Saturday, 29 December 2018

SUN IN A SIGN OF MARS

SUN IN A SIGN OF MARS IN ASPECT TO OTHERS. Should the Sun be in a Sign of Mars
(i.e. either in Aries, or in Scorpio) and be aspected by the Moon, the native will be interested
in giving away gifts, will have many servants, be charming, be dear to fair sex and will have a
soft physique.
Should the Sun be in a Sign of Mars and be aspected by Mars, the native will display his courage
in battle, be cruel, will possess eyes, hands and legs of blood-red colour, be splendourous
and strong.
Should the Sun be in a Sign of Mars and be aspected by Mercury, the subject will be a servant,
will do others jobs, will not have much wealth, be devoid of strength, be subjected to much
grief and will possess a dirty body.
Should the Sun be in a Sign of Mars and Jupiter aspects the said Sun, the native will have plenty
of money, will donate, be a kings minister, a judge and a supreme person.
If Venus aspects the Sun posited in a House of Mars, the native will be the husband of a bad
woman, will have many enemies, but few relatives (or not well-placed relatives), be poor and
will suffer from leprosy.
In case Saturn aspects the Sun in a Sign of Mars, the native will be subjected to grief on account
of physical ailments, will have intense passion in his undertaking, be dull-witted and a dunce.

Friday, 28 December 2018

स्वस्तिक

स्वस्तिक के टोटके एवं उपाय
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स्वस्तिक और वास्तु :वास्तुशास्त्र में स्वस्तिक को वास्तु का प्रतीक मान गया है। इसकी बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा से एक समान दिखाए देता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है।

घर के मुख्य द्वार के दोनों और अष्‍ट धातु और उपर मध्य में तांबे का स्वस्तिक लगाने से सभी तरह का वस्तुदोष दूर होता है।

पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है।

पहला उपाय👉 वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है।

दूसरा उपाय👉 मांगलिक, धार्मिक कार्यों में बनाएं स्वस्तिक :धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्‍टी देता है। त्योहारों पर द्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर या रंगोली से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है। इसे बनाने से देवी और देवता घर में प्रवेश करते हैं। गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।

तीसरा उपाय👉 व्यापार वृद्धि हेतु :यदि आपके व्यापार या दुकान में बिक्री नहीं बढ़ रही है तो 7 गुरुवार को ईशान कोण को गंगाजल से धोकर वहां सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाएं और उसकी पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद वहां आधा तोला गुड़ का भोग लगाएं। इस उपाय से लाभ मिलेगा। कार्य स्थल पर उत्तर दिशा में हल्दी का स्वस्तिक बनाने से बहुत लाभ प्राप्त होता है।

चौथा उपाय👉 स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर जिस भी देवता की मूर्ति रखी जाती है वह तुरंत प्रसन्न होता है। यदि आप अपने घर में अपने ईष्‍टदेव की पूजा करते हैं तो उस स्थान पर उनके आसन के उपर स्वस्तिक जरूर बनाएं।

पांचवां उपाय👉 देव स्थान पर स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर पंच धान्य या दीपक जलाकर रखने से कुछ ही समय में इच्छीत कार्य पूर्ण होता है। इसके अलावा मनोकामना सिद्धी हेतु मंदिर में गोबर या कंकू से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है। फिर जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वहीं जाकर सीधा स्वस्तिक बनाया जाता है।

छठा उपाय👉 सुख की नींद सोने हेतु :यदि आप रात में बैचेन रहते हैं। नींद नहीं आती या बुरे बुरे सपने आते हैं तो सोने से पूर्व स्वस्तिक को तर्जनी से बनाकर सो जाएं। इस उपाय से नींद अच्छी आएगी।

सातवां उपाय👉 संजा में स्वस्तिक :पितृ पक्ष में बालिकाएं संजा बनाते समय गोबर से स्वस्तिक बनाती है। इससे घर में शुभता, शां‍ति और समृद्धि आती है और पितरों की कृपा भी प्राप्त होती है।

आठवां उपाय धनलाभ हेतु👉 प्रतिदिन सुबह उठकर विश्वासपूर्वक यह विचार करें कि लक्ष्मी आने वाली हैं। इसके लिए घर को साफ-सुथरा करने और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद सुगंधित वातावरण कर दें। फिर भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें।

देहली के दोनों ओर स्वस्तिक बनाकर उसकी पूजा करें। स्वस्तिक के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से धनलाभ होगा।

नौवां उपाय👉 बेहद शुभ है लाल और पीले रंग का स्वस्तिक :अधिकतर लोग स्वस्तिक को हल्दी से बनाते हैं। ईशान या उत्तर दिशा की दीवार पर पीले रंग का स्वस्तिक बनाने से घर में सुख और शांति बनी रहती है। यदि कोई मांगलिक कार्य करने जा रहे हैं तो लाल रंग का स्वस्तिक बनाएं। इसके लिए केसर, सिंदूर, रोली और कुंकुम का इस्मेमाल करें।📚🖍🙏🙌
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व्यवसाय आरम्भ मुहूर्त विशेष

