Saturday, 25 March 2017

माँ के नौ रुप

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शैलपुत्री :
शैल पुत्री का अर्थ पर्वत राज हिमालय की पुत्री। यह माता का प्रथम अवतार था जो सती के रूप में हुआ था।
2.
ब्रह्मचारिणी :
ब्रह्मचारिणी अर्थात् जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था।
3.
चंद्रघंटा :
चंद्र घंटा अर्थात् जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है।
4.
कूष्मांडा :
ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कूष्मांड कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वह अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए है, इसीलिए कूष्‍मांडा कहलाती है।
5.
स्कंदमाता :
उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वह स्कंद की माता कहलाती है।
6.
कात्यायिनी :
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था, इसीलिए वे कात्यायिनी कहलाती है।
7.
कालरात्रि :
मां पार्वती काल अर्थात् हर तरह के संकट का नाश करने वाली है इसीलिए कालरात्रि कहलाती है।
8.
महागौरी :
माता का रंग पूर्णत: गौर अर्थात् गौरा है इसीलिए वे महागौरी कहलाती है।
9.
सिद्धिदात्री :
जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है, उसे वह हर प्रकार की सिद्धि दे देती है। इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।

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Thursday, 23 March 2017

*"पंचक विशेष"*

*"पंचक विशेष"*
🌼🍃🌼🍃
*भारतीय ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है।*
*इसके  अंतर्गत   धनिष्ठा,   शतभिषा,  उत्तरा  भाद्रपद,*
*पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं। पंचक के दौरान*
*कुछ विशेष काम वर्जित किये गए है।*
:
*🍹"पंचक के प्रकार"🍹*
:
1👉 *"रोग पंचक"*
:
रविवार को शुरू होने  वाला पंचक  रोग  पंचक
कहलाता है।   इसके  प्रभाव  से   ये  पांच  दिन
शारीरिक और मानसिक परेशानियों  वाले  होते
हैं। इस पंचक में किसी भी  तरह के  शुभ  काम
नहीं करने चाहिए। हर तरह के मांगलिक  कार्यों
में ये पंचक अशुभ माना गया है।

2👉 *"राज पंचक"*

सोमवार को शुरू  होने  वाला पंचक राज पंचक
कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है।
इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों
में सफलता मिलती है। राज पंचक में  संपत्ति से
जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।
:
3👉 *"अग्नि पंचक"*
:
मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि  पंचक
कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट  कचहरी और
विवाद आदि के फैसले, अपना  हक  प्राप्त  करने
वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में अग्नि
का भय होता है। इस पंचक में किसी भी तरह का
निर्माण   कार्य, औजार  और  मशीनरी  कामों की
शुरुआत करना अशुभ माना गया है।
इनसे नुकसान हो सकता है।
:
4👉 *"मृत्यु पंचक"*
:
शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक
कहलाता है। नाम से ही पता चलता है कि..
अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के
बराबर परेशानी देने वाला होता है।
इन पांच दिनों में किसी भी तरह के जोखिम भरे
काम नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से विवाद,
चोट, दुर्घटना आदि होने का खतरा रहता है।

5👉  *"चोर पंचक"*
:
शुक्रवार को शुरू होने  वाला पंचक चोर पंचक
कहलाता है। विद्वानों  के अनुसार, इस  पंचक
में यात्रा करने की मनाही है। इस पंचक में लेन-
देन, व्यापार और किसी भी  तरह के सौदे  भी
नहीं करने चाहिए। मना किए गए  कार्य  करने
से धन हानि हो सकती है।

6👉  इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को
शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का
पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो
दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के  पांच
कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ  काम
किए जा सकते हैं।

*⚜"पंचक में वर्जित कर्म"⚜*
*************************
1👉 पंचक में चारपाई बनवाना भी अच्छा नहीं
माना जाता। विद्वानों के अनुसार ऐसा  करने  से
कोई बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।

