इन्द्र ने जब अपना ऐश्वर्य, यश, सम्मान खोया तो उसे फिर से पाने के लिए उन्होंने ने भी सुख और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की उपासना की। महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इन्द्रदेव ने लक्ष्मी की स्तुति की। इसी इन्द्र स्तुति से स्वर्ग और उसकी रौनक फिर से लौटी।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥1॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥2॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥3॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥4॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥5॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥6॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥7
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्सि्थते जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥8
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्ति मान्नर:।
सर्वसिद्धिमवापनेति राज्यं प्रापनेति सर्वदा॥9
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥10
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥11
Friday, 14 July 2017
लक्ष्मी की स्तुति की।
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