व्यवसाय आरम्भ मुहूर्त विशेष
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हर व्यक्ति कि नया व्यापार करने पर यही आशा रहती है कि उसका व्यापार खूब चले। परंतु सबको सफलता नहीं मिलती है कई बार बहुत से लोगो को व्यापार में घाटा और बहुत सी अड़चनों के कारण जल्दी ही अपना व्यापार बंद करना पड़ता है !ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह सामान्यता अशुभ मुहूर्त में कार्य आरम्भ करने के कारण होता है। इसलिए बेहतर यही है कि जब भी नया व्यापार करना हो तो उस समय मुहुर्त पर अच्छी तरह विचार कर लें । मुहुर्त जब शुभ हो तभी व्यापार करें अन्यथा शुभ मुहुर्त के आने की प्रतीक्षा करें।

1👉 दुकान खालने के लिए जब आप मुहुर्त निकालें उस समय तिथि का भी विचार भी अवश्य करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दुकान खोलने के लिए सभी तिथि शुभ हैं परंतु रिक्ता तिथि यानी (चतुर्थ, नवम व चतुर्दशी) में में दुकान खोलने से बचना चाहिए।

2👉 नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा , षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

3👉 नए व्यापार शुरू करने के लिए कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा के अगले दिन से अमावस तक ) कि तिथि का त्याग करने में ही बुद्धिमानी है इसके लिए शुक्ल पक्ष (अमावस के अगले दिन से पूर्णिमा तक ) कि तिथियाँ ज्यादा शुभ होती है।

4👉 नए व्यापार दुकान खोलने में मंगलवार को बिलकुल भी त्याग देना चाहिए । मंगलवार के अलावा आप किसी भी दिन दुकान खोल सकते हैं।

5👉 अमावस का दिन भी नए व्यापार कि शुरुआत के लिए शुभ नहीं है । 13 तारीख तथा यदि व्यक्ति के पिता कि मृत्यु हो चुकी है तो उनकी मृत्यु कि तिथि का भी त्याग कर देना चाहिए ।

6👉 भद्रा में भी नया काम बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।

7👉 हमेशा ध्यान दें कि कोई भी एग्रीमेंट कभी भी रविवार, मंगलवार या शनिवार को नहीं करना चाहिये।

8👉 असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं और बारहवीं राशि पर जब चंद्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए।

9👉 शुक्ल पक्ष की द्वितीया,  तृतीया,  पंचमी, सप्तमी, दशमी, द्वादशी एवं त्रयोदशी तिथि व्यापार के लिए बहुत शुभ मानी गयी है। इन तिथियों को व्यापार शुरू करने से मनवाँछित सफलता मिलने के योग प्रबल रहते है ।

10👉 बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधार लेना मुहूर्त की दृष्टि से कतई भी शुभ नहीं माना गया है।

11👉 युग तिथियां - सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग व कलियुग जिन तिथियों को ये युग आरम्भ हुए थे उन दिनों में भी कोई शुभ कार्य नहीं करने चाहियें। ये इस प्रकार से हैं :-

सतयुग - कार्तिक शुक्लपक्ष की नवमी,

त्रेतायुग - बैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया ,.

द्वापरयुग - माघ कृष्णपक्ष की अमावस्या,

कलियुग - श्रावण कृष्णपक्ष त्रयोदशी।

किसी भी नए व्यापार में सफलता के लिए नीचे दिए गए उपायों को अपनाने से शीघ्र मनचाही सफलता प्राप्त होती है ।

12👉  नया व्यापार शुरू करने वाले व्यक्ति अपने व्यापार में सफलता के लिए 6 मुखी रुद्राक्ष चांदी के साथ धारण करें ।

13👉 नया व्यापार शुरू करने वाले व्यक्ति अपने व्यापार में सफलता के लिए गुरुवार को श्री विष्णु भगवान का व्रत रखें व किसी भी विष्णु मंदिर में मीठा प्रसाद चड़ाकर उसका वितरण करें।

14👉 नया व्यापार शुरू करने वाले व्यक्ति अपने व्यापार में सफलता के लिए पंच धातुओं की विभिन्न वस्तुऐं किसी भी जरूरतमंद को दान करें।

15👉 नया व्यापार शुरू करने वाले व्यक्ति अपने व्यापार में सफलता के लिए काले घोड़े की नाल दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली में पहनें।

