोऽभून्मदनो रतिश्च, सौभाग्यपूर्वत्वमवाप सोमात्।।

Wednesday, 5 June 2019

दशरथकृत शनि स्तोत्र

दशरथकृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।1

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।। 2

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।। 3

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।। 4

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।। 5

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ।। 6

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।। 7

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।। 8

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।। 9

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ।।10

Sunday, 31 March 2019

नक्षत्र विचार

पुराणों तथा संहिता में नक्षत्र विचार
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नक्षत्र ग्रह विप्राणां  वीरुधां चाप्यशेषतः |
सोमं राज्ये दधह्रह्याम यज्ञानां तमसामापि ||

(श्री विष्णु पुराण)

श्री विष्णु पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं ही नक्षत्र रूपा हैं जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ है | इन्हीं 27  नक्षत्रों का भोग चन्द्र द्वारा किये जाने पर चैत्र आदि एक चन्द्र  मास पूर्ण होता है |सभी पुराणों में नक्षत्रों के महत्व तथा शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है | ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का उपयोग बालक/बालिका के जन्म के समय शुभाशुभ विचार , नामकरण, मुहूर्त विचार,ग्रह चार,मेलापक तथा जातक के अन्य सभी शुभ अशुभ फल विचारने के लिए किया जाता है | अग्नि पुराण,नारद पुराण ,गरुड़ पुराण मत्स्य पुराण तथा अन्य पुराणों तथा बृहत्संहिता,भद्रबाहु संहिता ,नारद संहिता ,वशिष्ठ संहिता आदि  में नक्षत्रों का वर्णन निम्न प्रकार से वर्णित है।

नक्षत्रों के देवता और नाम के प्रथम अक्षर
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प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण का एक अक्षर निश्चित है | बालक /बालिका का जन्म नक्षत्र के जिस चरण में होता है उस से सम्बंधित अक्षर पर उसका नामकरण किया जाता है|

नक्षत्र का नाम।    नक्षत्र का देवता।  नक्षत्र के चरण अश्वनी।               अश्वनी कुमार।       चू  चे  चो  ला
भरणीं।                यमली                  लू ले लो
कृतिका।              अग्नि।                 अ इ उ ए
रोहिणी।              ब्रह्मा।                   ओ वा वी वू
मृगशिरा।             चन्द्र।                    वे वो का की
आर्द्रा।                 शिव।                   कु घ ड० छ
पुनर्वसु।               अदिति।                के को हा ही
पुष्य।                  बृहस्पति।               हु हे हो डा
आश्लेषा।             सर्प।                    डी डु डे डो
मघा।                  पितर।                  मा मी मू मे
पूर्वाफाल्गुनी।       भग।                   मो हा टी टू
उत्तराफाल्गुनी।     अर्यमा।                हे हो पा पी
हस्त।                  सूर्य।                    पु ष ण ठ
चित्रा।                 त्वष्टा।                   पे पो रा री
स्वाति।                पवन।                   रू रे रो ता
विशाखा।             इन्द्राग्नि।               ती तू ते तो
अनुराधा।             मित्र।                   ना नी नु ने
ज्येष्ठा।                इंद्र।                     नो या यी यु
मूल।                  राक्षस।                  ये यो भा भी
पूर्वाषाढ़।            जल।                    भू ध फ ढ
उत्तराषाढ।          विश्वेदेव।               भे भो जा जी
श्रवण।               विष्णु।                  खी खू खे खो
धनिष्ठा।              वसु।                     गा गी गु गे
शतभिषा।           वरुण।                  गो सा सी सू
पूर्वा भाद्रपद।       रूद्र।                    से सो दा दी
उत्तरा भाद्रपद।     अहिर्बुध्न्य`            दु थ झ ञ
रेवती।                 पूषा।                   दे दो चा ची

अग्नि पुराण के अनुसार प्रति मास अपने जन्म नक्षत्र के दिन नक्षत्र देवता का विधिवत पूजन अर्चन करने से उस महीने का फल शुभ रहता है और कष्ट की निवृति होती है |जन्म नक्षत्र ज्ञात न हो तो प्रचलित नाम के पहले अक्षर से नाम नक्षत्र ज्ञात करें और उस नक्षत्र के देवता की पूजा करें।

