Friday, 30 September 2016

दुर्गा सप्तशती

दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक अंश है। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं, जिसमें 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। मुख्य रूप से ये तीन चरित्र हैं:

प्रथम चरित्र : प्रथम अध्याय : देवी महाकाली की स्तुति
मध्यम चरित्र : 2-4 अध्याय : देवी महालक्ष्मी की स्तुति
उत्तम ‍चरित्र : 5-13 अध्याय : देवी महासरस्वती की स्तुति

दुर्गा सप्तशती को सिद्ध करने की अनेक विधियां हैं जैसे की सामान्य विधि, वाकार विधि, संपुट पाठ विधि, सार्ध नवचण्डी विधि, शतचण्डी विधि। इसमें वाकार विधि अत्यंत सरल है जिसको आप घर पर आसानी से कर सकते हो।
प्रथम दिन दुर्गा सप्तशती शुरू करने से पहले नर्वाण मंत्र  "ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" का 108 बार पाठ जरूर करें। अर्गला, दुर्गा कवच, कीलक स्तोत्र, देवी के 108 नाम तथा सर्व कामना सिद्ध प्रार्थना प्रतिदिन पाठ के शुरू में पढ़े। पाठ के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर पढ़ें।

वाकार विधि :
यह विधि अत्यंत सरल मानी गई है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। अष्टमी को हवन होता है।

दुर्गा पाठ में अत्यंत आवश्यक सावधानियाँ
दुर्गा सप्तशती पाठ में शुद्धि का विशेष ध्यान रखें। शरीर शुद्धि, मन शुद्धि, स्थान शुद्धि, आसान (बैठने वाला) शुद्धि, मुँह/जिह्वा शुद्धि।
सप्तशती की पुस्तक को हाथ में लेकर पाठ करना वर्जित है। अत: पुस्तक को किसी आधार पर रख कर ही पाठ करना चाहिए।
मानसिक पाठ नहीं करें वरन् पाठ मध्यम स्वर से स्पष्ट उच्चारण सहित बोलकर करना चाहिए।
अध्यायों के अंत में आने वाले 'इति', 'अध्याय:' और 'वध' शब्दों का प्रयोग वर्जित है।

Thursday, 29 September 2016

Mantra to marry desired husband

ईच्छा अनुकुल पति प्राप्ति का मंत्र

Mantra To Marry Desired Husband


Marriage is an exciting prospect for couples in love, but it can also seem overwhelming and intimidating. This Mahadev mantra helps to get married with the desired person. The desired person may be the loved one or the one you desire the most. In other cases, you will get married with what you deserve best as a husband.

How To Chant The Mantra

Start from Pratipada Tithi  i.e first day after no moon.
Use Rudraksh Rosary for this purpose.
Chant 11 Rosary of this mantra for consecutive 21 days.
At the end of sadhna worship lord Shiva and offer some sweets to Brahmins.
Mantra

ॐ गौरीपति महादेवाय मम ईच्छित वर शीघ्र अतिशीघ्र प्राप्त्यर्थं ग़ौर्यै  नम: ॥
Om Gauripati Mahadevay Mam Ischit Var Shigra Atishigra Praptyartham Gaurayee Namah:

Remove troubles

Remove Troubles

आपदा उद्धारण

Tantra is a fundamental spiritual science. Tantra is an accumulation of practices and ideas which helps to work out the problems.This tantra simply removes the immediate troubles and problems in life like health problem, problems in marital affairs, delay in marriage, job transfer, litigations problem etc.Tested and effective tantra.

How To Do

Measure the thread of a Mauli ( Red thread used in rituals) equal to the length from foot thumb to head. Wrap it on a cocunut which contains water. Stand on a bank of river, lake or canal at the time of sunrise facing east. The cocunut be thrown in the river over your head. This will remove all the troubles and problems in life. Do it with 100% devotion.

Mantra to increase your income

आय बढ़ाने का मन्त्र
Mantra To Increase Your Income

This shabar mantra is for increasing your income and profits in the business and also for getting a big hike in a job. The mantra is very simple to chant and the results are very effective. Practice this mantra with full faith and devotion for getting faster results.