2👉 पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र
हो उस समय घास,  लकड़ी आदि  जलने  वाली
वस्तुएं इकट्ठी नहीं करना  चाहिए,  इससे   आग
लगने का भय हैं।
:
3👉 पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नही
करनी  चाहिए,  क्योंकि  दक्षिण  दिशा, यम   की
दिशा मानी गई है। इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की
यात्रा करना हानिकारक माना गया है।

4👉 पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा
हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए,
ऐसा विद्वानों का कहना है। इससे धन हानि और
घर में क्लेश होता है।
:
5👉 पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से
पहले किसी योग्य पंडित की सलाह  अवश्य लेनी
चाहिए। यदि ऐसा न हो पाए तो शव के साथ पांच
पुतले आटे या कुश (एक प्रकार की घास) से बना-
कर अर्थी पर रखना चाहिए और इन पांचों का भी
शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार
करना चाहिए, तो पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है।

*"पंचक में करने योग्य शुभ कार्य.."*
🍃🍃 🌼 🍃🍃  🌼 🍃🍃
पंचक में आने वाले नक्षत्रों में शुभ कार्य हो भी
किये जा सकते हैं। पंचक में आने वाला उत्तरा-
भाद्रपद नक्षत्र  वार  के  साथ  मिलकर  सर्वार्थ-
सिद्धि योग बनाता है, वहीं धनिष्ठा,  शतभिषा,
पूर्वा भाद्रपद व  रेवती नक्षत्र - यात्रा,  व्यापार,
मुंडन आदि शुभ कार्यों में श्रेष्ठ माने गए हैं।
:
मेरे अनुसार, पंचक को भले ही अशुभ माना
जाता है, लेकिन इस  दौरान  सगाई,  विवाह
आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं।
:
पंचक में आने वाले तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद,
उत्तरा  भाद्रपद  व  रेवती   रविवार  को होने से
आनंद आदि 28 योगों में  से  3 शुभ  योग  बनाते
हैं, ये शुभ योग इस प्रकार हैं- चर,  स्थिर व प्रवर्ध।
इन शुभ योगों से सफलता व धन लाभ का विचार
किया जाता है।
:
*मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार :*
.          *पंचक के नक्षत्रों का शुभ फल..!!*
🌼
1👉 घनिष्ठा और  शतभिषा क्षत्र चल संज्ञक माने
जाते हैं। इनमें चलित काम  करना शुभ  माना गया है,
जैसे- यात्रा करना, वाहन खरीदना, मशीनरी संबंधित
काम शुरू करना शुभ माना गया है।
:
2👉 उत्तराभाद्रपद नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र माना
गया है। इसमें स्थिरता वाले काम करने चाहिए जैसे-
बीज बोना, गृह प्रवेश, शांति पूजन और  जमीन  से
जुड़े स्थिर कार्य करने में सफलता मिलती है।

3👉  रेवती नक्षत्र मैत्री संज्ञक होने से इस नक्षत्र -
में कपड़े, व्यापार से संबंधित सौदे करना,  किसी
विवाद का निपटारा करना, गहने  खरीदना आदि
काम शुभ माने गए हैं।

*"पंचक के नक्षत्रों का संभावित अशुभ प्रभाव"*
:                        🌼 
1👉 धनिष्ठा नक्षत्र में आग लगने का भय रहता है।
:
2👉 शतभिषा नक्षत्र में वाद-विवाद होने के योग
बनते हैं।
:
3👉 पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र है, यानि इस -
नक्षत्र में बीमारी होने की संभावना सबसे अधिक
होती है।
:
4👉 उत्तरा भाद्रपद में धन हानि के योग बनते है।
:
5👉 रेवती नक्षत्र में नुकसान व मानसिक तनाव
होने की संभावना होती है।

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Vastu tips

There are mainly two types of owner.
- A trader who deals in actual delivery of
goods.
- A consultant who serves the people with his brain
e. g. Doctor, Lawyer, Astrologer, Professor etc.
As per basic guidelines of Vaastu, the owner /CEO
should always sit in the room in South or West zone.
For more prosperity the trader should preferably sit with
face towards the North and the consultants for more
name & fame should preferably sit facing East.