उर्ध्वमुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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रोहिणी ,आर्द्रा, पुष्य ,उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ ,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा ,उत्तरा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र उर्ध्वमुख अर्थात ऊपर मुख वाले हैं | इन में विवाह आदि मंगल कार्य,राज्याभिषेक ,ध्वजारोहण,मंदिर निर्माण,बाग़-बगीचे लगवाना ,चार दीवारी बनवाना ,गृह निर्माण आदि कार्य करवाना शुभ रहता है |

अधोमुखी नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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कृतिका, भरणीं ,आश्लेषा, विशाखा, मघा ,मूल, पूर्वाषाढ़ ,पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र अधोमुख अर्थात नीचे मुख वाले हैं | इन में तालाब कुएं खुदवाना ,नलकूप लगवाना ,चिकित्सा कर्म, विद्याध्ययन ,खनन,लेखन कार्य,शिल्प कार्य, भूमि में गड़े पदार्थों को निकालने का कार्य करना शुभ रहता है |

तिर्यङ्मुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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अनुराधा, मृगशिरा ,चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, पुनर्वसु ,अश्वनी, स्वाति, रेवती ये नौ नक्षत्र सामने मुख वाले हैं  जिन में यात्रा करना ,खेत में हल जोतना ,पत्राचार करना ,सवारी करना ,वाहन निर्माण आरम्भ करना शुभ है |

ध्रुव संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी ,उत्तराषाढ ,उत्तरा भाद्रपद ये चार नक्षत्र ध्रुव नक्षत्र हैं जिनमें क्रय-विक्रय करना ,हल जोतना ,बीज बोना आदि कार्य करना शुभ हैं |

क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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हस्त,अश्वनी,पुष्य ये तीन नक्षत्र क्षिप्र संज्ञक हैं  जिनमें यात्रा करना ,दुकान लगाना,शिल्प कार्य,रति कार्य,ज्ञान अर्जन करना शुभ है |

साधारण संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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विशाखा तथा कृतिका साधारण नक्षत्र हैं जिनमे सभी कार्य किये जा सकते हैं |

चर संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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धनिष्ठा ,पुनर्वसु,शतभिषा ,स्वाति तथा श्रवण नक्षत्र चार संज्ञक हैं जिन में यात्रा करना ,बाग- बगीचे लगाना ,तथा परिवर्तन शील कार्य करना शुभ है |

मृदुसंज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
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मृगशिरा ,अनुराधा,चित्रा,रेवती मृदु नक्षत्र हैं जिनमें आभूषण निर्माण,खेल कूद,नवीन वस्त्र धारण करना ,गीत-संगीत से सम्बंधित कार्य करना शुभ रहेगा |

नक्षत्रों की अन्धाक्षादि संज्ञाएँ
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रोहिणी नक्षत्र से आरम्भ करके क्रमशः चार चार नक्षत्र अंध,मंद,मध्य,तथा सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं | अंध नक्षत्र में खोई  वस्तु बिना विशेष प्रयत्न के पुनः प्राप्त हो जाती है | मंद नक्षत्र में खोई वस्तु प्रयत्न करने पर बड़ी कठिनता से मिलती है | मध्य  नक्षत्र में खोई वस्तु का पता तो चल जाता है पर प्राप्ति नहीं होती | सुलोचन नक्षत्र में खोई  वस्तु का न तो पता चलता है और न ही प्राप्ति होती है |

कुलाकुल संज्ञक नक्षत्र तथा उनके फल
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अश्वनी,कृतिका ,मृगशिरा ,पुष्य,चित्रा,मूल ,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढ,उत्तराभाद्रपद,श्रवण,धनिष्ठा ,मघा,पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा कुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिन में अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति हार जाता है तथा युद्ध के लिए प्रयाण करने वाले की पराजय होती है |

रोहिणी, ज्येष्ठा,रेवती,पुनर्वसु,
स्वाति,हस्त,अनुराधा ,भरणीं,पूर्वा भाद्रपद ,आश्लेषा अकुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिनमें आक्रमणकारी शत्रु पर विजय  प्राप्त करता है और अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति जीत जाता है|