How To Chant The Mantra

विधि- किसी दिन प्रातः स्नान कर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप कर ११ बार गाय के घी से हवन करे। नित्य ७ बार जप करे। इससे शीघ्र ही आय में वृद्धि होगी।
प्रार्थना-विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रगट हुई कामाक्षा भगवती। आदि-शक्ति युगल-मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार। दोहाई कामाक्षा की, दोहाई दोहाई। आय बढ़ा, व्यय घटा, दया कर माई।

​Mantra

मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः शिव-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै, ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा।”

Friday, 23 September 2016

ऋणमोचन मंगल स्तोत्र॥

ऋणमोचन मंगल स्तोत्र॥

मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:।

स्थिरासनो महाकाय: सर्वकामविरोधक: ॥१॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकर:।

धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ॥२॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:।

वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद: ॥३॥

एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्।

ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥४॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥५॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:।

न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पापि भवति क्वचित् ॥६॥

अङ्गारक महाभाग भगवन् भक्तवत्सल।

त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय: ॥७॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये चापमृत्यव:।

भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥८॥

अतिवक्रदुरारा भोगमुक्तजितात्मन:।

तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥९॥

विरञ्चि शक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल: ॥१०॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:।

ऋणदारिद्रयदु:खेन शत्रुणां च भयात्तत: ॥११॥

एभिर्द्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्।

महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥१२॥

॥इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्तं ऋणमोचन मंगल स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

Tuesday, 13 September 2016

ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ?

🌞 ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ? 🌞

रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।

ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।

“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)

सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।

ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।

पौराणिक महत्व -- वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।

शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--
वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥
अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।

ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति :--
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।

इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।

ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।

ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।

वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1
अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।
यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35

अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।
उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।

अथर्ववेद- 7/16/२
अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।

व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।

जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या :--

प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।

प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल-त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।

प्रातः 7 से 9 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये।

प्रातः 11 से 1 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है।

दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसी लिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है ।

दोपहर 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।

दोपहर 3 से 5 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।

शाम 5 से 7 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

रात्री 7 से 9 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टी हुई है।

रात्री 9 से 11 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।

रात्री 11 से 1 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती है ।

रात्री 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।

नोट :-ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।

पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।

शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।

आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी।💖💥

सब सुखी और निरोगी हों !!

Sunday, 11 September 2016

चंद्र के उपाय

चन्द्रमा के उपाय
चन्द्रमा के नीच अथवा मंद होने पर शंख का दान करना उत्तम
होता है. इसके अलावा सफेद वस्त्र, चांदी, चावल, भात एवं
दूध का दान भी पीड़ित चन्द्रमा वाले व्यक्ति के लिए
लाभदायक होता है. जल दान अर्थात प्यासे व्यक्ति को
पानी पिलाना से भी चन्द्रमा की विपरीत दशा में सुधार
होता है. अगर आपका चन्द्रमा पीड़ित है तो आपको चन्द्रमा
से सम्बन्धित रत्न दान करना चाहिए. चन्दमा से सम्बन्धित
वस्तुओं का दान करते समय ध्यान रखें कि दिन सोमवार हो
और संध्या काल हो. ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा से
सम्बन्धित वस्तुओं के दान के लिए महिलाओं को सुपात्र
बताया गया है अत: दान किसी महिला को दें. आपका
चन्द्रमा कमज़ोर है तो आपको सोमवार के दिन व्रत करना
चाहिए. गाय को गूंथा हुआ आटा खिलाना चाहिए तथा
कौए को भात और चीनी मिलाकर देना चाहिए. किसी
ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को दूध में बना हुआ खीर
खिलाना चाहिए. सेवा धर्म से भी चन्द्रमा की दशा में
सुधार संभव है. सेवा धर्म से आप चन्द्रमा की दशा में सुधार
करना चाहते है तो इसके लिए आपको माता और माता समान
महिला एवं वृद्ध महिलाओं की सेवा करनी चाहिए.कुछ मुख्य
बिन्दु निम्न है-
1. व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि
के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए। रात्रि में
ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी
आती हो।
2. ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना
चाहिए।
3. वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना
चाहिए।
4. वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान
अवश्य करना चाहिए।
5. सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं पीना चाहिए।
6. सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल
करनी चाहिए।
ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार
चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को
प्रतिदिन दूध नहीं पीना चाहिए. स्वेत वस्त्र धारण नहीं
करना चाहिए. सुगंध नहीं लगाना चाहिए और चन्द्रमा से
सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए.