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Sunday, 23 December 2018

Dagdha Rashi


Dagdha Rashi is the result of the combination of Day, Tithi( lunar day) and Nakshaktra(constellation). It’s also called Burnt sign. Out of these Tithi, is most important in predictive astrology. Tithi assumes an extremely distinctive part in astrology though the majority of the Vedic astrologer overlooks 'its significance while making forecasts. We have 14 Tithis of Shukla Paksha(waxing Moon period) and 14 of Krishna Paksha,(waning Moon period) in this way making the aggregate of 28. Since one Tithi contains Poornima (Full moon) and one Amavasya (New moon) it an aggregate 30 Tithis and these 30 Tithis make one lunar month. To start with Tithi is known as Pratipada( 1st) and the last one is Chaturdashi,(14th) barring Poornima and Amavasya. Each native is born on some Tithi from Pratipada to Chaturdashi and obviously on Poornima and Amavasya also. Presently on each Tithi two Rashis (signs) are given the name of Dagdha Rashis and on some Tithis four Rashis(signs) fall under the classification of Dagdha Rashis(signs). On Poornima and Amavasya no Rashi is Dagdha Rashi(sign). The precise significance of Dagdha is smoldered. These Dagdha Rashis give either magnificent or most exceedingly awful results under specific conditions.

 It is always good if this Dagdha Rashi(sign) falls in a Trik Bhava ( 6,8,12 houses), since a negative Rashi falling in a negative Bhava/house will give good results.

 • In case either of the Dagdha Rashi(sign) falls in a good Bhava/house, it is certain to spoil some good qualities of the concerned Bhava/house.

 • Apart from Sun and Moon, every planet has ownership over two Rashis (signs) and the Rashi (sign), which is Dagdha, suffers and not the other sign owned by the same planet.

 • If a benefic planet is posited in Dagdha Rashi (sign) at the same time it is in retrograde motion, it will give excellent results during its period, or sub period. But in case this benefic happens to be in its direct motion it will give worst results in its period or sub period. Up to some extent this rule is valid during transit also

. • If a malefic planet is posited in a Dagdha Rashi (sign) but in its direct motion it will give excellent results during its period and its sub period. But in case this malefic happens to be in its retrograde motion, it will give worst results during its period and sub period. Again up to some extent this rule applies during transit also.

 • Since Rahu’s(north node) and Ketu’s (south node)natural motion is retrograde only and they never move in a direct motion, therefore placement of these two planets in a Dagdha Rashi (sign) will always give excellent results during their periods and sub period. But out of the two, Rahu will give much better results as compared to Ketu.

 

 • In case a Dagdha Rashi (sign) is occupied by two planets, out of which one is malefic and other is benefic and this malefic is in direct motion and the benefic in a retrograde motion, in such a case in one planet’s major period the sub period of other planet will give excellent result. In case, as per rules if malefic is in its direct motion and the benefic is retrograde, a major period is that of malefic planet” will give excellent results, but as and when the sub period of benefic runs it will give bad results and vice versa.

 • The sun and the moon, being luminaries and having only direct motion are exempted from the rules mentioned above.

 

      
The Dagdha Rashis are based on each Tithi.

1) Prathama Tithi –Tula(Libra) and Makara(Capricorn)
2) Dwiteeya Tithi ---Dhanu(Sagittarius) and Meena(Pisces)
3) Triteeya Tithi ----Simha(Leo) and Makara(Capricorn)
4) Chaturthi Tithi ---Vrishabha(Taurus) and Kumbha(Aquarius)
5) Panchami Tithi ---Mithuna(Gemini) and Kanya(Virgo)
6) Shasti Tithi ------Mesha(Aries) and Simha(Leo)
7) Sapthami Tithi ---Kataka(cancer) and Dhanu(Sagittarius)
8) Ashtami Tithi ----Mithuna(Gemini) and Kanya(Virgo)
9) Navami Tithi -----Simha(Leo) and Vrischika(Scorpio)
10) Dashami Tithi ---Simha(Leo) and Vrischika(Scorpio)
11) Ekadashi Tithi ---Dhanu(Sagittarius) and Meena(Pisces)
12) Dwadahsi Tithi –Tula(Libra) and Makara(Capricorn)
13) Trayodashi Tithi –Vrishabha(Taurus) and Simha(Leo)
14) Chaturdashi Tithi – Meena(Pisces)Mithuna(Gemini)Kanya (Virgo)and Dhanu(Sagittarius)
15) Paurnima Tithi ----None
16) Amavasya Tithi ---None.

Dagdha Yoga (combination of days and constellations)

Week days and certain constellations form Dagdha Yoga, which is again malefic and is not desirable for good elections (muhurtha) 

1. Bharani on Sunday
2. Chitra on Monday
3. Uttarashada on Tuesday
4. Danishta on Wednesday
5. Uttarafalguni on Thursday
6. Jyestha on Friday
7. Revathi on Saturday

Dagdha Yoga (combination of days and tithi)

Week days and the tithis form Dagdha Yoga, which is malefic and is not desirable for good elections (muhurtha) 

1. Sunday and 12th tithi
2. Monday and 11th tithi
3. Tuesday and 5th tithi
4. Wednesday and 3rd tithi
5. Thursday and 6th tithi
6. Friday and 8th tithi
7. Saturday and 9th tithi

Wednesday, 19 December 2018

By planting a tree

*By planting a tree suitable for your constellation, by worshiping that tree or giving it water , doing Pradikshina , seeing it every day, removes defects and increases fate.*

