Monday, 18 November 2024

ग्रहो क़े रत्न पहनना

ग्रहो क़े रत्न पहनना।                         

रत्न ग्रहो की शक्ति को बढ़ाकर उनसे मिलने वाले फलों में वृद्धि करता है।यदि कोई ग्रह जन्मकुंडली में कमजोर है, अस्त है या अनुकूल फल देने वाला होकर पीड़ित जिस कारण वह ग्रह अपने पूर्ण शुभ फल नही दे पाता है तो ऐसे ग्रह के सही रत्न पहनकर उसको बलवान करके उस ग्रह से लाभ और कार्य पूर्ति की जा सकती है।अच्छा अब कभी कभी ग्रहो के रत्न काम नही करते या थोड़ा ही फायदा दे पाते है जबकि रत्न ओरिजिनल ही होता है।

ऐसा इस कारण होता है क्योंकि जिस ग्रह का रत्न पहना है यदि वह अशुभ योग बनाकर कुंडली मे बेठा है तब वहां रत्न के साथ साथ उस ग्रह का पूजा पाठ और जप या दान आदि जैसे उपाय जातक को स्वयम करने होते जिससे उस ग्रह ने जो दोष बना रखा है वह कम हो और रत्न लाभ दे क्योंकि कोई भी रत्न किसी भी ग्रह के अशुभ योग या दोष को कम नही करता केवल उस ग्रह की शक्ति को बढ़ाकर फलो में वृद्धि करता है।

यदि ग्रह दोष युक्त नही है अच्छी स्थिति में कुंडली मे बेठा है लेकिन सर्फ कमजोर होने से वह ज्यादा शुभ फल नही दे पा रहा है तब केवल उस ग्रह का रत्न पहनना ही लाभ दे देगा क्योंकि ग्रह कमजोर है अशुभ नही, लेकिन ग्रह कमजोर हो और अशुभ स्थिति या योग में हो और कुंडली का अनुकूल ग्रह है तब यहाँ उस ग्रह के रत्न के साथ साथ, पूजा पाठ, जप, दान करने पर ही रत्न लाभ देगा।इस तरह सही तरह से कुंडली मे ग्रहो की स्थिति की जांच करके रत्न धारण करे जायेगे तब बहुत बढ़िया लाभ और सफलता देगे।कुछ 

उदाहरणों से समझे।                                                                       

उदाहरण1:- 
कर्क लग्न में मंगल प्रबल योग कारक होकर बेहद शुभ फल देने वाला होता है क्योंकि यहाँ यह दो शुभ भाव 5वे और 10वे भाव का स्वामी होता है।तब अब मंगल यदि यहाँ तीसरे भाव मे नबमेंश गुरु के साथ युति बनाकर बैठे तो बहुत अच्छी स्थिति में राजयोग बनाकर बेठा है गुरु मंगल दोनो ही ग्रह यहाँ राजयोग और सफलता देने वाले है।लेकिन तीसरे भाव मे मंगल और गुरु दोनो ही कन्या राशि जो कि इन दोनों ग्रहो की शत्रु राशि है इस कारण दोनो इस राशि और भाव मे शत्रु राशि मे होने से कमजोर है इनको बल देना जरूरी है यहाँ मंगल के लिए त्रिकोणी मूंगा और गुरु के लिए पुखराज/सुनहला पहनना दोनो ग्रहो के बल में वृद्धि करेगा और भाग्योन्नति, सफलता, प्रबल उन्नति देकर राजयोग, सम्मानित जीवन की उचाईयो तक जातक को लेकर जायेगे मंगल गुरु।।                         

अब यहाँ मंगल और गुरु के साथ राहु बेठ जाए तब यहाँ गुरु चांडाल योग+अंगारक योग बनेगा ऐसी स्थिति में यहाँ राहु केतु की शांति पूजा, जप आदि से करने पर गुरु मंगल के रत्न ज्यादा लाभ देंगे क्योंकि दो अशुभ योग बनने से मंगल गुरु राहु के अशुभ प्रभाव से दूषित है तब ऐसी स्थिति में रत्न ज्यादा लाभ तब ही देते है जब साथ बैठे अशुभ ग्रह/अशुभ योग की शांति की जाएगी।।                                             

उदाहरण2:- 
कोई ग्रह सप्तमेश है और सप्तमेश होकर शुभ स्थानगत है लेकिन कमजोर है तब विवाह के फल जैसे शादी होने में देर, सुख में कमी होगी तब ऐसे में सप्तमेश का रत्न भी धारण करके विवाह और दाम्पत्य जीवन सुख में वृद्धि की जा सकती है।जैसे कन्या लग्न में सप्तमेश गुरु है तो यहाँ गुरु केंद्र त्रिकोण में बैठने पर गुरु का रत्न पहनकर गुरु को शादी के लिए बलि किया जा सकता है।।                                                                                                     

किसी भी ग्रह के रत्न बिना ज्योतिषीय सलाह लिए नही पहने, क्योंकि ग्रह यदि मारक या अशुभ भावेश है जैसे 2, 6, 8, 12 या तीसरे भाव का अकेला स्वामी है साथ कोई ग्रह नीच राशि का भी है तब रत्न ऐसी स्थिति में नुकसान भी दे देगा, इस कारण रत्न हमेशा सलाह लेकर ही धारण किये जाते है।तब ही वह सही लाभ दे सकते है।।                                                                                                    

यदि उचित और सही तरह से ग्रहो की कुंडली अनुसार शुभ/अशुभ स्थिति जांचकर रत्न धारण करने से ग्रहो के शुभ फल जैसे, किसी काम मे सफलता, उन्नति, भाग्य का साथ, शादी सुख आदि में वृद्धि करके फायदा लिया जा सकता है।

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