लक्ष्मी की कृपा

लक्ष्मी जी को पूरे वर्ष प्रसन्न रखने के उपाय ।
1. घर मेँ शालीग्राम जी की तुलसा जी सहित स्थापना करने से लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है
2. शुक्रवार के दिन तुलसा जी को जल देकर शाम के समय दीपक जलाकर आरती करने से लक्ष्मी जी खुश होती है ।
3. प्रतिदिन शाम के समय शिव मंदिर मेँ दीपक जलाने से लक्ष्मी जी अति प्रसन्न होती है 'शिवमहापुराण' के अनुसार शिव मंदिर मेँ दीपक जलाने के कारण ही कुबेर शिव जी के धन का अध्यक्ष बना था ।

शनि के उपाय

शनिवार के उपाय
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शनि को अनुकूल करने के सिद्ध उपाय
प्रतिकूलसमयकोअनुकूलकैसेकरें
१. खालीपेटनाश्ते से पूर्व काली मिर्च चबाकर गुड़ या बताशे से खाएं.
२. भोजन करते समय नमक कम होने परकाला नमक तथा मिर्च कम होने पर काली मिर्च का प्रयोग करें.
३. भोजन के उपरांतलोंग खाये.
४. शनिवार व मंगलवार को क्रोध न करें.
५. भोजन करते समय मौन रहें.
६. प्रत्येक शनिवार को सोते समय शरीर व नाखूनों पर तेल मसलें.
७. मॉस, मछली, मद्य तथा नशीली चीजों का सेवन बिलकुल न करें.
८. घर की महिला जातक के साथ सहानुभूति व स्नहे बरते. क्योकि जिस घर में गृहलक्ष्मी रोती है उस घर से शनि की सुख-शांति व समृद्धि रूठ जाती है. महिला जातक के माध्यम से शनि प्रधान व्यक्ति का भाग्य उदय होता है.
९. गुड़ व चनें से बनी वस्तु भोग लगाकर अधिक से अधिक लोगों को बांटना चाहिए.
१०.उड़द की दाल के बड़ेया उड़द की दाल, चावल की खिचड़ी बाटनी चाहिए.प्रत्येक शनिवार को लोहे की कटोरी म  ें तेल भरकर अपना चेहरा देखकर डकोत को देना चाहिए.डकोत न मिलेतो उसमे बत्ती लगाकर उसे शनि मंदिर में जला देना चाहिए.
११.प्रत्येक शनि अमावस्या कोअपने वजन का दशांश सरसों क ेतेल का अभिषेक करना चाहिए.
१२.शनिमृत्युंजयस्त्रोतदशरथकृतशनिस्त्रोतका४०दिनतकनियमितपाठकरें.
१३.काले घोड़े की नाल अथवा नाव की कील से बना छल्ला अभिमंत्रित करके धारण करना शनि के कुप्रभाव को हटाता है.
१४. जिस जातक क ेपरिवार, घर म ेंरिश्तेदारी, पड़ोस में कन्या भ्रूणहत्या होती है. जातक प्रयास कर इस ेरोक ेगातो शनि महाराज उससे अत्यंत प्रसन्न होते है.

शुक्र ग्रह के उपाय

।।शुक्र ग्रह के दोष शांत करने के उपाय।।
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कुंडली में शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति को पूर्ण सुख-सुविधाएं प्राप्त नहीं हो पाती हैं। साथ ही, वैवाहिक जीवन में भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र के दोषों के दूर करने के लिए शुक्रवार को विशेष उपाय किए जा सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार शुक्रवार को देवी लक्ष्मी के निमित्त भी उपाय किए जा सकते हैं। यहां जानिए छोटे-छोटे 5 उपाय...
1. हर शुक्रवार शिवलिंग पर दूध और जल अर्पित करें। साथ ही, ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। मंत्र जप कम से कम 108 बार करना चाहिए। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करना चाहिए।
2. किसी गरीब व्यक्ति को या किसी मंदिर में दूध का दान करें।
3. शुक्रवार को किसी विवाहित स्त्री को सुहाग का सामान दान करें। सुहाग का सामान जैसे चूड़ियां, कुमकुम, लाल साड़ी। इस उपाय से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
4. शुक्र से शुभ फल पाने के लिए शुक्रवार को शुक्र मंत्र का जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। शुक्र मंत्र: द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:।
5. शुक्र ग्रह के लिए इन चीजों का दान भी किया जा सकता है... हीरा, चांदी, चावल, मिश्री, सफेद वस्त्र, दही, सफेद चंदन आदि। इन चीजों के दान से शुक्र के दोष कम हो सकते हैं।