1. Ashwini : Banana , Akki, Dhatura
2. Bharni : Banana, Amla
3. Kritika: Guulher
4. Rohini: Jamun
5. Mrigashirsa : Khher
6. Adra : Mango, Bel
7. Punavarsu : Bamboo
8. Pushya : Peepal
9. Ashlesha : Nagakeshar, Chandan
10. Magha : Banyan
11. Purvaphalgun : Dhak (Palas)
12. Uttaraphalgun : Vad
13. Hasta : Ritha , Jaai
14. Chitra : Bel
15. Swati : Arjun
16. Vishakha : Neem
17. Anuradha : Maulsiri
18. Jyeshta : Reetha
19. Mool : Resin tree
20. Purvashada : Maulsiri, Jamun
21. Uttarashada : Jackfruit
22. Shravan : Aak
23. Dhanistha : Shami
24. Shadbhishna: Kadamb
25. Purva Bhadrapad : Mango
26. Uttara Bhadrapad : Peepal
27. Revathi: Mahua

One can keep a small twig with them,  as per their constellation. Can hold it during meditation also.

A small village named as Yewat near Pune (35-40kms) has a Agrovan tourism destination having all these trees.

The place is known as
*NAKSHATRA PARK*

Tuesday, 18 December 2018

सन्तान और प्रश्न ज्योतिष

सन्तान और प्रश्न ज्योतिष
    
  भाग 1                             

*प्रशस्त भार्या*

जो पत्नी पति से सहवासोप्रांत शीघ्र ही गर्भ धारण करे और शुभ समय की महिमा से पुत्र या सन्तति को जन्म देती है वो प्रशस्त पत्नी होती है।इसलिये गर्भाधान शुभ समय में करना चाहिए। शुभ लग्न तथा शुभ ग्रहों की स्थिति के समय ही सन्तति,पुत्र धन आदि स्व सबंधित समस्याओं पर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए।
      
*पृच्छक विधि*

“इस नाम वाले या इस जन्मनक्षत्र वाले पुरुष से इस  नामवाली या इस जन्म नक्षत्र वाली स्त्री में पुत्र उतपन्न होगा या नही?इस प्रकार की शब्दावली में दम्पति के नाम/नक्षत्रो को बताकर प्रश्न पूछना चाहिए ऐसा प्रश्नग्रन्थकारों का मत है।
   
*लग्नारूढ़ विचार*

यह प्रश्न तो साधारण है परन्तु इसके विचार में प्रश्नसंग्रहकारों का मत है की लग्न तथा आरूढ़ से इसका विचार करना चाहिए।

इस प्रश्न में लग्न पति से सम्बंधित विषयों का तथा आरूढ़ पत्नी से सम्बंधित विषयों का द्योतक होता है।

अतः लग्न से प्रजनन में पति की भूमिका का तथा आरूढ़ राशि से पत्नी की भूमिका का विचार करें,यही अभिप्राय यहाँ व्यक्त किया जा रहा है।
    
*दोष विचार*

(१)यदि आरूढ़ राशि का स्वामी तथा शुभपति(नवमेश)ये दोनों ही ग्रह अस्त हो तो क्षेत्र(स्त्री की प्रजनन शक्ति)में दोष होने के कारण   दूसरी पत्नी से सन्तति उतपन्न होती है। अर्थात सन्तान प्राप्ति के लिए पुरुष को दूसरा विवाह करना पड़ता है।

(२)यदि लग्नेश तथा सुतपति(पंचमेश) दोनों ही अस्तंगत हों तो बीजदोष(पुरुष की प्रजनन शक्ति)में कमी होती है अतः उसे दूर करने के लिये *विष्णुर्विप्राश्चर्यास्तनयो*भगवान विष्णु की पूजा तथा ब्राह्मणों का अर्चन करना चाहिए। तब यह दोष दूर होकर सन्तान प्राप्ति होती है ।

(३)यदि प्रश्नकाल में प्रश्नकुण्डली उदय लग्न तथा आरूढ़ से पति-पत्नी दोनों में दोष विद्यमान हो तो फिर सन्तान प्राप्ति नही होती *(नात्मजप्तिर्द्विदोषे)* है।
*।सन्तानदीपिका मत ।*
(१)यदि चन्द्रमा आरूढ़ राशि से उपचय स्थानों में बैठा हो अथवा लग्नराशि से अन्यथा(अनुपचय)स्थानों में बैठा हो तो सन्तान प्राप्ति कठिन होती है।

(२)जब आरूढ़ की राशि स्त्रिराशि हो तथा लग्न की राशि भी स्त्रिराशि हो अथवा आरूढ़ तथा प्रश्न लग्न पुरुष राशि में हों

(3)अग्नि तत्व का उदय जब प्रश्नलग्न में हो रहा हो

(४) लग्न तथा आरूढ़ में स्थिर राशियाँ(वृश्चिक-वृष-सिंह)अथवा कन्या राशि हों

(५)वृहस्पति यदि फल देने की स्थिति में बलवान न हो इन उपरिवर्णित स्थितियों में पुत्र प्राप्ति दूर्लभ ही होती है।।

