Monday, 20 November 2023
आंवला नवमी आज******************
Friday, 10 November 2023
धनतेरस से शुरू कर दिपावली तक अपनी राशि अनुसार करे लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने का उपाय*
धनतेरस पर वास्तु के 10 टिप्स, जानिए किस द्वार पर दीपक में* *क्या डालें*
Wednesday, 8 November 2023
लगन के अनुसार भाग्य उदय
कुंडली में 12 भाव होते हैं। इन भावों के नाम 12 राशियों के नाम पर ही हैं। ये 12 राशियां हैं मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला , वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। कुंडली का प्रथम यानी पहला भाव जिस राशि का होता है उसी राशि के अनुसार कुंडली का लग्न निर्धारित होता है। लग्न के आधार पर कुंडलियां भी बारह प्रकार की होती हैं। इस आधार पर मेष लग्न की कुंडली वालों का भाग्योदय सामान्यत: 16, 22, 28, 32 और 36 वर्ष की आयु में, वृष लग्न की कुंडली का भाग्योदय 25, 28, 36 और 42 वर्ष की आयु में, मिथुन लग्न की कुंडली वालों का भाग्योदय 22, 32, 35, 36, 42 वर्ष की आयु में, कर्क लग्न की कुंडली वालों का भाग्योदय 16, 22, 24, 25, 28 या 32 वर्ष की आयु में और सिंह लग्न की कुंडली का भाग्योदय 16, 22, 24, 26, 28 या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है। जबकि कन्या लग्न की कुंडली वालों का भाग्योदय 16, 22, 25, 32, 33, 34 एवं 36 आयु वर्ष में और जिनकी कुंडली तुला लग्न की है, उनका भाग्योदय 24, 25, 32, 33, 35 वर्ष की आयु में हो सकता है।
वृश्चिक लग्न की कुंडली वालों का भाग्योदय 22, 24, 28 और 32 वर्ष की आयु में तो धनु लग्न की कुंडली का भाग्योदय 16, 22 या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है। इसी तरह मकर लग्न की कुंडली वालों का भाग्योदय 25, 33, 35 या 36 वर्ष की आयु में, कुंभ लग्न की कुंडली का भाग्योदय 25, 28, 36 या 42 वर्ष की आयु में और मीन लग्न की कुंडली वालों का भाग्योदय 16, 22, 28 या 33 वर्ष की आयु में हो सकता है।
Tuesday, 24 October 2023
कार्तिक मास में दीपदान से करें ग्रहों को प्रसन्न
Tuesday, 19 September 2023
Line between Rahu and Ketu in Your Chart.
Tuesday, 12 September 2023
मंगल काँटा
मंगल काँटा मछली से प्राप्त होता है, अगर कोई मांगलिक हैं जिससे शादी में परेशानी हैं, मंगल की दशा और शनि की साढ़ेसाती, ढईया, दशा के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। बार बार एक्सीडेंट होता हो तो ।
कब धारण करे मंगल कांटा –
1. जिनका व्यापार ना चलता हो।
2. पैसे रुक गये हो।
3. लोगों से अनबन, मनमुटाव हो।
4. कोर्ट कचहरी से बचना हो।
5. दाम्पत्य जीवन से अनबन, मनमुटाव दूर करना हो।
6. प्रेम संबंध को मजबूत करना हो।
7. काला जादू (ब्लेक मेजिक) बुरी नजर से छुटकारा पाना हो।
8. दूसरों के लिए करके भी बुराई मिलती हो।
9. पढाई में मन लगता ना हो।
10. रातों को नींद नहीं आती हो तो।
धारण विधि –
मंगलवार के दिन विधिवत कच्ची दूध एवं गंगाजल से शुद्ध कर पंचोपचार पूजन करें उसके उपरांत मंगल कांटा को धारण करें।
Sunday, 9 July 2023
पति पत्नी में #कलेश दूर करने के लिए
Monday, 19 June 2023
10 maha vidya
For mental peace, happiness, concentration, sound sleep and to improve weak moon (moon conjunct with or aspected by malefic like sun, mars, saturn, rahu, ketu) one should worship Goddess Bhuvaneshwari.
By worshipping Goddess Kali one can reduce the malefic effects of planet Saturn.
People born with badly placed mercury in the birth chart should worship Goddess Shodashi or Tripurasundari.
Goddess Tara controls planet Jupiter. By worshipping her one can enhance the good effects of Jupiter.
To gain all comforts, luxuries, and material pleasure in life, one should worship Goddess Kamala as she controls planet Venus.
People born with debilitated mars or mars-saturn, mars-rahu combination in the birth chart should worship Goddess Bagalamukhi to reduce the bad effects of planet Mars.
To pacify planet Rahu and to attain material success one can worship Goddess Chinnamasta.
Goddess Dhumavati controls planet Ketu. By worshipping her one can attain moksha or salvation.
People born with weak Lagna (ascendant) that is Lagna lord debilitated, rahu placed in Lagna or Lagna lord in the eighth or twelfth house of the birth chart should worship Goddess Bhairavi to strengthen their Lagna.