Saturday, 10 September 2016

वास्तु और बच्चो की पढ़ाई

वास्‍तु और बच्‍चों की पढ़ाई(Vastu tips for Education)

प्रत्येक अभिवावक की आकांक्षा होती है कि वह अपनी सन्तान को हर सम्भव साधन जुटाकर बेहतर से बेहतर शिक्षा उपलब्ध करा सके जिससे उसके व्यकितत्व में व्यापकता आये और वह स्वंय जीवनरूपी नैय्या का खेवनहार बनें। सारी सुविधायें होने के बावजूद भी जब बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है एंव जो कुछ पढ़ते है, वह शीघ्र ही भूल जाते हैं या फिर अधिक परिश्रम करने के बावजूद भी परीक्षाफल सामान्य ही रहता है। ऐसी सिथतियों में वास्तु का सहयोग लेने से आश्चर्यचकित परिणाम सामने आते है। अध्ययन कक्ष में इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए कि बच्चों का पढ़ाई के प्रति रूझान बढ़े एंव मन एकाग्र होकर अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो सके।
1- घर में अध्ययन कक्ष ईशान कोण अथवा पूर्व या उत्तर दिशा में बनवाना चाहिए। अध्ययन कक्ष शौचालय के निकट कदापि न बनवायें।
2- पढ़ने की टेबल पूर्व या उत्तर दिशा में रखें तथा पढ़ते समय मुख उत्तर या पूर्व की दिशा में ही होना चाहिए। इन दिशाओं की ओर मुख करने से सकारात्मक उर्जा मिलती है जिससे स्मरण शकित बढ़ती है एंव बुद्धि का विकास होता है।
3- पढ़ने वाली टेबल को दीवार से सटा कर न रखें। पढ़ते वक्त रीढ़ को हमेशा सीधा रखें। लेटकर या झुककर नहीं पढ़ना चाहिए। पढ़ने की सामग्री आखों से लगभग एक फीट की दूरी पर रखनी चाहिए।
4- अध्ययन कक्ष में हल्के रंगों का प्रयोग करें। जैसे- हल्का पीला, गुलाबी, आसमानी, हल्का हरा आदि।
5- राति्र को आधिक देर तक नहीं पढ़ना चाहिए क्योंकि इससे तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध,दृषिट दोष, पेट रोग आदि समस्यायें होने की प्रबल आशंका रहती है। ब्रहममुहूर्त या प्रात:काल में 4 घन्टे अध्ययन करना राति्र के 10 घन्टे के बराबर होता है। क्योंकि प्रात:काल में स्वच्छ एंव सकारात्मक ऊर्जा संचरण होती है जिससे मन व तन दोनों स्वस्थ्य रहते हैं।
6- अध्ययन कक्ष में किताबों की अलमारी को पूर्व या उत्तर दिशा में बनायें तथा उसकी सप्ताह में एक बार साफ-सफार्इ अवश्य करनी चाहिए। अलमारी में गणेश जी की फोटो लगाकर नित्य पूजा करनी चाहिए।
7-बीएड, प्रशासनिक सेवा, रेलवे, आदि की तैयारी करने वाले छात्रो का अध्ययन कक्ष पूर्व दिशा में होना चाहिए। क्योंकि सूर्य सरकार एंव उच्च पद का कारक तथा पूर्व दिशा का स्वामी है।
8- बीटेक, डाक्टरी, पत्रकारिता, ला, एमसीए, बीसीए आदि की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रो का अध्ययन कक्ष दक्षिण दिशा में होना चाहिए तथा पढ़ने वाली मेज आग्नेय कोण में रखनी चाहिए। क्योंकि मंगल अगिन कारक ग्रह है एंव दक्षिण दिशा का स्वामी है।
9- एमबीए, एकाउन्ट, संगीत, गायन, और बैंक की आदि की तैयारी करने वाले छात्रों का अध्ययन कक्ष उत्तर दिशा में होना चाहिए क्योंकि बुध वाणी एंव गणित का संकेतक है एंव उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।
10- रिसर्च तथा गंभीर विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों का अध्ययन कक्ष पशिचम दिशा में होना चाहिए क्योंकि शनि एक खोजी एंव गंभीर ग्रह है तथा पशिचम दिशा का स्वामी है। यदि उपरोक्त छोटी-2 सावधानियां रखी जायें तो निशिचत तौर पर आप कैरियर में सफलता के सोपान रच सकते हैं।
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