सन्तान और प्रश्न ज्योतिष
भाग 1
*प्रशस्त भार्या*
जो पत्नी पति से सहवासोप्रांत शीघ्र ही गर्भ धारण करे और शुभ समय की महिमा से पुत्र या सन्तति को जन्म देती है वो प्रशस्त पत्नी होती है।इसलिये गर्भाधान शुभ समय में करना चाहिए। शुभ लग्न तथा शुभ ग्रहों की स्थिति के समय ही सन्तति,पुत्र धन आदि स्व सबंधित समस्याओं पर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए।
*पृच्छक विधि*
“इस नाम वाले या इस जन्मनक्षत्र वाले पुरुष से इस नामवाली या इस जन्म नक्षत्र वाली स्त्री में पुत्र उतपन्न होगा या नही?इस प्रकार की शब्दावली में दम्पति के नाम/नक्षत्रो को बताकर प्रश्न पूछना चाहिए ऐसा प्रश्नग्रन्थकारों का मत है।
*लग्नारूढ़ विचार*
यह प्रश्न तो साधारण है परन्तु इसके विचार में प्रश्नसंग्रहकारों का मत है की लग्न तथा आरूढ़ से इसका विचार करना चाहिए।
इस प्रश्न में लग्न पति से सम्बंधित विषयों का तथा आरूढ़ पत्नी से सम्बंधित विषयों का द्योतक होता है।
अतः लग्न से प्रजनन में पति की भूमिका का तथा आरूढ़ राशि से पत्नी की भूमिका का विचार करें,यही अभिप्राय यहाँ व्यक्त किया जा रहा है।
*दोष विचार*
(१)यदि आरूढ़ राशि का स्वामी तथा शुभपति(नवमेश)ये दोनों ही ग्रह अस्त हो तो क्षेत्र(स्त्री की प्रजनन शक्ति)में दोष होने के कारण दूसरी पत्नी से सन्तति उतपन्न होती है। अर्थात सन्तान प्राप्ति के लिए पुरुष को दूसरा विवाह करना पड़ता है।
(२)यदि लग्नेश तथा सुतपति(पंचमेश) दोनों ही अस्तंगत हों तो बीजदोष(पुरुष की प्रजनन शक्ति)में कमी होती है अतः उसे दूर करने के लिये *विष्णुर्विप्राश्चर्यास्तनयो*भगवान विष्णु की पूजा तथा ब्राह्मणों का अर्चन करना चाहिए। तब यह दोष दूर होकर सन्तान प्राप्ति होती है ।
(३)यदि प्रश्नकाल में प्रश्नकुण्डली उदय लग्न तथा आरूढ़ से पति-पत्नी दोनों में दोष विद्यमान हो तो फिर सन्तान प्राप्ति नही होती *(नात्मजप्तिर्द्विदोषे)* है।
*।सन्तानदीपिका मत ।*
(१)यदि चन्द्रमा आरूढ़ राशि से उपचय स्थानों में बैठा हो अथवा लग्नराशि से अन्यथा(अनुपचय)स्थानों में बैठा हो तो सन्तान प्राप्ति कठिन होती है।
(२)जब आरूढ़ की राशि स्त्रिराशि हो तथा लग्न की राशि भी स्त्रिराशि हो अथवा आरूढ़ तथा प्रश्न लग्न पुरुष राशि में हों
(3)अग्नि तत्व का उदय जब प्रश्नलग्न में हो रहा हो
(४) लग्न तथा आरूढ़ में स्थिर राशियाँ(वृश्चिक-वृष-सिंह)अथवा कन्या राशि हों
(५)वृहस्पति यदि फल देने की स्थिति में बलवान न हो इन उपरिवर्णित स्थितियों में पुत्र प्राप्ति दूर्लभ ही होती है।।
स्त्री पुरुष की सन्तान हीनता,दत्तक पुत्र के योग,पुत्र शोक,अल्पसन्तति,अधिक सन्तति आदि के योग को आगे बतलाया जा रहा है।
*अनपत्यता योग*