five Elements of nature

The five Elements of nature affect the living
beings directly as mentioned below :
(i) Earth : If there is no earth, we can not exist. It is
only the Earth which makes the country look beautiful
with emerald like fields and carpets of green grass; It
also emitting oxygen which is so vital for existence.
(ii) Air : This is present every where; without air there
is no life. The exhale which is emitted from our nostrils
is called ‘Swar’ (voice). No sooner the function of the
Swar stops, the living beings die.
(iii) Water : The most important thing necessary for life
is water only. Around 70% of human body consists of
water.
(iv) Fire : Each and every living being requires fire. For
cooking food or for any sacred ceremony including
marriage we need fire. Even the final
absorption is not possible without fire.
(v) Space : This is a place of storage. It causes rain;
deciding when, where and how much rainfall is to be
given to the various earth segments.

Septic tank vastu

PUJA GHAR

PUJA GHAR
1. The Pujaghar in the building should be in the east,
the north or the north-east corner.
2. Puja room should not be in the south direction.
3. Pujaghar should not be in the bedroom.
4. The idols should be in the east and the west of the
Pujaghar. The faces of the idols should not be in the
south.
5. Pujaghar should not be above, below or next to the
toilet/kitchen.
6. White or light yellow marble work in the worship
room is auspicious. The colour of the walls of the
worship room should be white, light yellow or light blue.
7. The worship room should have doors and windows
in the north or the east.
8. Lamp stand should be in the south-east or east
corner of the worship room.
9. If the worship room is of the shape of a pyramid
(slope on all the four sides of the roof) it is auspicious.
10. Women should not enter the worship room during
the menses period.
11. The Agnikund should be in the south-east direction of the worship room. The sacred offerings to the fire should be made with the face towards the east.
12. The showcases and Almirah in the Pujaghar should be towards the western or the southern wall.
13. Scenes from the Mahabharat, photographs of birds and animals should not be in the Pujaghar.
14. The idol should not be exactly in front of the entrance gate.
15. The Pujaghar should preferably have a threshold.
16. The idols in the worship room should not be in a desecrated form.
17. The idols should not be kept at a place obtained by chiselling off the wall or touching the wall. They should
be kept at least an inch away from the wall.
18. Pooja room should be avoided in a store.
19. The worship room should have a two shuttered wooden door. It should not be made of the Gum
Arabic tree or any inferior quality of wood. In the upper half of the worship room there should be space for ventilation or it can be made of glass. Proper ventilation should be there.

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Vaastu

नए व्यापार का मुहूर्त


नए व्यापार का मुहूर्त

हर व्यक्ति कि नया व्यापार करने पर यही आशा रहती है कि उसका व्यापार खूब चले। परंतु सबको सफलता नहीं मिलती है कई बार बहुत से लोगो को व्यापार में घाटा और बहुत सी अड़चनों के कारण जल्दी ही अपना व्यापार बंद करना पड़ता है !ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह सामान्यता अशुभ मुहूर्त में कार्य आरम्भ करने के कारण होता है। इसलिए बेहतर यही है कि जब भी नया व्यापार करना हो तो उस समय मुहुर्त पर अच्छी तरह विचार कर लें । मुहुर्त जब शुभ हो तभी व्यापार करें अन्यथा शुभ मुहुर्त के आने की प्रतीक्षा करें।

1. दुकान खालने के लिए जब आप मुहुर्त निकालें उस समय तिथि का भी विचार भी अवश्य करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दुकान खोलने के लिए सभी तिथि शुभ हैं परंतु रिक्ता तिथि यानी (चतुर्थ, नवम व चतुर्दशी) में में दुकान खोलने से बचना चाहिए।

2.नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा , षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

3. नए व्यापार शुरू करने के लिए कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा के अगले दिन से अमावस तक ) कि तिथि का त्याग करने में ही बुद्धिमानी है इसके लिए शुक्ल पक्ष (अमावस के अगले दिन से पूर्णिमा तक ) कि तिथियाँ ज्यादा शुभ होती है।

