Friday, 2 December 2016

भगवान श्रीगणेश की सवारी चूहा ही क्यों ?

भगवान श्रीगणेश की सवारी चूहा ही क्यों ?

देवों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश जी का वाहन चूहा है। चूहा जिसे संस्कृत में मूषक कहते हैं, जो कि शारीरिक आकार में छोटा होता है। गणेश जी बुद्धि के देवता है तो चूहा को तर्क-वितर्क का प्रतीक माना गया है। चूहे में इसके अलावा और भी कई गुण होते हैं, यही कारण है कि गणेशजी ने चूहे को ही अपना वाहन चुना था। गणेश पुराण के अनुसार हर युग में गणेश जी का वाहन बदलता रहता है। सतयुग में गणेश जी का वाहन सिंह है। त्रेता युग में गणेश जी का वाहन मयूर है और वर्तमान युग यानी कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है। चूहा द्वापर युग में उनका वाहन था। चूहा कैसे बना गणेश जी का वाहन? इस बारे में हमारे धर्मग्रंथों में एक पौराणिक कहानी का उल्लेख मिलता है। कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार महर्षि पराशर अपने आश्रम में ध्यान अवस्था में थे। तभी वहां कई चूहे आए और उनका ध्यान भंग करने लगे। उन चूहों ने आश्रम को तहस-नहस कर दिया। महर्षि पराशर का ध्यान भंग हो गया, वह यह सब कुछ देख रहे थे। वह इस समस्या के समाधान के लिए गणेश जी का स्मरण करने लगे। गणेश जी को जब महर्षि की समस्या के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी चूहों को वहां से भगाने के लिए अपना पाश फेंका। आश्रम में एक चूहा ऐसा था जो सबसे ज्यादा उत्पात मचा रहा था। पाश ने उस चूहे को बांधकर गणेशजी के सामने उपस्थित किया। विशालकाय रूप के गणेशजी को देख वह चूहा उनकी उपासना करने लगा। गणेश जी उस चूहे से कहा, अब तुम मेरी शरण में हो तुम जो चाहे मांग सकते हो। गणेश जी की बातों को सुन चूहे में अहंकार पैदा हो गया। उसने गणेश जी से कहा, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, यदि आपको कुछ चाहिए तो आप मुझसे मांग सकते हैं। गणेश जी उसकी बात सुनकर प्रसन्न हुए और चूहे से कहा, मूषक यदि तुम कुछ देना चाहते हो तो मेरे आजीवन वाहन बन जाओ। चूहे ने स्वीकार कर लिया। जब गणेशजी, चूहे पर बैठे तो उसका शरीर, गणेशजी के वजन को सह नहीं पाया और उसका घमंड चूर-चूर हो गया। उसने अपने इस कृत्य के लिए माफी मांगी। तब गणेश जी ने अपना वजन कम किया। और इस तरह आज तक गणेश जी का वाहन वही चूहा है।

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