बृहस्पति,लग्नाधिपति,सप्तमाधिपति तथा पंचमेश ये सभी ग्रह यदि निर्बल हों तो दम्पति को अनपत्यता(सन्तानहीनता)कहनी चाहिए।
यदि पुत्रस्थान(पंचम भाव) में पाप ग्रह बैठे हों तथा पंचमेश पाप ग्रहों के मध्य में(या पाठान्तर के अनुसार नीच राशि में)होकर शुभ दृष्टि रहित हो तो सन्तान नही होगी ऐसा कहना चाहिए।
यदि गुरु,लग्न तथा चन्द्रमा इन तीनो से पंचम स्थानों में पाप ग्रह हों तथा उनपर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो भी अनपत्यता होती है।
तातपर्य यह है की पुत्रकारक गुरु प्रश्नलग्न प्रश्नचन्द्र से(जन्मपत्री में भी तीनों से)सन्तति का विचार करें।।
*दत्तक पुत्र योग*
यदि पंचम भाव में बुध की राशि(मिथुन-कन्या)अथवा शनि की राशि(मकर-कुम्भ)में से कोई राशि हो तथा शनि या गुलिक से युत या दृष्ट हो तो दत्तकादि पुत्र का योग होता है।
यदि पुत्रस्थान(पञ्च भाव)में शुभ ग्रह पूर्ण बलि होकर बैठा हो परन्तु पंचमेश की दृष्टि पुत्रभाव पर न हो तो भी दत्तकादि पुत्रों के योग होते हैं।।
*पुत्र शोक योग*
(१)यदि कुंडली में गुरु मकर राशि अथवा मीन राशि का होकर पंचम भाव में स्थित हो तो पृच्छक को पुत्रशोक होता है।
(2)यदि पंचम भावगत गुरु कर्क राशि में हो तो जातक या पृच्छक के कन्याओं का जन्म होता है।
इन दोनों योगों में प्रथम योग कन्यालग्न या वृश्चिकलग्न की कुंडलियों में ही घटित होगा।दूसरा योग केवल मीन लग्न की कुंडली में घटित होगा।
ये तीनो लग्न स्त्री राशियाँ हैं तथा *स्थानहानिकरो* *गुरुः*इस वाक्य के अनुसार गुरु पुत्रशोककारक हो गया इन योगों में।
*पुत्रनाश योग*
यदि अष्टमेश पंचम भाव में बैठा हो तथा पंचमेश या तो अष्टम भाव में बैठा हो अथवा यदि अन्य किसी भाव में बैठा हो नीच राशिगत हो और उसपर शुभ ग्रहो की युति या दृष्टि न हो तो दैवज्ञ को सन्तति नाश बतलाना चाहिए।
यदि गुरु पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पंचमेश निर्बल होकर उस पर शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि न हो तो सन्तान हानि कहनी चाहिए।
यदि पंचम भाव 2 पापी ग्रहों के बीच हो तथा उसपर शुभ ग्रहों की युति दृष्टि न हो साथ ही पंचमेश अशुभ ग्रहों से युत दृष्ट हो तो भी सन्ततिनाश कहना चाहिए।
यदि पंचमेश नीच राशि,शत्रु राशिगत,अस्तंगत हो अथवा वह अष्टमेश षष्ठेश एवं व्ययेश के साथ स्थित हो तथा पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो पुत्रनाशक योग होता है ऐसा मुनिजनो ने अनेक ग्रन्थों में उल्लेख किया है।।
*सन्तति लाभ योग*
▪यदि पंचमेश बलवान होकर या तो लग्नेश से संयुक्त हो अथवा लग्नेश से दृष्ट हो तथा पंचम भाव पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो तो सन्ततिलाभ कहना चाहिए।