4. नए व्यापार दुकान खोलने में मंगलवार को बिलकुल भी त्याग देना चाहिए । मंगलवार के अलावा आप किसी भी दिन दुकान खोल सकते हैं।

5. अमावस का दिन भी नए व्यापार कि शुरुआत के लिए शुभ नहीं है । 13 तारीख तथा यदि व्यक्ति के पिता कि मृत्यु हो चुकी है तो उनकी मृत्यु कि तिथि का भी त्याग कर देना चाहिए ।

6. भद्रा में भी नया काम बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।

7. हमेशा ध्यान दें कि कोई भी एग्रीमेंट कभी भी रविवार, मंगलवार या शनिवार को नहीं करना चाहिये।

8. असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं और बारहवीं राशि पर जब चंद्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए।

Sunday, 19 March 2017

वास्तु: छाया-वेध

छाया-वेधः किसी वृक्ष, मंदिर, ध्वजा, पहाड़ी आदि की छाया प्रातः 10 से सायं 3 बजे के मध्य मकान पर पड़ने को छाया वेध कहते हैं। यह निम्न 5 तरह की हो सकती है।

मंदिर छाया वेधः भवन पर पड़ रही मंदिर की छाया शांति की प्रतिरोधक व व्यापार व विकास पर प्रतिकूल प्रभाव रखती है। बच्चों के विवाह में देर व वंशवृद्धि पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

ध्वज छाया वेधः ध्वज, स्तूप, समाधि या खम्भे की छाया के कारण रहवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

वृक्ष छायावेधः भवन पर पड़ने वाली वृक्ष की छाया रहवासियों के विकास में बाधक बनती है।

पर्वत छायावेधः मकान के पूर्व में पड़ने वाली पर्वत की छाया रहवासियों के जीवन में प्रतिकूलता के साथ शोहरत में भी नुकसानदायक होती है।

भवन कूप छायावेधः मकान के कुएँ या बोरिंग पर पड़ रही भवन की छाया धन-हानि की द्योतक है।

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Saturday, 11 March 2017

मूलांक एक

विशेषताएं

मूलांक एक का स्वामी सूर्य है. इनमें सूर्य जैसा तेज और आत्म-विश्वास रहता है. अपने निर्णय पर अडिग रहने वाले मूलांक एक के जातक परिश्रमी,आत्म-निर्भर,महत्वाकांक्षी,उत्साह से भरे और कला-प्रेमी होते हैं. वे दृढ निश्चयी और अपने मार्ग आने वाली बाधा को दूर करने में सक्षम होते हैं. अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वे अपनी सारी ऊर्जा लगा देते हैं. ये लोग व्यवसाय, नौकरी, कला, धर्म और समाज के क्षेत्र में नेतृत्व करने वाले होते हैं. 

मूलांक एक के जातक अपने को प्रथम स्थान पर देखना पसंद करते हैं और इनका दृढ संकल्प उनको सफलता प्रदान करता है. कभी कभी इनका यही स्वाभाव अन्य आलसी लोगो के लिए इन्हें कठोर बना देता है. 

कलात्मकता और नवीनता में इनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। ये नए उद्यम और नए कार्य का आरम्भ करने में सफल साबित होते हैं. आत्म-निर्भर और अनुशासित होने के कारण वे खुद का अपना का व्यवसाय करना पसंद करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं. 

मूलांक एक के जातक को कुछ न करते रहना चाहिए, आलस्य इनका स्वाभाव नहीं है इसलिए खली बैठने में अप्रसन्न रहते हैं. मूलांक एक के जातक को कुछ न करते रहना चाहिए, आलस्य इनका स्वाभाव नहीं है इसलिए खाली बैठने में अप्रसन्न रहते हैं. नए उद्यम आरम्भ करने में इनसे अच्छा कोई नहीं है और इन्हें इसी तरह आगे बढ़ते रहना चाहिए.