स्त्री पुरुष की सन्तान हीनता,दत्तक पुत्र के योग,पुत्र शोक,अल्पसन्तति,अधिक सन्तति आदि के योग को आगे बतलाया जा रहा है।
  
*अनपत्यता योग*

बृहस्पति,लग्नाधिपति,सप्तमाधिपति तथा पंचमेश ये सभी ग्रह यदि निर्बल हों तो दम्पति को अनपत्यता(सन्तानहीनता)कहनी चाहिए।

यदि पुत्रस्थान(पंचम भाव) में पाप ग्रह बैठे हों तथा पंचमेश पाप ग्रहों के मध्य में(या पाठान्तर के अनुसार नीच राशि में)होकर शुभ दृष्टि रहित हो तो सन्तान नही होगी ऐसा कहना चाहिए।

यदि गुरु,लग्न तथा चन्द्रमा इन तीनो से पंचम स्थानों में पाप ग्रह हों तथा उनपर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो भी अनपत्यता होती है।
तातपर्य यह है की पुत्रकारक गुरु प्रश्नलग्न प्रश्नचन्द्र से(जन्मपत्री में भी तीनों से)सन्तति का विचार करें।।

  *दत्तक पुत्र योग*
यदि पंचम भाव में बुध की राशि(मिथुन-कन्या)अथवा शनि की राशि(मकर-कुम्भ)में से कोई राशि हो तथा शनि या गुलिक से युत या दृष्ट हो तो दत्तकादि पुत्र का योग होता है।

यदि पुत्रस्थान(पञ्च भाव)में शुभ ग्रह पूर्ण बलि होकर बैठा हो परन्तु पंचमेश की दृष्टि पुत्रभाव पर न हो तो भी दत्तकादि पुत्रों के योग होते हैं।।
  
*पुत्र शोक योग*
(१)यदि कुंडली में गुरु मकर राशि अथवा मीन राशि का होकर पंचम भाव में स्थित हो तो पृच्छक को पुत्रशोक होता है।

(2)यदि पंचम भावगत गुरु कर्क राशि में हो तो जातक या पृच्छक के कन्याओं का जन्म होता है।

इन दोनों योगों में प्रथम योग कन्यालग्न या वृश्चिकलग्न की कुंडलियों में ही घटित होगा।दूसरा योग केवल मीन लग्न की कुंडली में घटित होगा।

ये तीनो लग्न स्त्री राशियाँ हैं तथा *स्थानहानिकरो* *गुरुः*इस वाक्य के अनुसार गुरु पुत्रशोककारक हो गया इन योगों में।
   
*पुत्रनाश योग*
यदि अष्टमेश पंचम भाव में बैठा हो तथा पंचमेश या तो अष्टम भाव में बैठा हो अथवा यदि अन्य किसी भाव में बैठा हो नीच राशिगत हो और उसपर शुभ ग्रहो की युति या दृष्टि न हो तो दैवज्ञ को सन्तति नाश बतलाना चाहिए।

यदि गुरु पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पंचमेश निर्बल होकर उस पर शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि न हो तो सन्तान हानि कहनी चाहिए।

यदि पंचम भाव 2 पापी ग्रहों के बीच हो तथा उसपर शुभ ग्रहों की युति दृष्टि न हो साथ ही पंचमेश अशुभ ग्रहों से युत दृष्ट हो तो भी सन्ततिनाश कहना चाहिए।

यदि पंचमेश नीच राशि,शत्रु राशिगत,अस्तंगत हो अथवा वह अष्टमेश षष्ठेश एवं व्ययेश के साथ स्थित हो तथा पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो पुत्रनाशक योग होता है ऐसा मुनिजनो ने अनेक ग्रन्थों में उल्लेख किया है।।

     *सन्तति लाभ योग*

▪यदि पंचमेश बलवान होकर या तो लग्नेश से संयुक्त हो अथवा लग्नेश से दृष्ट हो तथा पंचम भाव पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो तो सन्ततिलाभ कहना चाहिए।

▪जब मंगल पंचम भाव में मेष,सिंह,वृश्चिक या मीन राशि में बैठा हो तथा गुरु से युत या दृष्ट हो तो पुत्रप्राप्ति कहनी चाहिए।
▪यह योग धनु,मेष,कर्क या वृश्चिक लग्नो में ही बनेगा।इन लग्नो में मंगल तथा गुरु दोनों की स्वराशि या मित्रराशि पंचम भाव में होगी।
▪यदि पंचम भाव शुभ ग्रहों के मध्य हो अर्थात शुभकर्त्तरी योग में हो,उस पर शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि हो या पंचमेश से युत-दृष्ट हो तो पुत्र प्राप्त होगा ऐसा दैवज्ञ को कहना चाहिए।