▪जब मंगल पंचम भाव में मेष,सिंह,वृश्चिक या मीन राशि में बैठा हो तथा गुरु से युत या दृष्ट हो तो पुत्रप्राप्ति कहनी चाहिए।
▪यह योग धनु,मेष,कर्क या वृश्चिक लग्नो में ही बनेगा।इन लग्नो में मंगल तथा गुरु दोनों की स्वराशि या मित्रराशि पंचम भाव में होगी।
▪यदि पंचम भाव शुभ ग्रहों के मध्य हो अर्थात शुभकर्त्तरी योग में हो,उस पर शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि हो या पंचमेश से युत-दृष्ट हो तो पुत्र प्राप्त होगा ऐसा दैवज्ञ को कहना चाहिए।
▪यदि पंचम भाव का स्वामी बारहवे,आठवे,छठे भाव को छोड़कर अन्य भाव में बली होकर बैठा हो तथा उस पर शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि हो तो इस योग में जातक या पृच्छक को पुत्र प्राप्ति कहनी चाहिए।
▪यदि पंचमेश बली होकर पंचम भाव में,सप्तम्भाव में अथवा लग्न में बैठा हो और पापग्रहों की युति दृष्टि से रहित हो तो सन्तति लाभ कहना चाहिये।
▪लग्न में पंचमेश की स्थिति जातक को सम्पूर्ण शुभ फल देने वाली होती है तथा सप्तम में पंचमेश पत्नी को सन्तति लाभ सूचित करता है अतः इन दोनों भावों में पंचमेश की स्थिति शुभ मानी गयी है।
▪यदि गुरु बलवान होकर पंचम,सप्तम अथवा लग्न में बैठा हो,उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि न हो तो सन्तति लाभ कहना चाहिए।
▪केवल बली गुरु ही पञ्चम भाव में पुत्रदाता होता है यदि वह निर्बल होगा तो *स्थानहानि करो जीवः*तथा *कारको भावनाशकः* के अनुसार सन्तति हानि ही करेगा।
▪पञ्चमेश बली होकर शुभग्रहों के मध्य हो या शुभ ग्रहों से युत दृष्ट हो तो पुत्रप्राप्ति होती है।
*अनेकपुत्र योगः*
▪यदि शुक्र,गुरु,बुध तथा पंचमेश बली होकर पंचम भाव में बैठे या ये सब पंचम भाव को देखते हों तब बहुत से पुत्र उतपन्न होते हैं,ऐसा प्राचीन मुनियों का कथन है।
पंचमेश के बल पर पुत्रो एवं पुत्रियों की संख्या निर्भर होती है।
▪यदि पंचमेश परमोच्च राशिगत होकर पुरुषराशि(विषमराशि)के नवांश में हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो,साथ ही पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि न हो तो दैवज्ञ लोग बहुत से पुत्रो का पैदा होना बतलाते हैं।
▪यदि किसी भी स्थान में गुरु,मंगल तथा सूर्य पुरुष राशि तथा पुरुष नवांश में बैठे हो तो मुनिजन बहुत से पुत्रों का उतपन्न होना कहते हैं ।
पंचमेश यदि बली हो तो सुपुत्र पैदा होते हैं।
यदि पंचमेश सामान्य बली हो तो सामान्य पुत्र उतपन्न होते हैं।
पंचमेश के निर्बल होने पर कपूत पैदा होते हैं।
इस योग के अनुसार योग 6-8-12 इन तीन भावों को छोड़कर शेष जो नौ स्थान हैं उनमे यदि रवि-गुरु-मंगल पुरुष राशि तथा नवाँशो में बैठे हों तो बहुत पुत्रो का योग होता है।।