आर्द्रा ,शतभिषा,पूर्वाषाढ़ कुलाकुल नक्षत्र है जिनमें मुकद्दमा दायर करने अथवा युद्ध आरम्भ करने पर दोनों पक्षों में संधि की संभावना रहती है |

नक्षत्रों की भूकंप आदि संज्ञाएँ
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विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से पांचवें को विद्युत्, सातवें नक्षत्र को भूकंप, आठवें को शूल, दसवें को अशनि, चौदहवें की निर्घातपात  ,पन्द्रहवें को दण्ड,अठारहवें को केतु,उन्नीसवें को उल्का, इक्कीसवें की मोह,बाइसवें की निर्घात,तेइसवें की कंप,चौबीसवें की कुलिश तथा पच्चीसवें की परिवेश संज्ञा होती है इन नक्षत्रों में कार्य आरम्भ करने पर प्रायः सफलता नहीं मिलती |

नक्षत्र एवम् वार के योग से उत्पन्न शुभाशुभ मुहूर्त
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अश्वनी आदि 27 नक्षत्रों तथा रवि आदि 7 वारों के संयोग से उत्पन्न शुभाशुभ प्रभाव देने वाले योगों का विभिन्न पुराणों और संहिताओं में वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है।

औत्पातिक योग 
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निम्नलिखित  वार तथा नक्षत्र के योग से औत्पातिक योग होता है जिनमें यात्रा तथा अन्य शुभ कार्य आरम्भ करने से उत्पात,रोग,हानि होने की संभावना रहती है |

वारनक्षत्ररविवारविशाखा अनुराधा ज्येष्ठासोमवारपूर्वाषाढ़ उत्तराषाढ श्रवणमंगलवारधनिष्ठा शतभिषा पूर्वा भाद्रपदबुधवारअश्वनी भरणीं रेवतीगुरूवाररोहिणी मृगशिरा आर्द्राशुक्रवारपुष्य आश्लेषा मघाशनिवारउत्तराफाल्गुनी हस्त चित्रा

अमृत योग
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रविवार को मूल,सोमवार को श्रवण ,मंगलवार को उत्तरा भाद्रपद,बुधवार को कृतिका,गुरूवार को पुनर्वसु, शुक्रवार को पूर्वा फाल्गुनी तथा शनिवार को स्वाति नक्षत्र हो तो अमृत योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि प्रदायक होता है |

सिद्धि योग
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रविवार को हस्त ,सोमवार को मृगशिरा  ,मंगलवार को अश्वनी ,बुधवार को अनुराधा ,गुरूवार को पुष्य , शुक्रवार को रेवती तथा शनिवार को रोहिणी  नक्षत्र हो तो सिद्धि योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि देने वाला  होता है |

विष योग
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रविवार को भरणी  ,सोमवार को चित्रा   ,मंगलवार को उत्तराषाढ ,बुधवार को धनिष्ठा  ,गुरूवार को शतभिषा , शुक्रवार को रोहिणी तथा शनिवार को रेवती नक्षत्र हो तो विष योग होता है जो अपने नाम के अनुसार  सभी कार्यों में अशुभ फलदायक होता है |

