चंपाषष्ठी / स्कंध षष्ठी आज
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मार्गशीर्ष (अगहन) माह की शुक्लपक्ष की षष्टी तिथि के दिन चंपा षष्ठी का पर्व मनाया जाता हैं। चंपा षष्ठी को चम्पा छठ, स्कंद षष्टी और बैंगन छठ के नाम से भी जाना जाता हैं। यह पर्व प्रमुख रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस दिन खंडोबा (खंडेराव) की पूजा की जाती है। खंडोबा को भगवान शिव का अवतार और चरवाहों, किसानों व शिकारियों का देवता माना जाता हैं।
इस दिन को स्कंद षष्टी भी कहा जाता हैं, दक्षिण भारत के कई स्थानों पर इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती हैं। इस दिन भगवान शिव के मार्कंडेय स्वरूप की उपासना करने से जातक का जीवन सुखमय हो जाता है और उसके इस जन्म व पूर्व जन्म के पापों का भी निवारण हो जाता हैं।
चंपा षष्ठी (चम्पा छठ) कब हैं?
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इस वर्ष चंपा षष्ठी का पर्व 26 नवम्बर 2025, बुधवार के दिन मनाया जायेगा।
चंपा षष्ठी का महत्व
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हिंदु मान्यता के अनुसार चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय का व्रत एवं पूजन करने से साधक को उनकी कृपा प्राप्त होती हैं। विधि अनुसार इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से
• साधक के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
• साधक जीवन की परेशानियों से मुक्त हो जाता हैं।
• साधक के कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाते हैं।
• सुखमय जीवन की प्राप्ति होती हैं।
• घर-परिवार में शांति होती हैं।
• धन-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
• संतान पर आने वाली विपत्तियों का नाश होता हैं। और उनका जीवन निष्कंटक हो जाता हैं।
• जातक जीवन के सभी सुखों को भोगकर मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त होता हैं।
• ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा और उनका व्रत करने से साधक को मंगल ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती हैं।
चंपा षष्टी की पूजा विधि
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• चंपा षष्ठी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व ही स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
• शिवालय जाकर दूध व गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें।
• शिवजी को बेलपत्र, फल-फूल अर्पित करें। चंदन से तिलक करें।
• भगवान शिव का ध्यान करें। शिवमहिम्नस्त्रोत्र और शिव चालीसा का पाठ करें।
• इस मंत्र का 108 बार जाप करें – ॐ श्रीं अर्धनारीश्वराय प्रेमतत्त्वमूर्तये नमः।
• भगवान शिव को भोग में देशी खाण्ड़, बाजरा और बैंगन अर्पित करें। फिर उसे भोग लगाकर निर्धन और जरूरतमंद लोगों में बाँट दें।
• संध्या (प्रदोष काल) के समय शिवालय में तेल के नौ दीपक जलायें।
चंपा षष्ठी की कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार एक समय मणि-मल्ह नाम के दो राक्षस थे। वो दोनो सगे भाई थे। वो ब्रह्मा जी से वरदान पाकर बहुत शक्तिशाली और निरंकुश हो गये थे। उन्होने अपनी शक्ति के अभिमान में आकर ऋषि-मुनियों का जीवन दूभर कर दिया था। तब ऋषियों ने देवताओं से सहयता मांगी पर कोई लाभ ना हुआ। मणि-मल्ह दोनों भाइयों की शक्ति के सामने उनकी एक ना चली तब सभी मिलकर भगवान शिव की शरण में गये। तब भगवान शिव ने उनकी सहायता का वचन दिया।
भगवान शिव भैरव रूप में प्रकट हुये और देवी पार्वती ने शक्ति स्वरूप में प्रकट होकर खंडोबा नामक स्थान पर मणि-मल्ह नाम के दोनों दैत्य भ्राताओं से छह दिनों तक युद्ध करके उन्हे चम्पा षष्टी के ही दिन मृत्यु के घाट उतार दिया था। इस लिये इस दिन चम्पा षष्टी का पर्व बहुत धूम-धाम से मनाया जाता हैं। महाराष्ट्र में भगवान शिव के अवतार भैरव को मार्तंड-मल्लहारी व खंडोबा के नाम से पुकारा जाता हैं।
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