सारे सम्बन्धो को एक तरफ रखकर श्रीकृष्ण से अपना सम्बन्ध बनाये
आप का भाग्य तभी साथ देगा जब आप का कर्म ठीक होगा , और जब कर्म ठीक होगा तभी ज्योतिष के उपाय भी काम करेगे वो भी तब जब आप उसमे श्रधा और विश्वाश के साथ करेंगे ,
ज्योतिष एवं श्री कृष्ण का सम्बन्ध—–
वेद-पुराणों द्वारा प्रतिपादित ज्योतिष शास्त्र में पूरे नव ग्रह श्रीकृष्ण के इर्द-गिर्द ही घूमते नजर आते हैं। पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि शनि, राहु व केतु जैसे महाकू्रर ग्रह श्रीकृष्ण के भक्तों को कष्ट पहुंचाना तो दूर, वे कृष्ण भक्तों को देख तक भी नहीं सकते। श्रीकृष्ण कारागृह में जन्म से लेकर धर्मक्षेत्र-कुरूक्षेत्र के युद्ध तक सारे जीवन में नवग्रहों के प्रभाव को मानव जीवन में स्थापित करते दिखते हैं। श्रीकृष्ण का भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र मे जन्में थे।
यह रोहिणी चंद्रमा का नक्षत्र है। जिस व्यक्ति का भी जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ है, उन्हें अनिवार्य रूप से श्रीकृष्ण की आराधना करनी ही चाहिए। साथ ही जन्म नक्षत्र पाया ‘सोना’ होने से सोने के पाए में जन्म लेने वाले सभी जातकों को श्रीकृष्ण की नियमित पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
जिन लोगों का जन्म अमावस्या के आसपास हुआ हो या जिनकी जन्मपत्री में चंद्रमा क्षीण हो या अन्य किसी ग्रह से पीडित हो, उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए क्योंकि पाराशर मुनि ने श्रीकृष्ण को चंद्र का अवतार ही माना है-चंद्रस्य यदुनायक:।
चंद्रमा के कमजोर होने से होने वाले सारे अरिष्ट श्रीकृष्ण के पूजन-अर्चन से खुद ब खुद ही दूर हो जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण मानव मात्र के लिए परम साधन-सिद्धिप्रदाता हैं।
सारे शास्त्र श्रीकृष्ण को ही गुरुओं का गुरू कहते हैं-’कृष्णं वन्दे जगद्गुरूम्।’ श्रीकृष्ण महादेवता तो हैं ही, साथ ही वे योगीश्वर, कर्मयोग के प्रवर्तक और संसार के सबसे बडे ज्ञानसंग्रह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के उपदेशक भी हैं।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार श्रीकृष्ण सृष्टि के उत्पादक, नियामक और संहारक हैं। शास्त्रों की यह प्रबल मान्यता है कि श्रीकृष्ण ही संसार के हरेक जीव को ‘शेषी’ रूप से धारण करते हैं। भाद्रपद की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर इस दिन को खासा महत्व प्रदान किया है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का निर्णय करते हुए लिखा है कि सिंह राशि में सूर्य के होने पर भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र से युक्त अर्द्धरात्रि में चंद्रोदय होने पर श्रीकृष्ण माता देवकी से प्रकट हुए।
ऎसी पवित्र श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को उल्लास-पूर्वक व्रतोत्सव, उपवास, श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना और रात्रि में जागरण करने का महाफल है। इस दिन श्रीकृष्ण की कथा सुनने और कहने मात्र से ही कई जन्मों के संचित पापों का नाश हो जाता है।
No comments:
Post a Comment