कमियाँ

मूलांक एक के व्यक्ति कभी कभी स्वार्थी,घमंडी और दूसरों से अधिक अपेक्षा रखने वाले होते हैं. जाने अनजाने में ये लोगों को सताने लगते हैं. 

प्रथम स्थान पर बने रहने के लिए ये कभी कभी अपने से नीचे काम करने वालों के लिए गुस्सैल, कठोर और अप्रिय बन जाते हैं. ऐसा माहौल इन्हे अप्रसन्न रखने लगता है और इसी कारण से ये किसी कार्य को प्रारम्भ तो करते हैं, परन्तु उसे मुकाम तक पहुचने से पहले थकने लगते हैं. 

मूलांक एक के लोग जल्दी लोगों पर भरोसा कर लेते हैं और धोखा खा जाते हैं. 

कभी कभी दिखावा, लोभ, जल्दीबाजी और अहंकार इनको सबका अप्रिय बना देता है. 

अहंकार के व जह से ये लोग किसी की दखल पसंद नहीं करते. इनमें नेतृत्व कर गुण तो है परन्तु ये अच्छे टीम-प्लेयर नहीं साबित होते. 

विवेचना

स्वामी ग्रह : सूर्यविशेष प्रभावी : 21 जुलाई से 28 अगस्त के मध्यशुभ तारीखें : 1, 10, 19, 28सहायक तारीखें : 2, 11, 20, 29 एवं 4, 13, 22, 31 तथा 7, 16, 25सहायक शुभ वर्ष : 2, 11, 20, 29, 38, 47, 56, 65, 74 एवं 4, 13, 22, 31, 40, 49, 58, 67 तथा 7, 16, 25, 34, 43, 52, 61, 70सर्वोत्तम वर्ष : 1, 10, 19, 28, 37, 46, 56, 64, 73उत्तम दिन : रविवार, सोमवारशुभ रंग : हरा, भूरा, पीला, सुनहराशुभ रत्न : माणिक्यराशि : सिंहधातु : स्वर्ण, तांबादिशा : पूर्वमित्र अंक : 2, 7, 5सम अंक : 3, 9, 4शत्रु अंक : 6, 8तत्व : अग्निरोग : हृदय की कमजोरी, रक्तदोष, रक्तचाप, स्नायु निर्बलता, नेत्र दोषपाठ : आदित्य हृदय स्तोत्रउपासना : सूर्य कीव्रत : रविवारदान पदार्थ : माणिक्य, स्वर्ण, ताम्र, गुड़, घी, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, रक्त चंदन एवं गायविवाह करना उत्तम : 14 जून से 15 जुलाई, 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर, 15 नवम्बर से 18 दिसम्बर, 18 मार्च से 15 अप्रैल के मध्य जन्मे जातक सेव्यवसाय : आभूषण, जौहरी कार्य, स्वर्णकारिता, विद्युत, चिकित्सा, नेतृत्व, स्पोर्टस वस्तु, अग्नि, सेवा कार्य, सैन्य विभाग व प्रशासनअनुकूल दिशा : उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, पश्चिमप्रतिकूल दिशा : दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिमशुभ मास : जनवरी, मार्च, मई, जुलाई, अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर व दिसम्बर

Tuesday, 7 March 2017

दशरथ द्वारा लिखा गया शनि  स्तोत्र का पाठ करें

दशरथ द्वारा लिखा गया शनि  स्तोत्र का पाठ करें

इनमें सबसे आसान उपाय है प्रत्येक शनिवार को 11 बार महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया दशरथ स्तोत्र का पाठ। शनि महाराज ने स्वयं दशरथ जी को वरदान दिया था कि जो व्यक्ति आपके द्वारा लिखे गये स्तोत्र का पाठ करेगा उसे मेरी दशा के दौरान कष्ट का सामना नहीं करना होगा। शनि महाराज प्रत्येक शनिवार के दिन के दिन पीपल के वृक्ष में निवास करते हैं। इसदिन जल में चीनी एवं काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करके तीन परिक्रमा करने से शनि प्रसन्न होते हैं। 

