Sunday, 4 December 2016

भागवतपुराण : इस श्राप के कारण स्त्रियों को होता है मासिक धर्म

भागवतपुराण : इस श्राप के कारण स्त्रियों को होता है मासिक धर्म

आधुनिक समय में स्त्रियों के प्रति लोगों के नजरिए में व्यापक स्तर से बदलाव आया है. बात करें स्त्रियों को होने वाले मासिक धर्म की तो, लोग आज इस विषय पर खुलकर बात करने लगे हैं. लेकिन आज के समय से, सदियों पहले की बात करें तो कई बार मन में एक प्रश्न बार-बार आता है कि आखिर स्त्रियों को मासिक धर्म क्यों होता है. क्या इससे कोई पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. हमारे पुराणों में कई कथाएं मिलती हैं. जिनमें से भागवतपुराण में वर्णित कहानी के अनुसार स्त्रियों को होने वाला मासिक धर्म को श्राप से जोड़कर बताया गया है. भागवतपुराण की कहानी के अनुसार एक बार ‘बृहस्पति’ जो देवताओं के गुरु थे, वे इन्द्र देव से काफी क्रोधित हो गए.

इस कारण असुरों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया और इन्द्र को अपनी गद्दी छोड़कर भागना पड़ा. असुरों से खुद को बचाते हुए इन्द्र सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा से सहायता मांगी. तब ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि उन्हें एक ब्रह्म-ज्ञानी की सेवा करनी चाहिए, यदि वह प्रसन्न हो जाए तभी उन्हें उनकी गद्दी वापस प्राप्त होगी. आज्ञानुसार इन्द्र देव एक ब्रह्म-ज्ञानी की सेवा में लग गए लेकिन वे इस बात को नहीं जानते थे कि उस ज्ञानी की माता एक असुर थी इसलिए उसके मन में असुरों के लिए एक विशेष स्थान था. इन्द्र देव द्वारा अर्पित की गई सारी हवन की सामग्री जो देवताओं को चढ़ाई जाती है, वह ज्ञानी उसे असुरों को चढ़ा रहा था.

इससे उनकी सारी सेवा भंग हो रही थी. जब इन्द्र देव को सब पता लगा तो वे बेहद क्रोधित हो गए और उन्होंने उस ब्रह्म-ज्ञानी की हत्या कर दी. एक गुरु की हत्या करना घोर पाप था, जिस कारण उन पर ब्रह्म-हत्या का पाप आ गाया. ये पाप एक भयानक राक्षस के रूप में इन्द्र का पीछा करने लगा. किसी तरह इन्द्र ने खुद को एक फूल के अंदर छुपाया और एक लाख साल तक भगवान विष्णु की तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने इन्द्र देव को बचा तो लिया लेकिन उनके ऊपर लगे पाप की मुक्ति के लिए एक सुझाव दिया. इसके लिए इन्द्र को पेड़, जल, भूमि और स्त्री को अपने पाप का थोड़ा-थोड़ा अंश देना था.

इन्द्र के आग्रह पर सब तैयार तो हो गए लेकिन उन्होंने बदले में इन्द्र देव से उन्हें एक वरदान देने को कहा. सबसे पहले पेड़ ने उस पाप का एक-चौथाई हिस्सा ले लिया जिसके बदले में इन्द्र ने उसे एक वरदान दिया. वरदान के अनुसार पेड़ चाहे तो स्वयं ही अपने आप को जीवित कर सकता है. इसके बाद जल को पाप का हिस्सा देने पर इन्द्र देव ने उसे अन्य वस्तुओं को पवित्र करने की शक्ति प्रदान की. यही कारण है कि हिन्दू धर्म में आज भी जल को पवित्र मानते हुए पूजा-पाठ में इस्तेमाल किया जाता है.

तीसरा पाप इन्द्र देव ने भूमि को दिया इसके वरदान स्वरूप उन्होंने भूमि से कहा कि उस पर आई कोई भी चोट हमेशा भर जाएगी. अब आखिरी बारी स्त्री की थी. इस कथा के अनुसार स्त्री को पाप का हिस्सा देने के फलस्वरूप उन्हें हर महीने मासिक धर्म होता है लेकिन उन्हें वरदान देने के लिए इन्द्र ने कहा की ‘महिलाएं, पुरुषों से कई गुना ज्यादा काम का आनंद उठाएंगी’.

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