आनन्दादि योग
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क्रम रविवार सोमवार मंगलवार बुधवार गुरूवार शुक्रवार शनिवार आनन्दादि योग शुभाशुभ
फल1.अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा आनंदसिद्धि
2.भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद कालदंडमृत्यु
3.कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद धूम्रअसुख
4.रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती धातासौभाग्य
5.मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी सौम्यसुख
6.आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं ध्वांक्षधनक्षय
7.पुनर्वसुपूर्वा फाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका ध्वजसौभाग्य
8.पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी श्रीवत्ससंपदा
9.आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा वज्रक्षय
10.मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मुद्गरधनक्षय
11.पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु छत्रराजसम्मान
12.उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य मित्रपुष्टि
13.हस्त अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा मानससौभाग्य
14.चित्रा ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा पद्मधनागम
15.स्वाति मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी लुम्बधनहानि
16.विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तरा
फाल्गुनी उत्पातसंकट
17.अनुराधा उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त मृत्युमृत्यु
18.ज्येष्ठा अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा काणक्लेश
19. मूल श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वा
फाल्गुनी स्वाति सिद्धिकार्यसिद्धि
20.पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा शुभकल्याण
21.उत्तराषाढ शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा अमृत राज सम्मान
22.अभिजित पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा मूसल धन हानि
23.श्रवण उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल गदविद्यालाभ
24.धनिष्ठा रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ मातंग कुलवृद्धि
25.शतभिषा अश्वनी मृगशिरा आश्लेषा हस्त अनुराधा उत्तराषाढ रक्ष महावृद्धि
26.पूर्वाभाद्रपद भरणीं आर्द्रा मघा चित्रा ज्येष्ठा अभिजित चर कार्यसिद्धि
27.उत्तराभाद्रपद कृतिका पुनर्वसु पूर्वाफाल्गुनी स्वाति मूल श्रवण स्थिरगृहारम्भ
28.रेवती रोहिणी पुष्य उत्तराफाल्गुनी विशाखा पूर्वाषाढ़ धनिष्ठा प्रवर्द्धमानविवाह।

त्रिपुष्कर योग
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रवि, शनि तथा मंगलवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी )और तीन पाद एक ही  राशि में होने वाले नक्षत्र कृतिका,पुनर्वसु,उत्तराफाल्गुनी,विशाखा ,उत्तराषाढ तथा पूर्वा भाद्रपद हो तो त्रिपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि त्रिगुणित कही गयी है |

द्विपुष्कर योग 
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रवि ,शनि  या मंगलवार को भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी,द्वादशी )और दो पाद एक ही  राशि में होने वाले नक्षत्र मृगशिरा ,चित्रा या धनिष्ठा हो तो द्विपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि दुगनी होती है |

सिद्ध योग
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शुक्रवार को नंदा तिथि ( प्रतिपदा ,षष्टि ,एकादशी ) , बुधवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी ) , मंगलवार को जया तिथि ( तृतीया ,अष्टमी,त्रयोदशी ), शनिवार को रिक्ता तिथि ( चतुर्थी ,नवमी,चतुर्दशी ) तथा गुरूवार को पूर्णा तिथि ( पंचमी,दशमी,पूर्णिमा ) हो तो सिद्ध योग होता है जिसमें सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है |

दग्ध योग
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सोमवार को एकादशी,मंगलवार को पंचमी ,बुधवार को तृतीया ,गुरूवार को षष्टि ,शुक्रवार को अष्टमी तथा शनिवार को नवमी हो तो दग्ध योग होता है जिसमें आरम्भ किये कार्य सफल नहीं होते |

संवर्त योग
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रविवार को सप्तमी ,बुधवार को प्रतिपदा हो तो संवर्त योग होता है जो शुभ कार्यों में बाधक होता है |

चंडीशचंडायुध योग
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विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से तत्कालीन आश्लेषा,मघा,चित्रा अनुराधा रेवती या श्रवण नक्षत्र  तक की गणना करने पर जो संख्या आये वाही संख्या यदि अश्वनी नक्षत्र से तत्कालीन चन्द्र नक्षत्र की हो तो चंडीशचंडायुध योग होता है जिसमें शुभ कार्यों का आरम्भ वर्जित है |

पंचक नक्षत्र 
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धनिष्ठा के अंतिम दो चरण ,शतभिषा,पूर्वा भाद्रपद ,उत्तरा भाद्रपद और रेवती इन पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहा जाता है | ये पांचो  नक्षत्र  कुम्भ तथा मीन राशि के अंतर्गत हैं | पंचक लगने पर  लकड़ी और घास का संग्रह,दक्षिण दिशा की यात्रा ,मृतक का दाह संस्कार ,खाट बनवाना त्याज्य होता है | पंचकों में उपरोक्त कार्य करने पर अग्नि भय ,रोग,दण्ड ,हानि,और शोक होता है |
गण्डमूल नक्षत्र