▪यदि पंचम भाव का स्वामी बारहवे,आठवे,छठे भाव को छोड़कर अन्य भाव में बली होकर बैठा हो तथा उस पर शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि हो तो इस योग में जातक या पृच्छक को पुत्र प्राप्ति कहनी चाहिए।

▪यदि पंचमेश बली होकर पंचम भाव में,सप्तम्भाव में अथवा लग्न में बैठा हो और पापग्रहों  की युति दृष्टि से रहित हो तो सन्तति लाभ कहना चाहिये।

▪लग्न में पंचमेश की स्थिति जातक को सम्पूर्ण शुभ फल देने वाली होती है  तथा सप्तम में पंचमेश पत्नी को सन्तति लाभ सूचित करता है अतः इन दोनों भावों में पंचमेश की स्थिति शुभ मानी गयी है।

▪यदि गुरु बलवान होकर पंचम,सप्तम अथवा लग्न में बैठा हो,उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि न हो तो सन्तति लाभ कहना चाहिए।

▪केवल बली गुरु ही पञ्चम भाव में पुत्रदाता होता है यदि वह निर्बल होगा तो *स्थानहानि करो जीवः*तथा *कारको भावनाशकः* के अनुसार सन्तति हानि ही करेगा।

▪पञ्चमेश बली होकर शुभग्रहों के मध्य हो या शुभ ग्रहों से युत दृष्ट हो तो पुत्रप्राप्ति होती है।
   
*अनेकपुत्र योगः*
▪यदि शुक्र,गुरु,बुध तथा पंचमेश बली होकर पंचम भाव में बैठे या ये सब पंचम भाव को देखते हों तब बहुत से पुत्र उतपन्न होते हैं,ऐसा प्राचीन मुनियों का कथन है।

पंचमेश के बल पर पुत्रो एवं पुत्रियों की संख्या निर्भर होती है।

▪यदि पंचमेश परमोच्च राशिगत होकर पुरुषराशि(विषमराशि)के नवांश में हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो,साथ ही पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि न हो तो दैवज्ञ लोग बहुत से पुत्रो का पैदा होना बतलाते हैं।

▪यदि किसी भी स्थान में गुरु,मंगल तथा सूर्य पुरुष राशि तथा पुरुष नवांश में बैठे हो तो मुनिजन बहुत से पुत्रों का उतपन्न होना कहते हैं ।

पंचमेश यदि बली हो तो सुपुत्र पैदा होते हैं।

यदि पंचमेश सामान्य बली हो तो सामान्य पुत्र उतपन्न होते हैं।

पंचमेश के निर्बल होने पर कपूत पैदा होते हैं।

इस योग के अनुसार योग 6-8-12 इन तीन भावों को छोड़कर शेष जो नौ स्थान हैं उनमे यदि रवि-गुरु-मंगल पुरुष राशि तथा नवाँशो में बैठे हों तो बहुत पुत्रो का योग होता है।।

 
*अनेककन्या योग*
▪यदि पंचम भाव का स्वामी,चन्द्र शुक्र ये तीनो स्त्रिराशियों(सम राशियों)

तथा स्त्री नवांशकों में किसी भी राशि(६-८-१२ भाव को छोड़कर) बैठे हो तो जातक या पृच्छक के अनेक कन्याएं उतपन्न होती हैं; बुद्धिमान दैवज्ञ को ऐसा बताना चाहिए।
*होरा और स्वर से पुरुष कन्या जन्म ज्ञान*
1⃣यदि लग्न (प्रश्न या जन्म)में चन्द्रमा की होरा हो(सम राशि की होरा हो)तथा दैवज्ञ का बाँया स्वर(इडानाड़ी)चल रहा हो तो कन्या का जन्म होता है।

2⃣यदि लग्न में सूर्य की होरा(विषम राशि की होरा) हो तथा दैवज्ञ का दक्षिण स्वर(पिंगला स्वर चल रहा हो तब पुत्र का जन्म होता है ऐसा कहना चाहिए।
*छाद्यछादकवशात् पुत्रप्राप्ति बाधा कथनम*
▪यदि छाद्य-छादक स्त्री ग्रह हो तथा उनका प्रभाव कुंडली में लग्न से द्वादश तथा द्वितीय भावों पर हो अथवा लग्न में बैठा हुआ पुरुष ग्रह स्त्री ग्रहों के मध्य में हों अथवा लग्न में वृश्चिक या सिंह राशि हो अथवा लग्न में यदि अग्नि भूत (तत्व=हंसक)का उदय हो रहा हो तो इन योगों में पुत्रप्राप्ति बहुत कठिन हुआ करती है।
*छाद्य-छादक ग्रहों का स्पष्टीकरण*
▪उत्तरकालामृतं अध्याय ४ श्लोक १९-२० में छाद्य-छादक ग्रहों के सम्बन्ध में निम्न कथन मिलता है 👇
▪पूर्ण चन्द्रमा,बृहस्पति,शनि तथा केतु जिस भाव में बैठे हों उसके उसके द्वितीय भाव हेतु तथा द्वादश भाव के लिए छादक होते हैं।परन्तु विशेष बात यह है की इन ग्रहों में गुरु यदि दुः स्थान का स्वामी हो तो वह केवल अपने स्थान से द्वादश भाव के लिए छादक( रक्षाकारक=ढाल या रक्षा कवच) होता है और दुःस्थान के स्वामी होने पर शेष ग्रह (शनि,चन्द्र,एवं केतु)पुरच्छादक(द्वितीय भाव के  छादक)भी होते हैं।