Thursday, 18 May 2023
ज्येष्ठ अमावस्या आज
Tuesday, 25 April 2023
यह रत्न कभी भी एक साथ धारण नहीं करना चाहिए*
Saturday, 22 April 2023
केदार योग
पितृदोष
Sunday, 8 January 2023
माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र
माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र
श्रीगणेशाय नमः ।
आनन्दयित्रि परमेश्वरि वेदगर्भे मातः पुरन्दरपुरान्तरलब्धनेत्रे ।
लक्ष्मीमशेषजगतां परिभावयन्तः सन्तो भजन्ति भवतीं धनदेशलब्ध्यै ॥ १॥
लज्जानुगां विमलविद्रुमकान्तिकान्तां कान्तानुरागरसिकाः परमेश्वरि त्वाम् ।
ये भावयन्ति मनसा मनुजास्त एते सीमन्तिनीभिरनिशं परिभाव्यमानाः ॥ २॥
मायामयीं निखिलपातककोटिकूटविद्राविणीं भृशमसंशयिनो भजन्ति ।
त्वां पद्मसुन्दरतनुं तरुणारुणास्यां पाशाङ्कुशाभयवराद्यकरां वरास्त्रैः ॥ ३
ते तर्ककर्कशधियः श्रुतिशास्त्रशिल्पैश्छन्दोऽ- भिशोभितमुखाः ।
सर्वज्ञलब्धविभवाः कुमुदेन्दुवर्णां ये वाग्भवे च भवतीं परिभावयन्ति ॥ ४॥
वज्रपणुन्नहृदया समयद्रुहस्ते वैरोचने मदनमन्दिरगास्यमातः ।
मायाद्वयानुगतविग्रहभूषिताऽसि दिव्यास्त्रवह्निवनितानुगताऽसि धन्ये ॥ ५॥
वृत्तत्रयाष्टदलवह्निपुरःसरस्य मार्तण्डमण्डलगतां परिभावयन्ति ।
ये वह्निकूटसदृशीं मणिपूरकान्तस्ते कालकण्टकविडम्बनचञ्चवः स्युः ॥ ६
कालागरुभ्रमरचन्दनकुण्डगोल- खण्डैरनङ्गमदनोद्भवमादनीभिः ।
सिन्दूरकुङ्कुमपटीरहिमैर्विधाय सन्मण्डलं तदुपरीह यजेन्मृडानीम् ॥ ७॥
चञ्चत्तडिन्मिहिरकोटिकरां विचेला- मुद्यत्कबन्धरुधिरां द्विभुजां त्रिनेत्राम् ।
वामे विकीर्णकचशीर्षकरे परे तामीडे परं परमकर्त्रिकया समेताम् ॥ ८॥
कामेश्वराङ्गनिलयां कलया सुधांशोर्विभ्राजमानहृदयामपरे स्मरन्ति
सुप्ताहिराजसदृशीं परमेश्वरस्थां त्वामाद्रिराजतनये च समानमानाः ॥ ९
लिङ्गत्रयोपरिगतामपि वह्निचक्र- पीठानुगां सरसिजासनसन्निविष्टाम् ।
सुप्तां प्रबोध्य भवतीं मनुजा गुरूक्तहूँकारवायुवशिभिर्मनसा भजन्ति ॥ १०॥
शुभ्रासि शान्तिककथासु तथैव पीता स्तम्भे रिपोरथ च शुभ्रतरासि मातः
उच्चाटनेऽप्यसितकर्मसुकर्मणि त्वं संसेव्यसे स्फटिककान्तिरनन्तचारे ॥ ११॥
त्वामुत्पलैर्मधुयुतैर्मधुनोपनीतैर्गव्यैः पयोविलुलितैः शतमेव कुण्डे ।
साज्यैश्च तोषयति यः पुरुषस्त्रिसन्ध्यं षण्मासतो भवति शक्रसमो हि भूमौ ॥ १२॥
जाग्रत्स्वपन्नपि शिवे तव मन्त्रराजमेवं विचिन्तयति यो मनसा विधिज्ञः ।
संसारसागरसमृद्धरणे वहित्रं चित्रं न भूतजननेऽपि जगत्सु पुंसः ॥ १३॥
इयं विद्या वन्द्या हरिहरविरिञ्चिप्रभृतिभिः पुरारातेरन्तः पुरमिदमगम्यं पशुजनैः.।
सुधामन्दानन्दैः पशुपतिसमानव्यसनिभिः सुधासेव्यैः सद्भिर्गुरुचरणसंसारचतुरैः ॥ १४॥
कुण्डे वा मण्डले वा शुचिरथ मनुना भावयत्येव मन्त्री संस्थाप्योच्चैर्जुहोति प्रसवसुफलदैः पद्मपालाशकानाम् ।
हैमं क्षीरैस्तिलैर्वां समधुककुसुमैर्मालतीबन्धुजातीश्वेतैरब्धं सकानामपि वरसमिधा सम्पदे सर्वसिद्ध्यै ॥ १५॥
अन्धः साज्यं समांसं दधियुतमथवा योऽन्वहं यामिनीनां मध्ये देव्यै ददाति प्रभवति गृहगा श्रीरमुष्यावखण्डा ।
आज्यं मांसं सरक्तं तिलयुतमथवा तण्डुलं पायसं वा हुत्वा मांसं त्रिसन्ध्यं स भवति मनुजो भूतिभिर्भूतनाथः ॥ १६॥
इदं देव्याः स्तोत्रं पठति मनुजो यस्त्रिसमयं शुचिर्भूत्वा विश्वे भवति धनदो वासवसमः ।
वशा भूपाः कान्ता निखिलरिपुहन्तुः सुरगणा भवन्त्युच्चैर्वाचो यदिह ननु मासैस्त्रिभिरपि ॥ १७॥
॥ इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितः प्रचण्डचण्डिकास्तवराजः समाप्तः ॥