Monday, 6 March 2017

दैनिक राशिफल 07-03-2017

दैनिक राशिफल

राशि फलादेश मेष
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। व्यापार से लाभ, निवेश-नौकरी में लाभ, शत्रु शांत रहेंगे। जीवनसाथी की चिंता रहेगी। यात्रा होगी।


राशि फलादेश वृष
यात्रा से लाभ, लाभ के अवसर अचानक उपस्थित होंगे। व्यापार-निवेश, नौकरी लाभ देंगे। विद्यार्थी वर्ग सफलता के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करेगा।

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राशि फलादेश मिथुन
कुसंगति हानिकारक होगी। शरीर अस्वस्थ होगा। व्यय बढ़ने से कर्ज लेना पड़ सकता है। व्यापार ठीक चलेगा। स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा।


राशि फलादेश कर्क
शत्रु सक्रिय होंगे। माता का स्वास्थ्य बिगड़ेगा। चोरी-दुर्घटना से हानि संभव है। रुका हुआ धन वापस आ सकता है। अत्यधिक परिश्रम व लाभ कम होगा।


राशि फलादेश सिंह
पुरानी योजनाएं फलीभूत होंगी। नई योजनाएं बनेंगी। मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। शत्रु भी आपके कार्य की प्रशंसा करेंगे। घर-परिवार की चिंता रहेगी।

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राशि फलादेश कन्या
चोरी-दुर्घटना आदि से हानि संभव है। धार्मिक यात्रा हो सकती है। तंत्र-मंत्र में रुचि बढ़ेगी। व्यापार ठीक चलेगा। वाणी पर नियंत्रण रखें। धन प्राप्ति होगी।


राशि फलादेश तुला
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। जोखिमभरे कार्यों से दूर रहें। समय अनुकूल नहीं है, धैर्य रखें। शरीर कष्ट रहेगा।


राशि फलादेश वृश्चिक
शुभ समाचार मिलेंगे। गृहस्‍थी प्रसन्नता से चलेगी। राजकीय कार्यों में अनुकूलता मिलेगी। निवेश-व्यापार से लाभ होगा। धनार्जन होगा।
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राशि फलादेश धनु
संपत्ति के कार्य मनोनुकूल होंगे। निवेश लाभ देगा। नौकरी-इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शत्रु शांत रहेंगे। धार्मिक यात्रा हो सकती है।


राशि फलादेश मकर
मौज-मस्ती से दिन बीतेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। व्यापार-निवेश, नौकरी से लाभ होगा। शत्रु शांत रहेंगे। प्रसन्नता रहेगी।


राशि फलादेश कुंभ
कुसंगति व विवाद से बचें। शरीर पीड़ा होगी। यात्रा में चोरी-दुर्घटना संभव है। शत्रु सक्रिय रहेंगे। अतिविश्वास हानि देगा। धीरज रखें।


राशि फलादेश मीन
पुराना रोग उभर सकता है। विरोध होगा। पराक्रम से लाभ तथा विजय मिलेगी। व्यापार धीमा चलेगा। बुद्धि का प्रयोग लाभ का प्रतिशत बढ़ाएगा।

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शीघ्र विवाह होने के लिये

शीघ्र विवाह होने के लिये

सात केले सात सौ ग्राम गुड और एक नारियल लेकर माता को अर्पित करें, नवमी को नारियल छ: बार, एक बार सीधा और एक बार उल्टा कन्या के सर पर वार कर नदी में प्रवाहित कर दें, केला और गुड का भोग चन्द्रमा व सूर्य भगवान के लिये निकाल दें और उसी में से थोड़ा सा प्रसाद कन्या ग्रहण करे बचे हुये पांच केले व गुड गाय को खिला दें शीघ्र विवाह होगा | 