यदि किसी भावस्वामी एवं भावकारक का सम्बन्ध (युति-दृष्टि आदि द्वारा)बनता है तो उस भाव का शुभ फल प्राप्त होता है।

▪किसी भाव से उसके द्वितीय में बैठा ग्रह उस प्रथमोक्त भाव के लिए छादक होता है। अन्य ग्रह (सूर्य,क्षीणचंद्र,शु.बु. मं. रा.)छादक नही होते हैं।।
   

      *पुत्रप्रद योग*
*(1)*यदि पंचमेश लग्न में ,सप्तम में, या तनय भाव में से किसी में भी बैठा हो तो पुत्रदायक होता है।

*(2)*लग्नेश या सप्तमेश में से कोई भी ग्रह पंचम भाव में बैठा हो तो पुत्रप्रद होता है।

*(3)*पंचमेश यदि लग्न में हो तो पुत्रप्रद होता है।

*(4)*इसी प्रकार सन्तति प्रश्न में गुरु भी पंचमेश के समान फल देता है अर्थात गुरु यदि लग्न,सप्तम या पंचम में बैठा हो तो वह भी पंचमेश के समान पुत्र दायक होता है।
▪यदि लग्नेश एवं पंचमेश एक साथ बैठे हो अथवा एक दुसरे को देखते हों अथवा एक दुसरे की राशि में बैठे हों ये तीनो योग पुत्रप्रद होते हैं।।