*अनेककन्या योग*
▪यदि पंचम भाव का स्वामी,चन्द्र शुक्र ये तीनो स्त्रिराशियों(सम राशियों)
तथा स्त्री नवांशकों में किसी भी राशि(६-८-१२ भाव को छोड़कर) बैठे हो तो जातक या पृच्छक के अनेक कन्याएं उतपन्न होती हैं; बुद्धिमान दैवज्ञ को ऐसा बताना चाहिए।
*होरा और स्वर से पुरुष कन्या जन्म ज्ञान*
1⃣यदि लग्न (प्रश्न या जन्म)में चन्द्रमा की होरा हो(सम राशि की होरा हो)तथा दैवज्ञ का बाँया स्वर(इडानाड़ी)चल रहा हो तो कन्या का जन्म होता है।
2⃣यदि लग्न में सूर्य की होरा(विषम राशि की होरा) हो तथा दैवज्ञ का दक्षिण स्वर(पिंगला स्वर चल रहा हो तब पुत्र का जन्म होता है ऐसा कहना चाहिए।
*छाद्यछादकवशात् पुत्रप्राप्ति बाधा कथनम*
▪यदि छाद्य-छादक स्त्री ग्रह हो तथा उनका प्रभाव कुंडली में लग्न से द्वादश तथा द्वितीय भावों पर हो अथवा लग्न में बैठा हुआ पुरुष ग्रह स्त्री ग्रहों के मध्य में हों अथवा लग्न में वृश्चिक या सिंह राशि हो अथवा लग्न में यदि अग्नि भूत (तत्व=हंसक)का उदय हो रहा हो तो इन योगों में पुत्रप्राप्ति बहुत कठिन हुआ करती है।
*छाद्य-छादक ग्रहों का स्पष्टीकरण*
▪उत्तरकालामृतं अध्याय ४ श्लोक १९-२० में छाद्य-छादक ग्रहों के सम्बन्ध में निम्न कथन मिलता है 👇
▪पूर्ण चन्द्रमा,बृहस्पति,शनि तथा केतु जिस भाव में बैठे हों उसके उसके द्वितीय भाव हेतु तथा द्वादश भाव के लिए छादक होते हैं।परन्तु विशेष बात यह है की इन ग्रहों में गुरु यदि दुः स्थान का स्वामी हो तो वह केवल अपने स्थान से द्वादश भाव के लिए छादक( रक्षाकारक=ढाल या रक्षा कवच) होता है और दुःस्थान के स्वामी होने पर शेष ग्रह (शनि,चन्द्र,एवं केतु)पुरच्छादक(द्वितीय भाव के छादक)भी होते हैं।
यदि किसी भावस्वामी एवं भावकारक का सम्बन्ध (युति-दृष्टि आदि द्वारा)बनता है तो उस भाव का शुभ फल प्राप्त होता है।
▪किसी भाव से उसके द्वितीय में बैठा ग्रह उस प्रथमोक्त भाव के लिए छादक होता है। अन्य ग्रह (सूर्य,क्षीणचंद्र,शु.बु. मं. रा.)छादक नही होते हैं।।
*पुत्रप्रद योग*
*(1)*यदि पंचमेश लग्न में ,सप्तम में, या तनय भाव में से किसी में भी बैठा हो तो पुत्रदायक होता है।
*(2)*लग्नेश या सप्तमेश में से कोई भी ग्रह पंचम भाव में बैठा हो तो पुत्रप्रद होता है।
*(3)*पंचमेश यदि लग्न में हो तो पुत्रप्रद होता है।
*(4)*इसी प्रकार सन्तति प्रश्न में गुरु भी पंचमेश के समान फल देता है अर्थात गुरु यदि लग्न,सप्तम या पंचम में बैठा हो तो वह भी पंचमेश के समान पुत्र दायक होता है।
▪यदि लग्नेश एवं पंचमेश एक साथ बैठे हो अथवा एक दुसरे को देखते हों अथवा एक दुसरे की राशि में बैठे हों ये तीनो योग पुत्रप्रद होते हैं।।
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