Sunday, 5 March 2017

ज्योतिष में कब-क्या निषेध है*

*🌺

*ज्योतिष में कब-क्या निषेध है*
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*प्रतिपदा तिथि* :
-----------
प्रतिपदा तिथि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, वास्तुकर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शान्तिक तथा पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते हैं. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को बली माना गया है और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को निर्बल माना गया है. इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूडा़कर्म, वास्तुकर्म तथा गृहप्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए.
*द्वित्तीया तिथि* :
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विवाह मुहूर्त, यात्रा करना, आभूषण खरीदना, शिलान्यास, देश अथवा राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि कार्य करना शुभ माना होता है परंतु इस तिथि में तेल लगाना वर्जित है.
*तृतीया तिथि* :
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तृतीया तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं.
*चतुर्थी तिथि* :
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सभी प्रकार के बिजली के कार्य, शत्रुओं का हटाने का कार्य, अग्नि संबंधी कार्य, शस्त्रों का प्रयोग करना आदि के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है. क्रूर प्रवृति के कार्यों के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है..
*पंचमी तिथि* :
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पंचमी तिथि सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है. इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है.
*षष्ठी तिथि* :
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षष्ठी तिथि षष्ठी तिथि में युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शिल्प कार्यों का आरम्भ, वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे शुभ कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकर्म आदि कार्य वर्जित हैं.
*सप्तमी तिथि* :
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विवाह मुहुर्त, संगीत संबंधी कार्य, आभूषणों का निर्माण और नवीन आभूषणों को धारण किया जा सकता है. यात्रा, वधु-प्रवेश, गृह-प्रवेश, राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन संस्कार, आदि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं.
*अष्टमी तिथि* :
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इस तिथि में लेखन कार्य, युद्ध में उपयोग आने वाले कार्य, वास्तुकार्य, शिल्प संबंधी कार्य, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुडे़ कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले कार्यों का आरम्भ इस तिथि में किया जा सकता है.
*नवमी तिथि* :
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नवमी तिथि में शिकार करने का आरम्भ करना, झगड़ा करना, जुआ खेलना, शस्त्र निर्माण करना, मद्यपान तथा निर्माण कार्य तथा सभी प्रकार के क्रूर कर्म इस तिथि में किए जाते हैं.
*दशमी तिथि* :
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दशमी तिथि में राजकार्य अर्थात वर्तमान समय में सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है. हाथी, घोड़ों से संबंधित कार्य, विवाह, संगीत, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि इस तिथि में की जा सकती है. गृह-प्रवेश, वधु-प्रवेश, शिल्प, अन्न प्राशन, चूडा़कर्म, उपनयन संस्कार आदि कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं.
*एकादशी तिथि* :
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एकादशी तिथि में व्रत, सभी प्रकार के धार्मिक कार्य, देवताओं का उत्सव, सभी प्रकार के उद्यापन, वास्तुकर्म, युद्ध से जुडे़ कर्म, शिल्प, यज्ञोपवीत, गृह आरम्भ करना और यात्रा संबंधी कार्य किए जा सकते हैं.
*द्वादशी तिथि* :
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इस तिथि में विवाह, तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलमर्दन, नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए.
*त्रयोदशी तिथि* :
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संग्राम से जुडे़ कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका के निर्माण संबंधी कार्य, राज-संबंधी कार्य, वास्तु कार्य, संगीत विद्या से जुडे़ काम इस दिन किए जा सकते हैं. इस दिन यात्रा, गृह प्रवेश, नवीन वस्त्राभूषण तथा यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का त्याग करना चाहिए.
*चतुर्दशी* :
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चतुर्दशी तिथि में सभी प्रकार के क्रूर तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. शस्त्र निर्माण इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है. इस तिथि में यात्रा करना वर्जित है. चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं.
*पूर्णमासी* :
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पूर्णमासी जिसे पूर्णिमा भी कहते हैं, इस तिथि में शिल्प, आभूषणों से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं. संग्राम, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति तथा पोषण करने वाले सभी मंगल कार्य किए जा सकतेज हैं.
*अमावस्या*:
इस तिथि में पितृकर्म मुख्य रुप  से किए जाते हैं. महादान तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में शुभ कर्म तथा स्त्री का संग नहीं करना चाहिए.

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