उच्च सफलता के योग-

उच्च सफलता के योग-
1. जन्म-कुंडली में दशम स्थान
जन्म-कुंडली में दशम स्थानको (दसवां स्थान) को तथा छठे भाव को जॉब आदि के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को देखने के लिए इसी घर का आकलन किया जाता है। दशम स्थान में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है साथ ही उनका सम्बन्ध छठे भाव से हो तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बन जाता है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दशम में तो यह ग्रह होते हैं लेकिन फिर भी जातक को संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है तब जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि आपके यह ग्रह पाप ग्रहों से बचे हुए रहें।
2. जन्म कुंडली में जातक का लग्न
जन्म कुंडली में यदि जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु (वृहस्पति) का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग उत्पन्न करते हैं।
3. जन्म कुंडली में यदि केंद्र में अगर चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ होते हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए अच्छे योग बन जाते हैं। साथ ही साथ इसी तरह चन्द्रमा और मंगल भी अगर केन्द्रस्थ हैं तो सरकारी नौकरी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
4. कुंडली में दसवें घर के बलवान होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से जातक को अपने करियर क्षेत्र में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को आम तौर पर अपने करियर क्षेत्र में अधिक सफलता नहीं मिल पाती है।
5. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य तथा चंद्र को राजा या प्रशासन से सम्बंध रखने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। सूर्य या चंद्र का लग्न, धन, चतुर्थ तथा कर्म से सम्बंध या इनके मालिक के साथ सम्बंध सरकारी नौकरी की स्थिति दर्शाता है। सूर्य का प्रभाव चंद्र की अपेक्षा अधिक होता है।
6. लग्न पर बैठे किसी ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव रखने वाला माना जाता है। लग्न पर यदि सूर्य या चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति शाषण से जुडता है और अत्यधिक नाम कमाने वाला होता है।
7. चंद्र का दशम भाव पर दृष्टी या दशमेश के साथ युति सरकारी क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। यधपि चंद्र चंचल तथा अस्थिर ग्रह है जिस कारण जातक को नौकरी मिलने में थोडी परेशानी आती है। ऐसे जातक नौकरी मिलने के बाद स्थान परिवर्तन या बदलाव के दौर से बार बार गुजरते है।
8. सूर्य धन स्थान पर स्थित हो तथा दशमेश को देखे तो व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में नौकरी मिलने के योग बनते है। ऐसे जातक खुफिया ऐजेंसी या गुप चुप तरीके से कार्य करने वाले होते है।
9. सूर्य तथा चंद्र की स्थिति दशमांश कुंडली के लग्न या दशम स्थान पर होने से व्यक्ति राज कार्यो में व्यस्त रहता है ऐसे जातको को बडा औहदा प्राप्त होता है।
10. यदि ग्रह अत्यधिक बली हो तब भी वें अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सरकारी नौकरी दे सकते है। मंगल सैनिक, या उच्च अधिकारी, बुध बैंक या इंश्योरेंस, गुरु- शिक्षा सम्बंधी, शुक्र फाइनेंश सम्बंधी तो शनि अनेक विभागो में जोडने वाला प्रभाव रखता है।
11. सूर्य चंद्र का चतुर्थ प्रभाव जातक को सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्रदान करता है। इस स्थान पर बैठे ग्रह सप्तम दृष्टि से कर्म स्थान को देखते है।
12. सूर्य यदि दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को सरकारी कार्यो से अवश्य लाभ मिलता है। दशम स्थान कार्य का स्थान हैं। इस स्थान पर सूर्य का स्थित होना व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रो में अवश्य लेकर जाता है। सूर्य दशम स्थान का कारक होता है जिस कारण इस भाव के फल मिलने के प्रबल संकेत मिलते है।
13. यदि किसी जातक की कुंडली में दशम भाव में मकर राशि में मंगल हो या मंगल अपनी राशि में बलवान होकर प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या दशम में स्थित हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
14. यदि मंगल स्वराशि का हो या मित्र राशि का हो तथा दशम में स्थित हो या मंगल और दशमेश की युति हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
15. चंद्र केंद्र या त्रिकोण में बली हो तो सरकारी नौकरी का योग बनाता है ।
16. यदि सूर्य बलवान होकर दशम में स्थित हो या सूर्य की दृष्टि दशम पर हो तो जातक सरकारी नौकरी में जाता है ।
17. यदि किसी जातक की कुंडली में लग्न में गुरु या चौथे भाव में गुरु हो या दशमेश ग्यारहवे भाव में स्थित हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
18. यदि जातक की कुंडली में दशम भाव पर सूर्य, मंगल या गुरु की दृष्टि पड़े तो यह सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
19. यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,
20. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।
21. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.
22. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।
23. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।
24. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।
25. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।
26. भाव:कुंडली के पहले, दसवें तथा ग्यारहवें भाव और उनके स्वामी से सरकारी नौकरी के बारे मैं जान सकते हैं।
27.सूर्य. चंद्रमा व बृहस्पति सरकारी नौकरी मै उच्च पदाधिकारी बनाता है।
28. भाव :द्वितीय, षष्ठ एवं दशम्‌ भाव को अर्थ-त्रिकोण सूर्य की प्रधानता होने पर सरकारी नौकरी प्राप्त करता है।
29. नौकरी के कारक ग्रहों का संबंध सूर्य व चन्द्र से हो तो जातक सरकारी नौकरी पाता है।
30. दसवें भावमें शुभ ग्रह होना चाहिए।
31. दसवें भाव में सूर्य तथा मंगल एक साथ होना चाहिए।
32. पहले, नवें तथा दसवें घर में शुभ ग्रहों को होना चाहिए।
33. पंच महापुरूष योग: जीवन में सफलता एवं उसके कार्य क्षेत्र के निर्धारण में महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।पंचमहापुरूष योग कुंडली में मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि अपनी स्वराशि अथवा उच्च राशि का होकर केंद्र में स्थित होने पर महापुरुष योग बनता
34. पाराशरी सिद्धांत के अनुसार, दसवें भाव के स्वामी की नवें भाव के स्वामी के साथ दृष्टि अथवा क्षेत्र और राशि स्थानांतर संबंध उसके लिए विशिष्ट राजयोग का निर्माण करते हैं।
कुंडली से जाने नौकरी प्राप्ति का समय नियम:
1. लग्न के स्वामी की दशा और अंतर्दशा में
2. नवमेश की दशा या अंतर्दशा में
3. षष्ठेश की दशा या, अंतर्दशा में
4. प्रथम,दूसरा , षष्ठम, नवम और दशम भावों में स्थित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा में
5. दशमेश की दशा या अंतर्दशा में
6. द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में
7. नौकरी मिलने के समय जिस ग्रह की दशा और अंतर्दशा चल रही है उसका संबंध किसी तरह दशम भाव या दशमेश से ।
8. द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में भी नौकरी मिल सकती है।
9. छठा भाव :छठा भाव नौकरी का एवं सेवा का है। छठे भाव का कारक भाव शनि है।
10. दशम भाव या दशमेश का संबंध छठे भाव से हो तो जातक नौकरी करता है।
11. राहु और केतु की दशा, या अंतर्दशा में :
जीवन की कोई भी शुभ या अशुभ घटना राहु और केतु की दशा या अंतर्दशा में हो सकती है।
12. गोचर: गुरु गोचर में दशम या दशमेश से केंद्र या त्रिकोण में ।
13. गोचर : नौकरी मिलने के समय शनि और गुरु एक-दूसरे से केंद्र, या त्रिकोण में हों तो नौकरी मिल सकती है
14. गोचर : नौकरी मिलने के समय शनि या गुरु का या दोनों का दशम भाव और दशमेश दोनों से या किसी एक से संबंध होता है।
15. कुंडली का पहला, दूसरा, चौथा, सातवा, नौवा, दसवा, ग्यारहवा घर तथा इन घरों के स्वामी अपनी दशा और अंतर्दशा में जातक को कामयाबी प्रदान करते है।