पुराणों में गण्डमूल नक्षत्र
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पुराणों में अनेक स्थानों पर गंडांत नक्षत्रों का उल्लेख किय गया है |   रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ ,अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही गई हैं | मघा ,आश्लेषा ,ज्येष्ठा एवम मूल नक्षत्र भी गंडांत हैं | विशेषतः ज्येष्ठा तथा मूल के मध्य का एक प्रहर अत्यंत अशुभ फल देने वाला है | इस अवधि में उत्पन्न बालक /बालिका व उसके माता -पिता को जीवन का भय होता है | गंडांत नक्षत्रों  को सभी शुभ कार्यों में त्याग देना चाहिए | २८ वें दिन उसी नक्षत्र में गण्डमूल दोष की शांति कराने पर दोष की निवृति हो जाती है |

स्कन्द पुराण  के काशी खंड में सुलक्षणा नाम की कन्या का वर्णन है जिसका जन्म मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ था  तथा उस बाला के माता -पिता  दोनों का देहांत उस के जन्म  के कुछ समय के बाद ही हो गया था | नारद पुराण  के अनुसार मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण को छोड़ कर शेष चरणों में तथा ज्येष्ठा नक्षत्र के अंतिम चरण में  उत्पन्न संतान विवाहोपरांत अपने ससुर के लिए घातक होती है | ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न कन्या अपने जेठ के लिए  तथा विशाखा में उत्पन्न कन्या अपने देवर के लिए  अशुभ फल का संकेत कारक होती है |दिन में गंडांत नक्षत्र में उत्पन्न संतान पिता को रात्रि में माता को व संध्या काल में स्वयम को कष्ट कारक होता है |

ज्योतिष शास्त्र  में गण्डमूल नक्षत्र
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फलित ज्योतिष के  जातक पारिजात ,बृहत् पराशर होरा शास्त्र ,जातकाभरणं इत्यादि सभी   प्राचीन ग्रंथों में गंडांत नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है |अश्वनी ,आश्लेषा ,मघा ,ज्येष्ठा ,मूल तथा रेवती  नक्षत्र  गण्डमूल नक्षत्र हैं |

अश्वनी👉  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |

आश्लेषा👉 नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो शुभ ,दूसरे में धन हानि ,तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है |यह फल पहले दो  वर्षों में ही मिल जाता है

मघा👉 नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो माता के पक्ष को हानि ,दूसरे में पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |  

ज्येष्ठा👉  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो बड़े भाई को कष्ट ,दूसरे में छोटे भाई को कष्ट, तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है| यह फल पहले वर्ष में ही मिल जाता है | ज्येष्ठा नक्षत्र एवम मंगलवार के योग में उत्पन्न कन्या अपने भाई के लिए घातक होती है |

मूल👉 नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो पिता को कष्ट दूसरे में माता को कष्ट तीसरे में धन हानि तथा चौथे में शुभ होता है | मूल नक्षत्र व रवि वार के योग में उत्पन्न कन्या अपने ससुर का नाश करती है |यह फल पहले चार वर्षों में ही मिल जाता है

जातकाभरणं के अनुसार जन्म के समय  मूल नक्षत्र हो तथा कृष्ण  पक्ष की 3' 10 या शुक्ल पक्ष की 14 तिथि हो एवम मंगल ,शनि या बुधवार हो तो सारे कुल के लिए अशुभ होता है |मूल नक्षत्र के साथ राक्षस ,यातुधान ,पिता ,यम व काल नामक मुहुर्तेशों  के काल में जन्म हो तो गण्डमूल दोष का प्रभाव अधिक विनाशकारी होता है |

रेवती👉  नक्षत्र के चौथे चरण  में जन्म हो तो माता -पिता के लिए अशुभ तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |

अभुक्त मूल  ज्येष्ठा नक्षत्र की अंतिम दो घटियाँ तथा मूल नक्षत्र की आरम्भ  की दो घटियाँ अभुक्त मूल हैं जिनमें उत्पन्न बालक , कन्या  , कुल के लिए अनिष्टकारी होते हैं | इनकी शान्ति अति आवश्यक है।
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